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  • Writer's pictureNirmal Bhatnagar

कर्मों से बनाये क़िस्मत अपनी…

Sep 26, 2023

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, दिन सभी के फिरते हैं और कर्म ज़रूर लौट कर वापस आते हैं। यह वो बात हैं जो हम सभी बचपन से ही सुनते चले आ रहे हैं और इतना ही नहीं, हम सभी ने अपने जीवन में कभी ना कभी, कोई ना कोई ऐसी घटना भी देखी है, जो हमारा विश्वास इन बातों के प्रति मज़बूत करती जाती है। अपनी बात को मैं मशहूर गीतकार जावेद अख़्तर और साहिर लुधियानवी के बीच सालों पहले घटी एक घटना से समझाने का प्रयास करता हूँ।


बात उस दौर की है जब जावेद अख़्तर विपरीत परिस्थितियों से गुजर रहे थे। इस दौर में उन्होंने श्री साहिर लुधियानवी से मदद लेने का निर्णय लिया और एक दिन वे वक्त लेकर उनसे मुलाकात करने के लिए पहुंच गये। श्री साहिर लुधियानवी ने श्री जावेद अख़्तर को उदास आता हुआ देख बोला ‘आओ नौजवान, क्या हाल है, उदास क्यों हो?’ जावेद सीधे सपाट शब्दों में बोले, ‘दिन मुश्किल चल रहे हैं, पैसे खत्म होने वाले हैं। अगर संभव हो तो आप मुझे कहीं कुछ काम दिलवा दें, बड़ा एहसान रहेगा।’ साहिर अपनी आदतानुसार जेब से कंघी निकालकर बालों पर घुमाते हुए बोले, ‘ज़रूर नौजवान, फ़क़ीर देखेगा कि वो क्या कर सकता है।’ इतना कहते हुए उन्होंने पास ही रखी मेज़ कि ओर इशारा करते हुए कहा, ‘हमने भी बुरे दिन देखें हैं नौजवान, फिलहाल ये ले लो, देखते हैं क्या हो सकता है।” जावेद अख्तर ने मेज़ की ओर देखा तो पाया कि उसपर दो सौ रुपए रखे हुए थे। जावेद ने तुरंत वो पैसे ले लिये।


इस विषय में चर्चा करते हुए जावेद ने एक बार कहा था, ‘वो चाहते तो पैसे मेरे हाथ पर भी रख सकते थे, लेकिन ये उस आदमी की सेंसिटिविटी थी कि उसे लगा कि कहीं मुझे बुरा न लग जाए। ये उस शख्स का बड़प्पन था कि पैसे देते वक्त भी वो मुझसे नज़र नहीं मिला रहे थे।’ बीतते समय के साथ जावेद का साहिर के साथ उठना बैठना बढ़ गया क्योंकि त्रिशूल, दीवार और काला पत्थर जैसी फिल्मों में कहानी सलीम-जावेद की थी, तो गाने साहिर साहब के। अक्सर वो लोग साथ बैठते और कहानी, गाने, डायलॉग्स वगैरह पर चर्चा करते। इस दौरान जावेद अक्सर शरारत में साहिर से कहते, ‘साहिर साहब! आपके वो दो सौ रुपए मेरे पास हैं, दे भी सकता हूँ, लेकिन दूंगा नहीं।’ साहिर इस बात को सुन सिर्फ़ मुस्कुराते। साथ बैठे लोग जब उनसे पूछते कि कौन से दो सौ रुपए तो साहिर कहते, ‘इन्हीं से पूछिए।’, ये सिलसिला इसी तरह कई सालों तक चलता रहा।


