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   दैनिक भास्कर - मैनजमेंट फ़ंडा    
एन. रघुरामन, मैनजमेंट गुरु 

‘चालाकी’ भरी सेल्स आखिरकार असफल होती हैं

‘चालाकी’ भरी सेल्स आखिरकार असफल होती हैं
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May 29, 2021

‘चालाकी’ भरी सेल्स आखिरकार असफल होती हैं


याद करें, जब हम हाईवे पर जाते हैं, सड़क किनारे कई ढाबे मिलते हैं, जहां रंगीन झंडा लहराता व्यक्ति हमारा ध्यान खींचने की कोशिश करता है और उसके ढाबे में आने के लिए उकसाता है, साथ ही पार्किंग में मदद करता है। मुझे यह दृश्य शुक्रवार सुबह पांच बजे याद आया, जब मैं ‘दूधवाला’ फ्लाइट पकड़ने के लिए एयरपोर्ट की औपचारिकताएं पूरी कर रहा था। मैंने वहां मुंबई एयरपोर्ट के जीवीके लाउंज के शिफ्ट मैनेजर को देखा। नियमित या बिजनेस क्लास यात्रियों या कुछ विशेष क्रेडिट कार्ड वाले यात्रियों के लिए पॉश एयरपोर्ट पर ये लाउंज होते हैं। लाउंज में पांच-सितारा सुविधाएं होती हैं, जहां दो रुपए में ब्रेकफास्ट, लंच, डिनर मिल जाता है या कभी-कभी सब मुफ्त होता है। एयरलाइन और क्रेडिट कार्ड कंपनियां ऐसे यात्रियों के लिए वास्तविक भुगतान करती हैं। महामारी से पहले मैं बिजनेस क्लास लाउंज छोड़कर, बाकी लाउंज से बचता था क्योंकि इनमें भीड़ रहती है। अगर आप शांति से बैठकर काम करने की जगह चाहते हैं तो शिफ्ट मैनेजर की सिफारिश की जरूरत होती है, जिन्हें उनके व्यस्त शेड्यूल के कारण खोजना मुश्किल होता है।


लेकिन शुक्रवार को स्वभाव से विनम्र वह शिफ्ट मैनेजर, अपने अधीनस्थों के साथ सिक्योरिटी चेक से बाहर आ रहे प्रत्येक यात्री के पास जाकर, उनके लाउंज में आने का निवेदन कर रहा था। मैं थोड़ा हैरान था क्योंकि वह महामारी से पहले बहुत व्यस्त रहता था और आज ज्यादातर समय अपने लाउंज में भोजन के लिए ग्राहकों को लुभाने में बिता रहा हैं। जब मैंने पूछा तो वह बोला, ‘सर, वे दिन गए जब हजारों लोग कतार में खड़े रहते थे और लाउंज में एंट्री के लिए मेरी सिफारिश मांगते थे। आज मुझे उन्हें लुभाना पड़ता है क्योंकि सेल हजारों से गिरकर सैकड़ों पर आ गई है।’ मुझे उस पर गर्व हुआ क्योंकि ऐसे ऊंचे ओहदे वाला व्यक्ति मुस्कुराकर हॉस्पिटैलिटी के निचले स्तर पर काम कर रहा था। मेरे दिल ने कहा कि जब चीजें सामान्य होंगी, ऐसा रवैया, ऐसे युवाओं को बड़ी ऊंचाई पर ले जाएगा।


उसी वक्त मुझे मुंबई के रेस्त्रां द्वारा लॉकडाउन के दौरान अपनाई जा रही ‘चाल’ याद आई। जब ऐसे कपटी रेस्त्रां को ऑनलाइन ऑर्डर मिलता है, तो यह सूची में शामिल उन छह रेस्त्रां में से एक हो सकता है, जिनका फूड डिलिवरी ऐप पर एक ही पता है। मूल को छोड़कर पांचों रेस्त्रां वास्तव में होते ही नहीं हैं। उन्हें वर्चुअल या घोस्ट रेस्त्रां कहते हैं, जो कुछ शहरों में तेजी से फैल रहे हैं।


रेस्त्रां इस रणनीति को ऑनलाइन सर्च में ज्यादा दिखने के लिए अपनाते हैं, जिससे बिक्री बढ़ सकती है। ऑनलाइन ऑर्डर में बढ़ती प्रतिस्पर्धा के चलते कई घोस्ट रेस्त्रां पैदा हो रहे हैं, ताकि उनकी रसोई चलती रहे।


अमेरिका में उबर ईट्स इस खेल में 2017 से है। वह नजर रखता है कि किसी इलाके में ग्राहक ऐप पर क्या ज्यादा सर्च करते हैं, फिर रेस्त्रां को वह मांग पूरी करने के लिए मनाते हैं। जैसे अगर ग्राहक किसी इलाके में ‘चिकन’ सर्च करते हैं तो उबर, रेस्त्रां से कहेगा कि वह नाम में ‘चिकन’ जोड़ ले। उबर ईट्स, अमेरिका के प्रवक्ता मेगन कैसर्ली ने हाल ही में स्वीकारा कि उनके पास केवल उत्तरी अमेरिका में ही 10 हजार वर्चुअल रेस्त्रां हैं।


फंडा यह है कि ऐसे चालाकी भरे सेल्स आइडिया का नकारात्मक पक्ष यह है कि इनका असर उत्पाद की गुणवत्ता पर पड़ सकता है, जिससे लंबे समय में संस्थान की छवि प्रभावित हो सकती है।

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