दैनिक भास्कर - मैनजमेंट फ़ंडा
एन. रघुरामन, मैनजमेंट गुरु
‘मेट्रो प्रवासी पक्षी’ खोज रहे हैं गांव का सुख


July 10, 2021
‘मेट्रो प्रवासी पक्षी’ खोज रहे हैं गांव का सुख
अप्रैल 2020 से मेरी दोस्त वंदना और उनके पति हेमंत देशमुख को साउथ मुबंई के पॉश इलाके स्थित वन बेडरूम अपार्टमेंट को छोड़कर कहीं जाने की इच्छा हो रही थी। उनकी शादी को सात साल हो चुके थे और उन्हें 17वीं मंजिल पर उनका छोटा-सा अपार्टमेंट पसंद था, जहां ऐसा व्यू था जो हर मुंबईकर चाहता है। लेकिन उन्होंने माता-पिता बनने फैसला लिया और उनकी ख्वाहिश पूरी हुई। जब वंदना का 6 महीने का मातृत्व अवकाश खत्म हो रहा था, एक और मेहमान आया- कोरोनावायरस। पहले उन्हें लगा कि इससे फायदा होगा क्योंकि घर से काम करने मिलेगा। वंदना मेडीकल टेक्नोलॉजी से जुड़ी हैं और हेमंत कोडर हैं। समय बचने के बावजूद वंदना बेटे को स्ट्रॉलर में पार्क घुमाने या खुद भी पति के साथ हरियाली में घूमने नहीं जा पाती थीं।
अक्टूबर 2020 में दंपति ने बोरिया-बिस्तर समेटा, अपना अपार्टमेंट ऑफिस सहकर्मी को किराये पर दिया और उससे आधे किराये में करजत में एक घर लिया, जिसके साथ छोटी-सी जमीन भी थी। करजत में अजय देवगन जैसे फिल्म सितारों के फार्म हाउस हैं। वंदना कहती हैं, ‘यहां जिंदगी आसान है। मुझे मुंबई से एक तिहाई दाम पर कामवाली मिल गई और हम वीकेंड पर करीबी दोस्तों को पार्टी देते हैं, वह भी सोशल डिस्टेंस नियमों के साथ।’ अक्टूबर से अब तक उनके कॅरिअर में भी काफी बदलाव हुए। वंदना को अगले मार्च तक घर से काम करने कहा गया है। उनके पति की कंपनी बंद हो गई और उन्होंने खुद का कोडिंग बिजनेस शुरू किया है। आज उनके लिए लोकेशन नहीं, बस अच्छा नेटवर्क मायने रखता है। पिछले हफ्ते उन्होंने मुझे फोन कर ऐसे घर तलाशने में मदद मांगी, जिसे वे साउथ मुंबई की प्रॉपर्टी बेचकर या बेचे बिना खरीद सकें।
सभी प्रवासी पक्षियों का नारा है ‘सारा जहां हमारा।’ ये परिवार बढ़ाने के लिए लगातार मुफीद मौसम तलाशते रहते हैं। इसके विपरीत इंसान एक ही जगह जड़ जमाते हैं, जिसे वे मेरा शहर या घर कहते हैं।
महामारी ने हमें पक्षियों का गुण दिया है। तकलीफ है, तो जगह बदल लो। अब कई परिवार घनी आबादी वाले शहर छोड़कर भीतरी इलाकों में जा रहे हैं। वे दिन गए जब गरीब परिवार शहरी इलाके से दूर घर खरीदते थे, जो 1990-2000 के दशकों में ट्रेंड था। आज कहीं से भी काम की सुविधा के चलते संपन्न परिवार भी भीतरी इलाकों में जा रहे हैं। बड़े शहरों के छोटे अपार्टमेंट में फंसे लोग इन नए प्रवासी पक्षियों की पहली पीढ़ी हैं। यकीन मानिए उपभोक्ता व्यवहार के शोधकर्ता नया प्रवासी ट्रेंड देख हैरान हैं क्योंकि भीतरी इलाकों में घर खरीद रहे लोगों की जीवनशैली, स्थानीय अर्थव्यवस्था की जीवनशैली से बिल्कुल अलग है। इसका मतलब है कि कई लोग गांव के सुख के लिए बड़े शहर की जिंदगी छोड़ने तैयार हैं। अब ‘आप कहां और किस शहर में रहते हैं’, इसका दिखावा मायने नहीं रखता। यानी आपके पते की तथाकथित चमक खो गई है।
अभी दो उम्र समूह हैं- पहला आईटी से जुड़े युवा दंपति और दूसरा रिटायर्ड लोग, जो उन कंक्रीट के जंगलों से दूर जाने के लिए हरियाली तलाश रहे हैं, जहां उन्होंने दशकों काम किया है। हेमंत कहते हैं, ‘काश हमें ऐसे विकल्पों की जानकारी पहले होती।’
फंडा यह है कि इससे पहले कि ‘मेट्रो प्रवासी पक्षियों’ के आने से टिअर-टू और टिअर-थ्री शहरों में दाम बढ़ें, सुनिश्चित करें कि आपकी जिंदगी में वे सभी ग्रामीण सुख हों, जिसे वे खोज रहे हैं, जैसे ज्यादा जगह और हरभरा इलाका।

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