दैनिक भास्कर - मैनजमेंट फ़ंडा
एन. रघुरामन, मैनजमेंट गुरु
‘नया कूल’ महसूस करने के लिए कुछ शब्दों के अर्थ बदल दें
Aug 20, 2021
‘नया कूल’ महसूस करने के लिए कुछ शब्दों के अर्थ बदल दें!
वह 16 अगस्त का दिन था। उस दोपहर भारत अपने दूसरे टेस्ट मैच के पांचवे दिन खेल रहा था, एक ऐसा मैच जो हर भारतीय याद रखेगा। चूंकि वह मैच भारतीय समयानुसार दोपहर में था इसलिए मैं इसके बारे में कुछ देर बाद बात करूंगा। फिलहाल उसी सुबह की चर्चा करता हूं। उसी दिन मैं कराईकुड़ी में एक पारिवारिक शादी समारोह में शामिल था, ये तमिलनाडु की आखिरी सीमा पर स्थित सालभर बहने वाली नदी ‘थामिराबरानी’ के किनारे बसा छोटा-सा कस्बा है। कोरोना की पाबंदियों के चलते परिवार से सिर्फ सात रिश्तेदार शामिल हो सके, इसलिए वैवाहिक स्थल पर मेरी पूरे समय मौजूदगी जरूरी थी। पर सड़क से आ रही सीटी की आवाज मुझे समारोह स्थल से बाहर खींच लाई। सीटी बजानेवाली और उसकी गाड़ी उसकी शक्ल-सूरत से बिल्कुल विपरीत थी। साफ-सुथरी साड़ी पहने गाड़ी खींच रही वह 20-25 साल की महिला सीटी से लोगों को बता रही थी कि वह आ गई है। और उस गाड़ी में कचरा अलग-अलग करने के लिए तीन हिस्से थे! वह हर घर से कचरे का डिब्बा ले रही थी और अपने हाथों से गीला, सूखा और प्लास्टिक कचरा अलग-अलग कर रही थी, सौभाग्य से उसके दाएं हाथ में दस्ताना था। ज्यों ही मैं बाहर आया दुर्गंध मेरी नाक में प्रवेश कर गई थी, लेकिन कचरे के ज्यादा पास खड़ी उसके चेहरे पर कोई शिकन नहीं थी। वह मुस्कुराकर अपना काम कर रही थी।
मैंने सिर्फ उससे इतना पूछा कि ‘दूसरे शहरों की तरह यहां लोग कचरा अलग-अलग करके क्यों नहीं रखते?’ उसकी गर्दन से लिपटी रस्सी में बंधी हुई सीटी उसने अपने मुंह से हटाई और बोली, ‘नगर पालिका की बार-बार गुजारिश के बावजूद यहां कोई नहीं सुनता और किसी को बुरा नहीं लगता कि हम पिछले छह महीनों से उनका कचरा अलग-अलग कर रहे हैं।’ अपना काम निपटाकर वह स्थानीय लोगों के बारे में अपना अवलोकन ऐसे बताए जा रही थी जैसे कोई मनोवैज्ञानिक कह रहा हो। भाषा पर उसकी पकड़ देखकर मैंने उसकी शिक्षा के बारे में पूछा। जब मैंने उसका जवाब सुना, तो मेरा मुंह एक मिनट तक खुला रहा। उसने कहा ‘मेरा नाम इसाकी अम्मन है (देवी का एक नाम), मैंने एमएससी किया है और पीएचडी करने की कोशिश कर रही हूं। मैंने ये काम छह महीने पहले शुरू किया क्योंकि मेरे पति की कोरोना से अचानक मौत हो गई और तबसे नौकरी पाने के लिए संघर्ष कर रही हूं ताकि अपने बच्चे की परवरिश कर सकूं।’ जो मैंने सुना उस पर यकीन करने की कोशिश कर रहा था। बाद में मुझे पता चला कि वह अपने रवैये, विनम्रता और तमाम बाधाओं के बावजूद समर्पण के कारण अपने साथियों में सबसे ज्यादा लोकप्रिय है।
शादी के बाद जब हम क्रिकेट मैच देखने के लिए बैठे तो अधिकांश भारतीयों की तरह मैं भी चाहता था कि मैच जीतने के लिए हमारे खिलाड़ी आक्रामक और सख्त हों। पर मैच के बीच में हुआ कुछ घटनाक्रम मुझे थोड़ा अटपटा लगा, जब युवा खिलाड़ी मोहम्मद सिराज आउट हो चुके ओलि रॉबिन्सन के पास गए और सीना फुलाते हुए उन्हें गुर्राकर देखा। आश्चर्यजनक है कि उन्हें इसमें कुछ गलत नहीं लगा।
मुझे हमेशा से लगता है कि जब कोई जीत की राह पर चलता है, तो उस राह की हवा हमारे बुरे व्यवहार उसे दूषित नहीं करनी चाहिए। क्योंकि अशिष्ट व्यवहार हमें किसी भी जीत या सफलता की खुशी को दोगुना करने में मदद नहीं करता है। असल में एक का व्यवहार दूसरे के दिल में उत्साह पैदा करता है, जैसे इसाकी अम्मन ने किया।
फंडा ये है कि मेरे लिए खुशी नई अमीरी है, आंतरिक शांति नई सफलता है, स्वास्थ्य नया धन है और उदारता ‘नया कूल’ होना है। आपका क्या ख्याल है?