दैनिक भास्कर - मैनजमेंट फ़ंडा
एन. रघुरामन, मैनजमेंट गुरु
हिंसा से दूर रहें, पर अधिकारों के लिए लड़ें


March 24, 2021
हिंसा से दूर रहें, पर अधिकारों के लिए लड़ें
तीन भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों, भगत सिंह, सुखदेव थापर और शिवराम राजगुरु को 91 साल पहले 23 मार्च को अंग्रेजों ने लाहौर में फांसी पर चढ़ा दिया था। भगत सिंह की 71 वर्षीय भांजी गुरजीत कौर ने शहीद दिवस पर कहा, ‘भगत सिंह हमेशा अपने लिए पहल करने में विश्वास रखते थे। मैं कभी हिंसा के रास्ते जाने नहीं कहूंगी, लेकिन अपने अधिकार के लिए आवाज उठाना जरूरी होता है।’ गुरजीत की बात से मुझे वह व्यक्ति याद आया, जिसने 200 रुपए के ट्रैफिक जुर्माने के खिलाफ 10 हजार रुपए खर्च किए और कई दिन सो नहीं सका और आखिरकार इस हफ्ते जीता।
बिनॉय गोपालन ने 29 जनवरी 2021 को पुणे के नजदीक पिंपरी-चिंचवाड़ की सबसे व्यस्त सड़क की अधिकृत पार्किंग में गाड़ी खड़ी की। चूंकि उस सड़क पर कई राष्ट्रीयकृत बैंक, कई सरकारी ऑफिस और एटीएम हैं, इसलिए सड़क की एक तरफ अधिकृत पार्किंग सुविधा है। लेकिन कुछ बदमाशों ने पार्किंग साइड के संकेत को टेप से ढंक दिया, इसीलिए 45 वर्षीय गोपालन उसे देख नहीं पाए। वे बैंक से लौटे तो अचानक देखा कि ट्रैफिक पुलिस की टेम्पो, गाड़ियां उठा रही है और गाड़ी बचाने पहुंच रहे लोगों का ऑनलाइन चालान कट रहा है।
गोपालन ने पुलिस वालों को समझाने की कोशिश की कि यह बदमाशों की गलती है, और ‘नो-पार्किंग’ के बारे में पुलिस ने कोई आधिकारिक जानकारी नहीं दी। हालांकि, पुलिस वालों ने उनकी एक न सुनी और बोर्ड की मौजूदा स्थिति के आधार पर 200 रुपए का चालान कर दिया। इस नाइंसाफी से आहत गोपालन ने उच्च अधिकारियों के समक्ष मुद्दा उठाया, साथ ही साइनबोर्ड की पहले की स्थिति और बदमाशों द्वारा छेड़खानी के बाद की स्थिति के प्रमाण दिए। अधिकारियों ने शुरुआत में स्वीकार किया कि रिकॉर्ड के अनुसार वह आधिकारिक पार्किंग जोन था। लेकिन उन्होंने काम को ‘मुश्किल’ बताते हए ऑनलाइन सिस्टम से चालान हटाने से इंकार कर दिया। उन्होंने यह तक कहा कि गोपालन ऑनलाइन जुर्माना भर दें, जिसे वे लौटा देंगे और यह भी स्वीकारा कि मिटे संकेत ने गोपालन को भ्रमित किया।
गोपालन को विश्वास था कि यह किसी बदमाश का काम नहीं है। बल्कि विभाग के अंदर ही ऐसे व्यक्ति का काम है, जिसने शायद मासिक टार्गेट पूरा करने के लिए संकेत मिटा दिया था। आपको महाराष्ट्र के आईपीएस अधिकारी संजय पांडे की बात याद होगी, जो हाल में ही डीजी, होमगार्ड से महाराष्ट्र स्टेट सिक्योरिटी कॉर्पोरेशन के प्रमुख बने हैं। उन्होंने 2012 में आमिर खान के कार्यक्रम सत्यमेव जयते में कहा था कि व्यवस्थित ढंग से रिश्वत ली जाती है और शीर्ष तक हर स्तर पर साझा होती है।
यह अलग बात है कि ट्रैफिक पुलिस यह कहकर पीछा छुड़ा लेगी कि साइन बोर्डों की स्थिति देखना नगरीय निकायों की जिम्मेदारी है। लेकिन, क्या एक नियमित ट्रैफिक कॉन्सटेबल को यह बताने की जरूरत है कि सड़क के किस तरफ पार्किंग होती है?
जहां कई लोग चालान भरकर चले गए, गोपालन ने मांग की कि पुलिस बेईमानी से लिया गया उन लोगों का पैसा लौटाए, जिन्होंने पार्किंग में गाड़ी खड़ी की थी। गोपालन ने आखिरकार ट्रैफिक पुलिस प्रमुख के सामने सुनवाई की मांग की। अंतत: एसीपी श्रीकांत डिसले ने इस हफ्ते ऑन-रिकॉर्ड गलती मानी और चालान रद्द किया। गोपलन की सफलता से भगवद्गीता की यह बात याद आती है कि आप जो चाहते हैं, उसके लिए संघर्ष नहीं करते हैं, तो जो खोया है, इसके लिए रोएं भी नहीं।
फंडा यह है कि हिंसा को प्रोत्साहित न करें, लेकिन अपने लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए लड़ें जरूर।