दैनिक भास्कर - मैनजमेंट फ़ंडा
एन. रघुरामन, मैनजमेंट गुरु
‘काल्पनिक’ फिनिशिंग लाइन के पार है आपका अनंत


June 24, 2021
‘काल्पनिक’ फिनिशिंग लाइन के पार है आपका अनंत
सभी के जीवन में उतार-चढ़ाव आते हैं। मैं भी अपवाद नहीं हूं। लेकिन एक बार मां ने मुझे ऐसी सलाह दी, जो जीवन में आसानी से बढ़ने में आज तक मेरी मदद करती है। एक बार जब मैं हार मानने वाला था, उन्होंने कहा, ‘थोड़ा और रुको, जो फिनिशिंग लाइन (अंतिम रेखा) जैसी दिख रही है, उसे मत स्वीकारो। जिंदगी हर राह पर जाल बिछाती है। यह ‘ये भी दौड़े’ (जो सिर्फ जिंदा रहे) और ‘विजेताओं’ (जिन्होंने जीने का आनंद लिया) के बीच अंतर करने का उसका तरीका है। जो यह बड़ा अंतर देख पाते हैं, वे इस काल्पनिक फिनिशिंग लाइन के पार जाते हैं। फिर उनके लिए अनंत की तरह, कोई फिनिशिंग लाइन नहीं होती।’
मुझे अहसास हुआ कि यह सलाह रिश्तों में भी लागू होती है, जिन्हें हम संजो के रखते हैं, लेकिन अचानक सीमा रेखा पर पहुंच जाते हैं। यह मेरे काम तब आई जब मुंबई में तलाक के हजारों केस आने लगे और मेरे कुछ दोस्त भी इससे गुजर रहे थे। मेरे कुछ करीबी दोस्तों को लगने लगा कि उनके बीच सबकुछ खत्म हो रहा था तो मैंने उन्हें यही सलाह दी। मैं करीब चार ऐसे परिवारों को तलाक से बचाने का श्रेय ले सकता हूं। रिश्ते में, दो में से एक भी कुछ देर और खुद को रोक ले, तो वही रिश्ता इतना गहरा हो जाएगा, जितनी कल्पना भी न की हो।
मुझे यह सलाह तब याद आई जब मैंने सुना कि चेन्नई पुलिस परेशानी हो गई, जब कंट्रोल रूम को 5 और 6 वर्षीय दो बच्चों के गायब होने की खबर मिली। इन बच्चों के घर से विभिन्न शहरों को जाने वाली सड़कों पर सुरक्षा बढ़ा दी गई और ऐसे कार या ऑटो की जांच होने लगी जिनमें बच्चे थे। दुकानों, कॉलोनियों और ट्रैफिक जंक्शन के सीसीटीवी कैमरे जांचे गए। अंतत: बच्चे मुख्य शहर में, घर से 6 किमी दूर, एक ट्रैफिक सिग्नल के पास दिखे। उनकी पहचान पक्की कर थाने लाया गया और पूछा गया कि वे कहां गए थे। बच्चों ने मासूमियत से कहा कि वे घर से निकल आए क्योंकि मां-बाप हमेशा झगड़ते रहते हैं और उनकी परवाह नहीं करते। इससे उनकी भावनाओं को ठेस पहुंचती है। पुलिस ने बच्चो को घर भेजने से पहले माता-पिता को समझाया कि पैरेंट्स के अनसुलझे विवादों से बच्चों का आत्मविश्वास और भावनात्मक सुरक्षा प्रभावित होती है।
सुशीला देवी (45) का उदाहरण भी देखें, जो चावल की बियर बनाते हुए ग्राहकों के ताने सुनते-सुनते हारने लगी थीं। रांची के अपर कोंकी गांव की सुशीला 7 वर्षों से सम्मानजनक जीवन जीने और 6 लोगों का परिवार पालने का तरीका तलाश रही थी। हाल ही में वह उन 15,456 महिलाओं में से एक बनी, जिन्हें झारखंड सरकार ने ‘फूलो-झानो आशीर्वाद अभियान’ के लिए चुना। यह पिछले साल सितंबर में गैर-कानूनी शराब बेचने वाली महिलाओं के पुनर्वसन के लिए शुरू हुआ था। उन्हें 10 हजार रुपए का ब्याजमुक्त कर्ज देकर दूसरे बिजनेस स्रोत अपनाने का परामर्श दिया गया। लोगों को भरोसा नहीं था कि यह बदलाव आसान होगा और कईयों को लगा कि वे कर्ज के जाल में फंस जाएंगे। अधिकारियों को उन्हें यह समझाने में मुश्किल हुई कि वे थोड़ा धैर्य रखें। आज सुशीला किराने की दुकान चलाती है और ‘सम्मानजनक जीवन’ की उसकी खोज पूरी हो गई है।
फंडा यह है कि जब आप कॅरिअर या रिश्ते या ऐसी ही किसी चीज में हार मानने ही वाले हों, यकीन मानिए यही वह बिंदु है, जहां आपको कुछ देर और रुकना चाहिए।