दैनिक भास्कर - मैनजमेंट फ़ंडा
एन. रघुरामन, मैनजमेंट गुरु
स्कूल खुलने पर शिक्षकों की एक नई जिम्मेदारी होगी


June 14, 2021
स्कूल खुलने पर शिक्षकों की एक नई जिम्मेदारी होगी
जब राहुल कमरे से चिल्लाया, ‘पापा आकर देखो मुझे क्या मिला’, उसके पिता ने तुरंत कम्प्यूटर का माइक म्यूट किया और बोले, ‘बेटा मैंने कहा था न कि बोर्डरूम मीटिंग मैं हूं। थोड़ी देर शांत नहीं रह सकते।’ राहुल दु:खी हो गया और वह मम्मी को बुलाना चाहता था। लेकिन अचानक उसे याद आया कि कुछ मिनट पहले मां ने कहा था, ‘देखो, मुझे अगले दो घंटे डिस्टर्ब मत करना, मुझे ऑफिस का प्रोजक्ट खत्म करना है। तब तक तुम होमवर्क खत्म कर लो।’ इसलिए वह शांत रहा और सो गया। बाद में लंच टेबल पर पिता ने पूछा कि ऐसा क्या अर्जेंट था, जिसके लिए चीख रहे थे। राहुल बोला, ‘कुछ नहीं’ और फिर इसपर बात नहीं हुई। जब घर की बाई ने देखा कि बड़बड़ करने वाला राहुल शांत हो गया तो उसने तारीफ की, ‘आजकल राहुल बाबा बहुत जिम्मेदार हो गए हैं।’ मां गर्व से फूल गई। पूरी प्रक्रिया में वे जरूरी बात भूल गए। पिछले 15 महीनों में, स्कूल बंद होने और माता-पिता की वर्क फ्रॉम होम दिनचर्या के बाद से राहुल ज्यादा अंतर्मुखी हो गया है।
दुर्भाग्य से, माता-पिता और बाई नहीं जानते, जो हर बच्चा जानता है। बच्चा जानता है कि जिंदगी अविनाशी है लेकिन जीवन की अभिव्यक्ति हमेशा क्षणिक और अस्थायी है। शाश्वतता की शक्ति और सार जीवन के हर क्षण में है। उन लम्हों को खोना, जिंदगी खोने के बराबर है।
जब भी स्कूल खुलेंगे, राहुल और उसके जैसे छात्र कक्षाओं में लौटेंगे। अब स्कूल को राहुल जैसे छात्रों का फीडबैक देने से पहले दोबारा सोचना होगा। शिक्षकों को उसे ‘होशियार लेकिन शांत’ की जगह ‘होशियार और शांत’ बताना होगा।
बतौर समाज लोग अक्सर मानते हैं कि कम बोलने वालों के पास कुछ कहने को नहीं होता, जबकि सच्चाई इससे कोसों दूर है। कई अंतर्मुखी लोगों को हिकारत भरी नजरों से देखा जाता है क्योंकि वे शांत रहते हैं और घुलते-मिलते नहीं। ज्यादा बोलना और मुखर होना समाज में स्वीकार्य व्यवहार है। जो ऐसा नहीं करते उन्हें अजीब कहा जाता है। दुर्भाग्य से हमारे समाज में ज्यादातर लोग जोर से बोलकर और मुखर होकर ध्यान खींचते हैं, जबकि अंतर्मुखी लोगों की बात अक्सर दबा दी जाती है क्योंकि ऐसा मान लेते हैं कि उनके पास साझा करने को कुछ दिलचस्प नहीं है।
अंग्रेजी के शिक्षक और ‘अ क्वाइट एजुकेशन’ किताब के लेखक जैमी थोम शिक्षकों से आमतौर पर इस्तेमाल होने वाले तरीकों पर पुनर्विचार का निवेदन करते हैं, जैसे छात्रों से उम्मीद करना कि वे जल्दी हाथ उठाएं, जल्दी जवाब देने वालों या क्लास में चिल्लाकर ध्यान खींचने वालों की तारीफ करना या यह मानना कि शांत बच्चे कम होशियार होते हैं। महामारी के बाद की परिस्थिति में, जहां कई बच्चे शांत हो गए हैं, शिक्षकों की एक ऐसे समाज में मौन का सम्मान करने की नई जिम्मेदारी है, जो हमेशा शोर करता है। दूसरी तरफ स्कूलों को रचनात्मक सोच और एकांत को जगह देनी होगी। जैसे ‘काम कॉर्नर’ (शांत कोना) काम आ सकता है।
ऐसा इसलिए क्योंकि हर पल पर अलग प्रतिक्रिया देने की इंसान की क्षमता से ही उसके जीवन में महत्वपूर्ण मोड़ आता है। जब हम सजगता से इस पल में मौजूद नहीं होंगे, तो न सिर्फ इस पल से बल्कि समूचे ब्रह्मांड से हमारा तालमेल टूट जाएगा।
फंडा यह है कि स्कूल खुलने पर हर शिक्षक की एक अतिरिक्त जिम्मेदारी होगी क्योंकि कोई नहीं जानता कि बच्चे लॉकडाउन में किस मनोस्थिति से गुजरे हैं।

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