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  • Writer's pictureNirmal Bhatnagar

आत्म-दर्शन का मार्ग…

Mar 31, 2024

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…



दोस्तों, कहते हैं ना ‘बिना समुद्र की गहराई में जाए मोती नहीं मिलते…’ या ‘मथे बिना मक्खन नहीं निकलता…’ ठीक इसी तरह जब तक इंसान अपने अंतर्मन को मथ कर, दिल की गहराइयों में उतारता नहीं है, तब तक ख़ुद को खोज नहीं पाता है। ख़ुद को खोजना याने यह जानने के साथ मान पाना कि वह सिर्फ़ एक शरीर नहीं है। उदाहरण के लिए हम सब जानते हैं कि भगवान श्री कृष्ण ने गीता जी के माध्यम से हम सभी को बताया है कि ‘आत्मा को न शस्त्र छेद सकते हैं, न अग्नि जला सकती है, न जल उसे गला सकता है और ना ही हवा उसे सुखा सकती है। इस आत्मा का कभी भी विनाश नहीं हो सकता है, यह अविनाशी है।’ लेकिन उसके बाद भी हमारी जीवनशैली अपने इस जन्म, इस जन्म में मिले शरीर, परिवार और आय के साधन के आसपास मैं… मैं…करती घूमती रहती है। हालाँकि मैं पूर्णतः ग़लत हो सकता हूँ लेकिन उसके बाद भी मेरी नज़र में इसकी मुख्य वजह अपने मूल स्वरूप याने आत्मा को ना पहचान पाना है।


अपनी बात को मैं आपको एक उदाहरण से समझाने का प्रयास करता हूँ। चलिए, मेरे एक साधारण से प्रश्न का जवाब दीजिए, खुले में रखा एक कटोरा दूध कितने दिनों तक उपयोग के लिए उत्तम रहेगा? आप भी सोच रहे होंगे क्या वाहियात प्रश्न पूछ रहा हूँ। छोड़िए ना इस बात को, आप तो सिर्फ़ यह बताइए दूध कितने समय तक उपयोग में लेने लायक़ रहेगा? निश्चित तौर पर आपका जवाब होगा कुछ घंटे। सही कहा ना मैंने? चलिए, अब हम इस दूध के स्थान पर एक कटोरा दही को खुले में रख देते हैं और मैं आपसे वही प्रश्न एक बार फिर दोहराता हूँ, ‘यह दही कितने समय तक उपयोग में लेने लायक़ रहेगा?’ आप कहेंगे, ‘शायद एक-डेढ़ दिन उसके बाद इसमें खटास आ जाएगी और यह खाने में उतना अच्छा नहीं लगेगा। अर्थात् दही की लाईफ़ को एक-दो दिन माना जा सकता है। चलिए अब हम दूध-दही के स्थान पर एक कटोरे में शुद्ध घी रखते हैं और मैं आपसे वही प्रश्न एक बार फिर दोहराता हूँ, ‘यह घी कितने समय तक उपयोग में लेने लायक़ रहेगा?’ आप कहेंगे, ‘क्या फ़ालतू की बात कर रहे हो। भला शुद्ध घी कभी ख़राब होता है क्या? वह तो हमेशा उपयोग में लेने लायक़ रहेगा।


हो सकता है अब आप सोच रहे हों, इन सब बातों का ‘आत्मा’ के अस्तित्व, उसके अविनाशी होने या नाशवान शरीर में वास करने से क्या लेना देना है? तो मैं आपको पहले इस प्रश्न का अपनी थोड़ी सी समझ से उत्तर देने का प्रयास करता हूँ। उपरोक्त प्रयोग में हमने देखा था कि तीनों ही चीजें याने दूध, दही और घी, दूध का ही हिस्सा है। लेकिन दूध एक दिन में खराब हो जाता है, दही दो-तीन दिनों में लेकिन शुद्ध घी कभी खराब नहीं होता। ठीक इसी तरह आत्मा इस नाशवान शरीर में होते हुए भी ऐसी है कि उसे कभी नष्ट नहीं किया जा सकता।


यह जानने के बाद हमारे मन में एक और प्रश्न उठना लाज़मी है कि ‘क्या हम कभी आत्मा को महसूस कर सकते हैं? उसे देख सकते हैं?’ तो मैं कहूँगा बिलकुल, लेकिन आपको वही प्रक्रिया अपनानी होगी जो दूध में से घी निकालने के लिए अपनाई थी। अर्थात् जब आप सामान्य अवस्था में दूध को देखते हैं तो आपको उसमें दही या घी की मौजूदगी का एहसास नहीं होता है। लेकिन जब आप दूध में जामन डाल कर उसे बिना हिलाये-डुलाये रखते हैं तब वह दही का रूप लेता है। जब इस दही को मथा जाता है तो इस दही में से मक्खन निकलता है और जब इस मक्खन को सही तापमान पर घंटों औटाया जाता है तब उसमें से हमें शुद्ध घी मिलता है।


दूध को दोस्तों, आप शरीर मान सकते हैं। ख़ुद को खोजने के सद विचार को जामन और अंत में उन सद्विचारों के साथ सालों तक इस जीवन को ख़ुद को खोजने और देने के भाव के साथ मथना होता है या यूँ कहूँ सालों तक इसे साधना व तपस्या की आग में तपाना होता है, तब जाकर हम आत्म-दर्शन कर पाते हैं। तो आईए साथियों, मिलकर एक बार इस आत्म-दर्शन के मार्ग पर आगे बढ़ते हैं…


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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