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   दैनिक भास्कर - मैनजमेंट फ़ंडा    
एन. रघुरामन, मैनजमेंट गुरु 

‘कोई होता मेरा अपना’ को नहीं, ‘कोई है मेरा अपना’ को चुनें

‘कोई होता मेरा अपना’ को नहीं, ‘कोई है मेरा अपना’ को चुनें
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July 28, 2021

‘कोई होता मेरा अपना’ को नहीं, ‘कोई है मेरा अपना’ को चुनें


अगर आप सीखना चाहते हैं, तो सबक हर कहीं हैं। मुझे सोमवार की दोपहर घर पर अकेले लंच करते हुए इसका अहसास हुआ। हालांकि, घर पर हम खाते वक्त टीवी न देखने का सख्ती से पालन करते हैं, लेकिन अकेलेपन ने मुझे नियम तोड़ने पर मजबूर किया और मैंने टीवी चला लिया। मुझे अहसास हुआ कि अकेलापन वास्तविक दुश्मन से ज्यादा घातक है। यह आप पर हावी नहीं होता, बल्कि अंदर से कमजोर कर देता है।

मेरे टीवी पर स्पोर्ट्स चैनल डिफॉल्ट पर सेट है। इसलिए चालू करते ही उसपर ओलिंपिक्स का टेबल टेनिस (टीटी) मैच दिखने लगा। जिसमें भारत की मणिका बत्रा और दुनिया की 17वें नंबर की खिलाड़ी ऑस्ट्रिया की सोफिया पोलकैनोवा के बीच मुकाबला था। बत्रा 27 मिनट में हार गईं।


मैच देखकर मुझे तकलीफ हुई। बत्रा की हार से नहीं, बल्कि उनके अकेले होने से! पहली सर्व से ही बत्रा लय और संतुलन पाने में संघर्ष कर रही थीं। बतौर दर्शक उनका अकेलापन मुझे परेशान कर रहा था। खेल के बीच में जब खिलाड़ी तय जगह पर जाकर पसीना पोंछकर पानी पीते हैं, मैंने देखा कि बत्रा जरूरत से ज्यादा चेहरा पोंछ रही थीं। शायद वे अपनी भावनाएं छिपा रही हों। कैमरा दोनों खिलाड़ियों पर बराबर फोकस कर रहा था। जहां सोफिया लगातार कोच से बात कर रही थीं, जो उनकी चेहरा पोंछने में मदद कर रहे थे और बता रहे थे कि क्या करना चाहिए और क्या नहीं। वहीं बत्रा खुद ही चेहरा साफ कर रही थीं और किसी से बात नहीं कर सकती थीं क्योंकि उनकी तरफ की कुर्सियां खाली थीं।


वास्तव में उन्हें अकेलापन खा रहा था। यह युवती खुद को संभालने की कोशिश कर रही थी और बहादुरी से अगले सेट के लिए टेबल पर जाती थी। उनके शरीर में ऊर्जा दिख रही थी लेकिन अंदर ही अंदर उन्हें कोच सनमय परांजपे की कमी खल रही थी। इसलिए वे पूरी तरह से मैच में नहीं थीं। जैसे-जैसे अकेलेपन की उदासी घर कर रही थी, बत्रा का खेल बिगड़ता जा रहा था। यहां तक कि वे आसान सर्व भी मुश्किल से वापस कर रही थीं। एक ब्रेक के दौरान वे देर तक टॉवल में मुंह छिपाए रहीं। विचारों में खोई हुईं, कैमरे से बचती हुईं। उनके कोच को ‘पी’ (पर्सनल) श्रेणी में मान्यता मिली थी, लेकिन खेल के मैदान में आने की अनुमति नहीं थी। वे बस ट्रेनिंग प्रोग्राम में शामिल हो सकते थे। इसलिए उन्होंने खेलगांव के बाहर, टीवी पर ही बत्रा की हार देखी।


मैं नहीं जानता कि उन्होंने पहले दिन ही राष्ट्रीय कोच सौम्यदीप रॉय की उपस्थिति से इंकार क्यों किया था। फिर भी यह खेल प्राधिकरण की जिम्मेदारी है कि वे जांच करें कि ऐसी परिस्थितियों में बत्रा को अकेला क्यों छोड़ा गया।


लेकिन मुझे यह सबक मिला कि जिंदगी में आपको हमेशा, हर क्षेत्र में अपने लोगों की जरूरत होती है, खासतौर पर जब आप किसी चीज के लिए संघर्ष कर रहे हों। फिर वह कोई टाइटल हो या देश के इलाकों की दुश्मन से सुरक्षा, जैसा हमारी बहादुर सेना करती है।


हीरो सिल्वर स्क्रीन पर अकेलापन बताने के लिए ‘कोई होता मेरा अपना…’ (फिल्म मेरे अपने) जैसा दर्दभरा गीत गा सकता है, लेकिन जिंदगी में जीतने के लिए हमें अपनों के साथ की जरूरत होती है, जिनके लिए हम गाएं, ‘तेरा साथ है तो, मुझे क्या कमी है….’ (फिल्म प्यासा सावन)।


फंडा यह है कि जब आपके साथ कोई होता है, तब आप अंदर से भी बहुत मजबूत हो जाते हैं।

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