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Writer's pictureNirmal Bhatnagar

विपरीत दौर में भी जिएँ स्वीकारोक्ति के भाव से…

Feb 4, 2024

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…



दोस्तों, प्रकृति में एक ही चीज़ शाश्वत है, परिवर्तन अर्थात् आज जो है, वह कल नहीं रहेगा और जो कल होगा उसका जाना भी एकदम तय है। फिर चाहे आप ऋतुओं की बात कर लीजिए या प्राकृतिक संसाधनों की या फिर मनुष्य की। जो इस दुनिया में आया है, वह जाएगा। यहाँ कुछ भी स्थायी नहीं है। अर्थात् परिवर्तन संसार का नियम है, इसलिए प्रकृति के इस नियम की स्वीकारोक्ति हमारे जीवन में अवश्य होनी ही चाहिए। जो मनुष्य इस नियम को स्वीकार नहीं करते हैं या जिनकी मनःस्थिति इस नियम की समर्थक नहीं होती है, वे निश्चित ही जीवन में सुख, शांति और ख़ुशी का लुत्फ़ नहीं उठा पाते हैं। वैसे इसी बात को आप दूसरे नज़रिए से भी देखे सकते हैं। जिस तरह विपरीत धार में तैरने में ज़्यादा परिश्रम लगता है, ठीक उसी तरह परिवर्तन को ना स्वीकारना जीवन में गतिरोध बढ़ाता है। अर्थात् जीवन में स्वीकारोक्ति के भाव के बिना आप जितना आगे बढ़ेंगे आपको उतना ही अधिक परिश्रम करना होगा। इसके विपरीत जब आप प्रकृति के इस नियम को स्वीकार लेते हैं तब आप अपने अंदर के द्वन्द याने अंतर्द्वन्द को जीत पाते हैं।


इसलिए दोस्तों, जीवन में परिस्थिति कैसी भी, याने अच्छी, बुरी या कितनी भी चुनौती भरी क्यों ना हो उसे स्वीकारना ही लाभप्रद रहता है अन्यथा आप अनावश्यक तौर पर ही आंतरिक गतिरोध बढ़ा लेते हैं, जो आपके सुख, ख़ुशी और शांति के साथ ही भविष्य की संभावनाओं को हर लेता है। इसी बात को मैं आपको एक दूसरे उदाहरण से समझाने का प्रयास करता हूँ। मान लीजिए, आपने बीज के वृक्ष बनने की संभावनाओं को देखते हुए उसे ज़मीन में बोने का निर्णय लिया। लेकिन बीज को लगा कि ऐसा करने से वह अपने अस्तित्व को खो देगा। इसलिए वह इससे इनकार कर देता है, अर्थात् वह धरती के गर्भ में दबने और फिर प्रस्फुटित होने का विरोध करता है। अब आप बताइए कि क्या वह बीज कभी वृक्ष बन पाएगा? निश्चित तौर पर नहीं। सीधी सी बात है, अगर बीज ज़मीन के गर्भ में दबाए जाने और प्रस्फुटित होने से इनकार करेगा तो कुल मिलाकर वह वृक्ष बनने की अपनी संभावनाओं से इनकार करेगा। इसलिए कहा जाता है, ‘जो मनुष्य परिवर्तन को स्वीकार नहीं करता है, वो अपने जीवन में आगे बढ़ने और आनंदमय रहने की संभावनाओं को भी कम कर देता है।’


इसलिए जीवन में कभी भी विपरीत दौर आये तो हमेशा ख़ुद को याद दिलाएँ कि, ‘जीवन में सदैव एक जैसी स्थिति-परिस्थिति नहीं रहती है। जिस तरह सर्दी के बाद गर्मी, रात के बाद दिन और पतझड़ के बाद बसन्त आता है, ठीक इसी तरह जीवन में विपरीत दौर के बाद अच्छा समय आता है।’ इसलिए अगर आप विपरीत दौर में भी अपने फ़ोकस में सुख, शांति और सुखी जीवन को रखेंगे तो निश्चित तौर पर आप शांतिपूर्ण तरीक़े से बदलाव को स्वीकार पाएँगे। इसलिए कहते हैं, ‘जिधर ध्यान लगाया उधर तरक़्क़ी!’ अर्थात् जिस आदत, जिस कार्य, जिस व्यक्ति या जिस भावना पर आप अपना सौ प्रतिशत देने लगते हैं; जिसपर ध्यान लगाने अर्थात् अपना फ़ोकस रखने लगते हैं, उस क्षेत्र में आप निश्चित तौर पर प्रगति करने लगते हैं। इसलिए विपरीत दौर को कृतज्ञता के साथ स्वीकार कर, सकारात्मक जीवन जीना ही आपको खुश और सुखी रहते हुए शांतिपूर्ण जीवन जीने का मौक़ा देता है।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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