दैनिक भास्कर - मैनजमेंट फ़ंडा
एन. रघुरामन, मैनजमेंट गुरु
हारना सफलता का विपरीत नहीं है


July 20, 2021
हारना सफलता का विपरीत नहीं है
ओलिंपिक में गोल्ड जीतने की उम्मीद करने वाले हर खिलाड़ी के सपने की कल्पना कीजिए। कौन पोडियम पर खड़ा होकर, सिर झुकाकर ओलिंपिक अधिकारी के हाथों से, अपनी गर्दन में मेडल नहीं पहनना चाहेगा? और अगर यह वास्तविकता बन जाए तो उस खिलाड़ी के लिए यह सबसे अनमोल पल होगा।
लेकिन इस ओलिंपिक में आप यह दृश्य नहीं देख पाएंगे। स्वागत कीजिए आपके टीवी पर जल्द आ रहे ‘कोविड’ वाले ओलिंपिक्स खेलों का। नए अवतार में समारोह में ‘मेडल तथा गिफ्ट के साथ ट्रे’ होंगे, जिन्हें एक टेबल या स्टैंड पर रखा जाएगा। वहां से विजेता एथलीट मेडल और उपहार लेंगे और वे प्रस्तुतकर्ता के संपर्क में बिल्कुल नहीं आएंगे! एथलीट पूरे समय खुद ही अपने पोडियम पर रहेंगे और पारंपरिक मेडल सेरेमनी पहले जैसी नहीं रहेगी। इसी तरह कई अन्य ओलिंपिक परंपराओं और पैटर्न में भी जरूरी बदलाव हुए हैं। इस महीने जब से ओलिंपिक कमेटी ने वायरस पकड़ने के लिए जांच शुरू की है, खेल से संबंधित करीब 44 लोग कोरोना पॉजिटिव आ चुके हैं। इस 23 जुलाई को खेल की शुरुआत होने से 6 दिन पहले ओलिंपिक गांव के अंदर पहला पॉजीटिव केस आया। इससे न सिर्फ खेल के दौरान वायरस के फैलने का डर बढ़ेगा, बल्कि आगे भी कई परंपराएं बदल सकती हैं।
सुचारू प्रबंधन व्यवस्था के बिना, कई खिलाड़ियों को खुद के उपकरणों के भरोसे ही छोड़ दिया गया था। ओलिंपिक के उम्मीदवारों के मूल प्रशिक्षण मैदान एनसीएए में भी जीवन से जुड़ी विसंगतियां ज्यादा थीं, जहां खिलाड़ी कड़ी तैयारी करते हैं। वहां खिलाड़ी इस आधी-अधूरी उम्मीद में थे कि क्या गेम होंगे भी या नहीं। याद रखें ये सभी खिलाड़ी अनिश्चित भावनात्मक यात्रा से गुजरे हैं चूंकि गेम्स को 2020 में स्थगित कर 2021 में आयोजन हो रहा है। इतना ही नहीं, वैश्विक लॉकडाउन के बावजूद सभी फिट रहने का प्रयास कर रहे थे।
यह ऐसा ही था, जैसे महाराष्ट्र में सरकार की अनुमति के बाद करीब 6000 स्कूलों के बच्चे 16 महीने बाद स्कूल जाकर कक्षा में शामिल हुए। आठवीं से बारहवीं कक्षा के कई बच्चे माता-पिता की लिखित सहमति के बाद स्कूल पहुंचे, क्योंकि उनका टीकाकरण नहीं हुआ है। अपने-अपने गांवों में बच्चे सैनिटाइजर की बोतल लेकर उत्साह से स्कूल पहुंचे और बिना पार्टनर वाली बेंच पर बैठकर, मास्क पहनकर उन दोस्तों संग हंसी-मजाक किया, जिन्हें लंबे समय से नहीं देखा था। कुछ बच्चों से जब पूछा गया कि उन्हें 16 महीने स्कूल न आकर कैसे लगा, तो उन्होंने कहा कि उन्हें डर था, कहीं जिंदगीभर घर में न रहना पड़े। कई राज्यों में बच्चों की स्कूल वापसी के हालिया प्रयासों के पीछे सिर्फ पढ़ाई ही नहीं, उनका स्कूल जाकर दोस्तों से मिलने का सपना पूरा करना भी है।
इसी तरह यह ओलिंपिक गेम भी, जिसे आलोचक ‘कोविड गेम्स’ कह रहे हैं, खिलाड़ियों का सपना पूरा करने के लिए है। उनके रास्ते में कितने ही प्रोटोकॉल या बाधाएं आएं, लेकिन वह यह यात्रा हमेशा याद रखें। वहीं किसी के आखिरी वक्त में पॉजीटिव होने से वह भाग नहीं ले पाएगा या टीम में किसी एक के पॉजीटिव आने से पूरी टीम मुश्किल में पड़ सकती है। ऐसी घटनाएं कई दिल तोड़ सकती हैं।
फंडा यह है कि बतौर स्पोर्ट्स फैन, यह हमारा काम है कि हम मेडल की चाहत रखने वाले हमारे देश के हर उम्मीदवार खिलाड़ी से कहते रहें कि हारना, सफलता का विपरीत नहीं है, बल्कि सफलता का हिस्सा है। इसलिए इससे डरें नहीं।

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