साहिर और जावेद अख़्तर की मुलाकातें होती रहीं, अदबी महफिलें होती रहीं, वक्त गुज़रता रहा। 25 अक्टूबर 1980 की देर शाम जावेद अख़्तर के पास साहिर के फैमिली डॉक्टर, डॉ कपूर का कॉल आया। उनकी आवाज़ में हड़बड़ाहट और दर्द दोनों था। उन्होंने बताया कि साहिर लुधियानवी नहीं रहे। उन्हें हार्ट अटैक आया था। जावेद अख़्तर के लिए यह बहुत बड़ा झटका था। वे तुरंत उनके घर पहुँचे और उर्दू शायरी के सबसे करिश्माई सितारे को सफेद चादर में लिपटा देख सदमे में आ गये। वहां उनकी दोनों बहनों के अलावा बी. आर. चोपड़ा समेत फिल्म इंडस्ट्री के काफ़ी सारे लोग मौजूद थे।


ख़ैर, परिवार और दोस्तों ने मिलकर साहिर की देह को जूहू कब्रिस्तान में दफनाने का इंतज़ाम किया। रात भर के इंतज़ार के बाद साहिर को सुबह-सुबह सुपर्द-ए-ख़ाक किया गया। साथियों ये वही कब्रिस्तान है जिसमें मोहम्मद रफ़ी, मजरूह सुल्तानपुरी, मधुबाला और तलत महमूद को दफ़नाया गया था। साहिर को पूरे मुस्लिम रस्म-ओ-रवायत के साथ दफ़्न किया गया और कुछ समय बाद जनाज़े में साथ आए तमाम लोग वापस लौट गए। लेकिन जावेद अख़्तर काफी देर तक साहिर की कब्र के पास बैठे रहे। काफी देर बाद जावेद अख़्तर नम आँखों के साथ उठे और वापस जाने लगे और जुहू कब्रिस्तान से बाहर निकल कर अपनी कार की ओर जाने लगे, तभी किसी ने उन्हें आवाज़ दी। जावेद अख्तर ने पलट कर देखा तो साहिर साहब के एक ख़ास दोस्त अशफाक साहब वहाँ खड़े थे। श्री अशफ़ाक उस वक्त की एक बेहतरीन राइटर वाहिदा तबस्सुम के शौहर थे, जिन्हें साहिर से काफी लगाव था। अशफ़ाक हड़बड़ाते हुए नाईट सूट में आये और बोले, ‘आपके पास कुछ पैसे पड़ें हैं क्या? वो कब्र बनाने वाले को देने हैं, मैं तो जल्दबाज़ी में ऐसे ही आ गया।’, जावेद साहब ने अपना बटुआ निकालते हुए पूछा, ‘हाँ-हाँ बताइए कितने रुपए देने हैं?’ अश्फ़ाक साहब बोले, ‘दो सौ रुपए…’


दो सौ रुपये सुनते ही जावेद साहब चौंक गये क्योंकि इतने ही पैसे उन्होंने साहिर साहब से ज़रूरत के समय लिए थे। दोस्तों सोच कर देखिए उस पल जावेद साहब के मन में क्या विचार आये होंगे? निश्चित तौर पर वो ईश्वर, अल्लाह, वाहेगुरु, ईसा मसीह आदि को याद कर कह रहे होंगे, ‘ईश्वर तेरा इंसाफ़ या काम करने का तरीक़ा ही निराला है। जी हाँ साथियों ईश्वर, अल्लाह, वाहेगुरु, ईसा मसीह या आप जिसको मानते हों उन्हें याद कर देख लीजिए। वे सभी अनोखे सूत्रों के आधार पर आपके करमों पर आधारित बनाई अपनी योजना के अनुरूप कार्य करते हैं। इसीलिए आपके द्वारा किया गाया कर्म जीवन के किसी ना किसी मोड़ पर कहीं ना कहीं लौट कर वापस आता है। जैसा, उपरोक्त क़िस्से में साहिर साहब के साथ हुआ था। इसलिए दोस्तों जीवन में हर पल अच्छे कर्म करें…


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

nirmalbhatnagar@dreamsachievers.com


Pic Credit : koimoi.com

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