दैनिक भास्कर - मैनजमेंट फ़ंडा
एन. रघुरामन, मैनजमेंट गुरु
'तारों में उलझी’ दुनिया को परवाह देगी सुकून
June 11, 2021
‘तारों में उलझी’ दुनिया को परवाह देगी सुकून
कम्प्यूटराइजेशन और आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (एआई) धीरे-धीरे इंसानी बुद्धिमत्ता की जगह ले रहे हैं, ऐसी दुनिया में कोई इंसान इनकी भेदती आंखों से बच नहीं सकता। मुंबई का उदाहरण देखें जहां 60 हजार लोग कोरोना के दूसरे टीके के लिए नहीं आए। अब उन्हें खोजकर देखा जा रहा है कि वे क्यों नहीं आ पाए। सिस्टम ऐसे लोगों के सात सेट बनाएगा। इनमें शामिल हैं- गर्भवती, कोविड संक्रमित, वैक्सीन लेने में अनिच्छा वाले, एक-दो दिन में लगवाने की इच्छा वाले, जो लोग मिले नहीं और जिन्हें टीका लग गया पर कोविन पर अपडेट नहीं हुआ।
दिलचस्प है कि मप्र में निवाड़ी जिले के पृथ्वीपुर खंड में पुलिस वाले कथित रूप से सड़क पर ऐसे लोगों रोक रहे हैं और जिन्होंने टीका नहीं लगवाया उनके गले में कंकाल की तस्वीर वाले पोस्टर लटका रहे हैं, जिनपर लिखा है, ‘मुझसे दूर रहें, मैंने अभी तक कोरोना का टीका नहीं लगवाया।’ जिन्होंने टीका लगवाया है, उन्हें राष्ट्रीय ध्वज वाला बैज दे रहे हैं, जिसपर लिखा है, ‘मैं सच्चा देशभक्त हूं क्योंकि मैंने कोरोना का टीका लगवा लिया है।’
कुछ लोगों को दोनों उपाय पसंद आएंगे, कुछ को नहीं। लेकिन तीसरी लहर की आशंका के बीच हर प्राधिकरण टीकाकरण का डर खत्म करने के लिए जागरूकता पैदा करने की कोशिश कर रहा है, जो फिलहाल वायरस का इकलौता समाधान है। कुछ की उनकी तेजी के लिए सराहना हो रही है और कुछ सवाल उठा रहे हैं, क्योंकि वे इसे ‘बेइज्जती’ समझते हैं।
लेकिन सर्वोच्च मानवीय गुण को सभी पसंद करेंगे, जिसकी नकल मशीनें कभी नहीं कर सकतीं। यह है प्रेम और परवाह। कोविड की दूसरी लहर ने कई बच्चों को अनाथ और महिलाओं को विधवा कर दिया और कई परिवार बर्बाद हो गए। सबसे बड़ी चिंता बच्चों और महिलाओं का ऐसे सुरक्षित माहौल में पुनर्वास है, जहां उन्हें घर जैसा महसूस हो, जीवन में नई उम्मीद मिले और माता-पिता तथा प्रियजनों का खोने के घाव भर सकें। बेंगलुरु का एसओएस बाल ग्राम ऐसे कुछ अनाथों की नया घर-परिवार पाने में मदद कर रहा है। बच्चों को घर का आभास देने के महत्व को समझते हुए एसओएस ग्राम ने परिवार की इकाइयां बनाई हैं, जहां आठ बच्चे अपनी मां (विधवा महिला जिसके दिल में बहुत प्यार और परवाह होती है) के साथ किसी सामान्य परिवार की तरह रहते हैं। एसओएस बालग्राम में रहे रहे 260 बच्चों में कुछ 18 वर्ष से ज्यादा के हैं। इसलिए ये युवा वयस्क पास के हॉस्टल में रहते हैं। एसओएस बालग्राम एक शानदार व्यवस्था पर आधारित है, जहां अनाथ बच्चों को परिवार जैसी छोटी इकाईयों में सुरक्षित रखा जाता है, जिसमें एक ‘मां’ (विधवा महिला) उनकी देखभाल करती है। हम सभी चाहते हैं कि घर लौटें तो एक परिवार मिले। बाल सुरक्षा निदेशालय के आकंड़ों के मुताबिक कर्नाटक में कुल 39 अनाथ बच्चे थे। कुल 29 परिवार प्रभावित हुए। इन सभी का उनके परिवार के साथ पुनर्वास कर दिया गया है।
कुछ वर्षों से चल रही इस संस्था ने बच्चों में बहुत समानुभूति पैदा की है। कुछ बच्चे जीवन में सेटल होने के बाद आकर अपनी ‘मांओं’ को ले जाते हैं। कुछ लड़के बहुत जिम्मेदार हैं और ग्राम छोड़ने के बाद अपनी बहन की देखभाल करते हैं।
फंडा यह है कि कम्प्यूटर और एआई के राज वाली, लगातार ‘तारों में उलझती दुनिया’ में प्रेम और परवाह ऐसी खासियत होगी, जो मानव जाति को सुकून देगी और दुनिया के खुशनुमा बनाएगी।