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  • Writer's pictureNirmal Bhatnagar

ईश्वर पर अटूट विश्वास और सकारात्मक प्रयास से पूरी करें इच्छाएँ…

Apr 5, 2024

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…



आईए दोस्तों, आज के लेख की शुरुआत एक कहानी से करते हैं। बात कई साल पुरानी है, रामपुर के राजा वैसे तो बहुत समृद्ध और खुश थे, लेकिन कोई संतान ना होने के कारण हमेशा दुखी और चिंतित रहते थे। इसीलिए अक्सर वे अपने सलाहकारों, राज गुरु की सलाह पर कभी किसी मंदिर में जाकर विशेष पूजा किया करते थे तो कभी कोई टोना-टोटका। एक बार राजा को किसी ने पुत्र प्राप्ति के लिये एक तांत्रिक से मिलने की सलाह दी। राजा ने तुरन्त सलाह पर अमल किया और तत्काल ही तांत्रिक के पास पहुँच गया। तांत्रिक ने राजा को सुझाव दिया कि अगर वे अमावस के दिन किसी बच्चे की बलि दे देंगे तो उन्हें पुत्र की प्राप्ति हो सकती है।


राजा उपाय सुन खुश हो गये और उन्होंने पूरे राज्य में ढिंढोरा पिटवा दिया कि जो भी व्यक्ति राजा को अपना बच्चा बलि चढ़ाने के लिए देगा राजा उसे बहुत सारा धन देगा। राजा की घोषणा राज्य में रहने वाले एक बहुत ही ग़रीब परिवार के मुखिया ने भी सुनी, जिसके घर में ५-६ बच्चे थे। इनमें से एक बच्चा ऐसा भी था जो अपना पूरा समय पूजा-पाठ में ही लगाया करता था और अगर किसी दिन थोड़ा बहुत अतिरिक्त समय मिल भी जाये तो वह संतों का सत्संग सुनने चले ज़ाया करता था। इसलिए परिवार के सभी लोग इस बच्चे को नाकारा और निकम्मा माना करते थे।


मुखिया ने सोचा क्यों ना मैं इस निकम्मे को ही राजा को दे दूँ। वैसे भी यह कोई काम-धाम तो करता नहीं है और मुफ़्त की रोटियाँ तोड़ता है। दूसरी बात हमें राजा से जो पैसे मिलेंगे उससे मैं बाक़ी बच्चों का अच्छे से ख़याल रख पाऊँगा। विचार आते ही मुखिया ने बच्चे को राजा को दे दिया और राजा ने उसे बच्चे के एवज़ में ढेर सारा धन दिया। राजा के तांत्रिकों द्वारा बच्चे की बलि देने की पूरी तैयारी की गई।


अमावस के दिन तांत्रिकों द्वारा राजा को बच्चे सहित बलि देने के स्थान पर बुलाया और बच्चे से उसकी अंतिम इच्छा पूछी। बच्चे ने बोला मेरे लिये थोड़ी रेत बुलवा दी जाए। राजा के इशारे पर तुरंत ऐसा ही किया गया। बच्चे ने रेत को चार हिस्सों में बाँट कर उसका ढेर बना लिया और फिर उसने एक-एक कर चार में से तीन ढेरों को तोड़ दिया और फिर चौथे ढेर के सामने हाथ जोड़ कर बैठ गया। लगभग १० मिनिट बाद वह उठा और राजा से बोला, ‘महाराज मैं अब तैयार हूँ। आप अब जो चाहें वह कर सकते हैं।’


बच्चे को मिट्टी के ढेर बना कर तोड़ता देख वहाँ मौजूद तांत्रिकों को लगा कि उसने कोई ना कोई तांत्रिक क्रिया की है। इसलिए वे थोड़ा सा डर गए और उन्होंने बच्चे से पूछा बाक़ी सब तो ठीक है, पहले तुम यह बताओ कि यह तुम क्या कर रहे थे? सवाल सुन बच्चा मुस्कुराने लगा, जिसे देख राजा बोले, ‘जल्दी बताओ तुम अभी क्या कर रहे थे?’ प्रश्न सुन बच्चा एकदम गंभीर हो गया और बोला, ‘राजन, पहली ढेरी मेरे माता-पिता की थी। मेरी रक्षा करना उनका कर्तव्य था, परंतु वे अपने कर्तव्य का पालन नहीं कर सके और उन्होंने पैसे के बदले मुझे आपको सौंप दिया। इसलिए उस ढेरी को मैंने तोड़ दिया।


दूसरी ढेरी मेरे सगे-संबंधियों की थी, उनका कर्तव्य माता-पिता को समझाना; सही राय देना था। लेकिन उन्होंने भी ऐसा नहीं किया इसलिए मैंने उस ढेरी को भी तोड़ दिया। तीसरी रेत की ढेरी राजन आपका प्रतीक थी। राजा के रूप में आपका धर्म और कर्तव्य अपनी प्रजा की रक्षा करना था। लेकिन मैं अच्छे से देख पा रहा हूँ कि राजा ही मेरी बलि देना चाह रहा है। अर्थात् अपने कर्तव्य से मुकर रहा है इसलिए मैंने वह ढेरी भी तोड़ दी। अंतिम रेत की ढेरी ईश्वर का प्रतीक है, जिस पर मुझे अभी भी भरोसा है। इसलिए यह एक ढेरी मैंने छोड़ दी।


बच्चे के जवाब ने राजा को अंदर तक हिला दिया। उन्हें एहसास हो गया था कि पुत्र प्राप्ति के लालच में आज वे कितनी बड़ी गलती या यूँ कहूँ पाप करने जा रहे थे। उसी पल राजा के मन में एक विचार आया, ‘बलि देने के बाद भी पता नहीं मुझे पुत्र प्राप्ति होती या नहीं? इसलिए अनावश्यक पाप का भागी बनने से बेहतर तो यही है कि इस समझदार, ज्ञानी और ईश्वर भक्त बच्चे को ही अपना पुत्र बना लिया जाए।’ विचार आते ही राजा ने बच्चे को अपना पुत्र बना लिया और उसे अपने राज्य का उत्तराधिकारी घोषित कर दिया।


याद रखियेगा दोस्तों, अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए दूसरे को नुक़सान पहुँचाना कभी भी लाभप्रद नहीं हो सकता है क्योंकि अंत में यह आपके अंतर्मन में नकारात्मक भाव ही छोड़ता है। इसके विपरीत जब आप विपरीत दौर में ईश्वर पर विश्वास रखते हुए ख़ुद को सकारात्मक बनाए रखते हैं तब आप ख़ुद को अनावश्यक अहित से बचा लेते हैं।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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