दैनिक भास्कर - मैनजमेंट फ़ंडा
एन. रघुरामन, मैनजमेंट गुरु
हमारी रिसायकलिंग की आदतों पर गर्व करें


July 24, 2021
हमारी रिसायकलिंग की आदतों पर गर्व करें
उस शुक्रवार मैं दो कारणों से उत्साहित था। 1. मैं दूधवाला (बिल्कुल सुबह की) फ्लाइट के रूटीन पर लौट आया था और 2. मैं भारतीय आसमान के सबसे बड़े विमान बोइंग 777-300 में यात्रा कर रहा था, जो सुपर लक्जरी है। कार से उतरते वक्त मेरे ड्राइवर ने याद दिलाया कि मेरे हाथ में अब भी पानी की खाली बोतल है, जिससे रास्तेभर मैं पानी पीता रहा। उसने इसे पास के डस्टबिन में फेंकने कहा। लेकिन मैंने उसे बोतल वापस कॉलोनी ले जाकर वहां के बिन में डालने कहा क्योंकि मैं नहीं जानता था कि अमीर एयरपोर्ट पर बोतलें रिसायकिल होती हैं या नहीं और यहां कचरे पर कितना ध्यान देते हैं। इस महामारी में मैंने कई कोऑपरेटिव सोसायटियों को कचरे के निपटारे को लेकर सजग होते देखा है। पर्यावरण की सुरक्षा के लिए यह स्वागतयोग्य कदम है।
बेंगलुरु के डीएलएफ वेस्टएंड हाइट्स अपार्टमेंट का उदाहरण देखें। यहां 1830 फ्लैट में 6000 रहवासी हैं। यहां हर महीने 15 टन सूखा और 30 टन गीला कचरा निकलता है। वर्ष 2019 तक एक ठेकेदार सॉलिड वेस्ट ले जाता था, पर उसकी कीमत लगातार बढ़ रही थी। रहवासी यह भी नहीं जानते थे कि उनका कचरा कैसे डिस्पोज होता है। लेकिन परिस्थिति बदली जब उन्हें अहसास हुआ कि उनके कचरे की वित्तीय और पर्यावरणीय लागत कम करना जरूरी है। आज वे न सिर्फ कॉलोनी में ही पूरे कचरे का प्रबंधन करते हैं, बल्कि सूखे कचरे से प्रतिमाह 40 हजार रुपए कमा भी रहे हैं।
दरअसल उन्होंने सुनिश्चित किया कि रुका हुआ पानी जमा न हो और फिर साफ व कुशल ऑर्गनिक वेस्ट कंवर्टर (ओडब्ल्यूसी) लगाया। इसमें वाइब्रेट होने वाली छलनी, 20 क्रेट ट्रॉलियां और एयर-हेंडलिंग यूनिट है। अक्सर मानते हैं कि ओडब्ल्यूसी यानी खाद बनने के इंतजार में अंधियारा, बदबूदार, गीले कचरे के डिब्बों से भरा बेसमेंट, जहां मक्खियां और कीड़े भिनभिनाते हैं। लेकिन इनके ओडब्ल्यूसी में न सिर्फ शानदार मैगनेट कर्टेन और असरकारी एग्जॉस्ट है, बल्कि बदबू और मक्खियां भी नहीं है।
बतौर मितव्ययी समाज, भारत सदियों से चक्रीय अर्थव्यवस्था में विश्वास रखता है, जिसका आधार है संसाधनों को रिड्यूस (कम इस्तेमाल), रियूज (दोबारा इस्तेमाल) और रिसायकल करना। ऐसे कई देश हैं जहां रद्दीवाले ही नहीं होते। वहां जिस चीज की जरूरत नहीं होती या खराब हो जाती है, उसे फेंक देते हैं। मौजूदा औद्योगिक प्रक्रियाएं नुकसान बढ़ाती हैं। वे प्रकृति से संसाधन लेकर चीजें बनाती और बेचती हैं। खरीदार इस्तेमाल करके फेंक देता है। ऐसे उत्पाद हमारे पारिस्थितिकी तंत्र में गैर-जैवनिम्नीय (नॉन-बायोडिग्रेडबल) बनकर रह जाते हैं। ज्यादा उत्पादन और फेंकने की प्रक्रिया में इंसान कार्बन डायऑक्साइड और मीथेन पैदा करता है, जो प्राकृतिक पूंजी को और कमजोर करते हैं।
दिलचस्प है कि भारत की अतिरिक्त सामान के बिना अच्छा जीवन जीने की दार्शनिक परंपरा है। जब हमारे बाजार में मिल्क कुकर और प्रेशर कुकर आए तो हर छोटे शहर में इन्हें सुधारने की दुकानें खुल गई थीं। ऐसा ही 1960 के बाद से हर दशक में कुकिंग गैस, सीलिंग फैन, रेफ्रीजिरेटर आने पर हुआ। आज आप हर छोटे शहर में उन्हीं दुकानों को मोबाइल फोन और लैपटॉप सुधारने की दुकानों में बदलते देखते हैं। इस तरह इच्छाओं और प्रकृति के सम्मान के बीच संतुलन बनाने की हमारी पंरपरा रही है। इसपर गर्व करें।
फंडा यह है कि हम लग्जरी में कितना ही ऊंचा उड़ें, हमें अपनी पुरातन रिसायकलिंग व्यवस्था का सम्मान करना चाहिए, जो इस चक्रीय अर्थव्यवस्था को चलाती है क्योंकि इससे प्रकृति का संरक्षण होता है।

Be the Best Student
Build rock solid attitude with other life skills.
05/09/21 - 11/09/21
Two Batches
Batch 1 - For all adults (18+ Yrs)
Batch 2 - For all minors (below 18 Yrs)
Duration - 14hrs (120m per day)
Investment - Rs. 2500/-

MBA
( Maximize Business Achievement )
in 5 Days
30/08/21 - 03/09/21
Free Introductory briefing session
Batch 1 - For all adults
Duration - 7.5hrs (90m per day)
Investment - Rs. 7500/-

Goal Setting
A proven, step-by-step workshop for setting and achieving goals.
01/10/21 - 04/10/21
Two Batches
Batch 1 - For all adults (18+ Yrs)
Batch 2 - Age group (13 to 18 Yrs)
Duration - 10hrs (60m per day)
Investment - Rs. 1300/-