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   दैनिक भास्कर - मैनजमेंट फ़ंडा    
एन. रघुरामन, मैनजमेंट गुरु 

‘स्वास्थ्य हितकारी’ का लेबल कभी फैशन से बाहर नहीं होगा

‘स्वास्थ्य हितकारी’ का लेबल कभी फैशन से बाहर नहीं होगा
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Nov. 1, 2021

‘स्वास्थ्य हितकारी’ का लेबल कभी फैशन से बाहर नहीं होगा


इस दिवाली आप कहीं भी जाएं, सजाकर रखे हुए स्वीट हैम्पर्स और मिठाई के डिब्बों की बाढ़ से नहीं बच सकते, सच में हर जगह।  


मेरी उम्र के कई लोगों को शायद पता होगा या भूल गए होंगे कि 1970 में यूपी पुलिस के पास किसी भी इलाके में जाकर ये जांचने का अधिकार था कि कहीं आप दूध से मिठाई या पनीर तो नहीं बना रहे। न सिर्फ यूपी, बल्कि कई राज्यों में किसी भी कार्यक्रम में 25 से ज्यादा लोगों  को खोया से बनी मिठाइयां परोसने की इजाजत नहीं थी। इसके अलावा पंजाब, दिल्ली, पश्चिम बंगाल और दक्षिण के राज्यों में भी  दुग्ध उत्पादों पर नियंत्रण के आदेश थे। 


और तब दूध पाउडर आयात किए गए और अमीरों के घरों में, जो खर्च उठा सकते थे हेल्थ ड्रिंक के तौर पर हॉर्लिक्स जैसे पेय दूध के विकल्प बन गए। ‘पाउंड’ की एक बोतल की कीमत 5 रु. थी, उस समय 450 ग्राम वजन उस नाम से मापा जाता था। उस समय 5 रु. भी ज्यादा होते थे। आर्थिक रूप से कमजोर और निचले मध्यम वर्ग के लोग ये खर्च नहीं उठा सकते थे। हॉर्लिक्स का एक प्रतिद्वंद्वी ओवलटाइन भी था, दूध की कमी को अवसर के रूप में ये हॉर्लिक्स से बहुत पहले भांप चुका था। ओवलटाइन स्वाद में भले ही वैसा नहीं था, पर उच्च मध्यमवर्गीय लोगों ने इसे पसंद किया। वजह शायद इसमें मिली दो चीजें थी- पहली चॉकलेट,  उन दिनों यह भी महंगी होती थी। और दूसरा अंडे का एक्सट्रेक्ट, ओवल नाम इसी का सूचक था। हमारे जैसे परंपरागत परिवार ने दोनों को नजरअंदाज किया, क्योंकि एक में अंडा था और दूसरा बजट से बाहर था। मुझे नहीं पता कि वो बहस कितनी सच्ची थी, क्योंकि उस समय मैं छोटा था।  


सालों पहले की ये शाकाहारी-मांसाहारी पेय पर होने वाली बहस मुझे याद आई, जब मैंने देखा कि मिठाइयों का कारोबार भी अब सस्ती और गैर-किफायती से पूरी तरह अलग स्तर पर पहुंच गया है। अगर आप सोच रहे हैं कि मैं शक्कर की चाशनी में नहाते मोतीचूर और बेसन के लड्डुओं के शुगर फ्री मिठाई में बदलने की बात कर रहा हूं तो आप थोड़ा गलत हैं। अब मुंबई में आपको शाकाहारी-मांसाहारी लड्डू मिल रहे हैं-चिकन और एग लड्डू !  हां, ‘मुर्ग लड्डू’ में चिकन, मावा और शक्कर है, जबकि ‘एग लड्डू’ में दिलचस्प रूप से उबले अंडे, गुड़, मावा और घी है, दावा किया जा रहा है कि ये प्रोटीन और कार्ब्स से भरपूर हैं। 


चूंकि लड्डू बनाने का कोई अलग नुस्खा नहीं है, आधुनिक लड्डू बनाने वाले वाकई प्रयोग कर रहे हैं। फिलहाल सिर्फ एक ही क्षेत्र में वे कुछ नहीं कर पा रहे हैं, वो है उसका गोलाकार ! एक और नई चीज है ‘लिकोर लड्डू।’ अब आपको लड्डू व्हिसकी, रेड वाइन, जिन और शैंपेन फ्लेवर में भी मिल रहे हैं। ये सिर्फ बीच में नहीं भरी होती, पूरे लड्डू में होती है, ताकि लड्डू के हर हिस्से में शराब का स्वाद आए। असल में यह उन लोगों के लिए है जो खाने के बाद थोड़ी-सी लिकोर पीना पसंद करते हैं क्योंकि ये मेल उन्हें मिठाई और लिकर दोनों साथ में देता है। 


डायबिटिक लोगों के लिए आटा, नमक और मसाले से बने ‘नमकीन लड्डू’ हैं। इसमें मैथी, खजूर, अदरक, नाचिनी और नारियल की कुछ वैरायटीज़ भी हैं। कुछ लड्डू 500 रुपए प्रति नग के भी हैं, अमीरों को आकर्षित करने के लिए जिन पर सोने का पाउडर है, जबकि 30 रुपए वाले रागी के लड्डू से गरीब भी खिंचे चले आते हैं, जो कि दिखने में भले अच्छे न हों, पर  आयरन और कैल्शियम से भरपूर माने जाते हैं। 


फंडा ये है कि अगर आप खानपान के व्यापार से जुड़े हैं, तो स्वास्थ्य मुद्दों पर ध्यान दें क्योंकि यह अब सिर्फ अमीरों से जुड़ा मामला नहीं रहा और ये फैशन से कभी बाहर नहीं जाने वाला।

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