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  • Writer's pictureNirmal Bhatnagar

ख़ुद से और दूसरों से करें प्रेमपूर्ण व्यवहार…

Apr 16, 2024

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…



दोस्तों, जीवन में घटने वाली अच्छी, बुरी, अपेक्षित, अनपेक्षित घटनाओं पर आपकी प्रतिक्रिया कहीं ना कहीं आपके चरित्र, जीवन के प्रति आपके नज़रिए का प्रतिबिंब होती है। इसका अनुभव मुझे हाल ही की जलगाँव से भोपाल यात्रा के दौरान हुआ। इस शुक्रवार याने तेरह तारीख़ की रात्रि को मैं जलगाँव से भोपाल जाने के लिए २२२२१ राजधानी एक्सप्रेस में बैठा। अभी ट्रेन चली ही थी कि एक युवा मेरे पास आए और बोले, ‘सर, मेरे साथ मेरी पत्नी और ६ माह का एक छोटा बच्चा है। क्या आप अपनी लोअर बर्थ हमारी अपर बर्थ से चेंज कर सकते हैं?’ मैंने तुरंत ‘हाँ’ कहते हुए उन्हें बताया कि मैं सिर्फ़ भोपाल याने अगले स्टेशन तक ही इस ट्रेन में यात्रा कर रहा हूँ, तो वह युवा थोड़ा निराश हो गया और बोला, ‘मुझे तो नई दिल्ली तक जाना है। चलिए कोई बात नहीं मैं दूसरों से बात करके देखता हूँ।’


इसके पश्चात उस युवा ने उसी कोच में बैठे एक और सज्जन से अपना यही निवेदन दोहराया, जिसे उन सज्जन ने यह कहते हुए नकार दिया, ‘जो बर्थ आपकी क़िस्मत में थी वह आपको मिल गई है। आप अपनी यात्रा उसी पर पूरी कर लें। मैंने बड़ी मुश्किल से इस लोअर बर्थ को बुक करा है।’ कुछ देर बाद जब उस युवा ने एक बार फिर उन सज्जन से निवेदन किया तो वे उसपर चिढ़ते हुए बोले, ‘इस पूरे कोच में, क्या मैं ही मिला हूँ तुम्हें परेशान करने के लिए? जाइए किसी और से बात कीजिए। नहीं तो टीसी के पास जाकर बात कीजिए।’


उन सज्जन के इस रूखे व्यवहार ने शायद उस युवा की उम्मीद ख़त्म कर दी थी। वह चुपचाप अपनी पत्नी के पास जाकर बैठ गया और उसे एडजस्ट करने के लिए समझाने लगा। मुझे उनकी परेशानी साफ़ समझ आ रही थी और मेरा मन कह रहा था कि मुझे उन्हें अपनी सीट दे देना चाहिए। लेकिन साथ ही मन में विचार आ रहे थे कि रात को २ बजे मेरे भोपाल उतरने के बाद उनका क्या होगा? उसी पल एक दूसरा विचार मेरे मन में आया कि कम से कम वे रात्रि २ बजे तो यात्रा आराम से कर लेंगे। विचार आते ही मैं उनके पास गया और उन्हें अपनी सीट ऑफर करते हुए बोला, ‘आप मेरी सीट से एक्सचेंज कर लीजिए। अगर भोपाल से कोई अन्य यात्री आए तो आप उनसे रिक्वेस्ट करके देख लीजियेगा अन्यथा आप आराम से दिल्ली पहुँच जाएँगे।’

वह युवा तुरंत इसके लिए राज़ी हो गया और अपना सामान लेने के लिए चला गया। उसके जाते ही सामने वाली सीट पर बैठे सज्जन, जिन्होंने कुछ देर पहले उन्हें सीट देने से मना किया था, मुझ से बोले, ‘आप बड़े सीधे हैं जो इनकी बात आसानी से मान गए। जिन्हें आपने सीट दी है ना वे दोनों युवा हैं, आराम से ऊपर की सीट पर चढ़ कर यात्रा कर सकते हैं। लेकिन उसके बाद भी उन्हें नीचे की सीट चाहिए।’ इतना कह कर वे एक पल के लिये चुप हुए फिर बोले, ‘एक बार मुझे पैर में गंभीर चोट लग गई थी। उस समय ट्रेन यात्रा के दौरान मेरी परेशानी किसी को समझ नहीं आई, किसी ने मुझसे सीट चेंज नहीं करी। तब से मैंने भी निर्णय ले लिया था कि मैं इस विषय में कभी किसी से समझौता नहीं करूँगा।’


उन सज्जन की बात सुन मैं मुस्कुरा कर रह गया। असल में वे एक पुराने नकारात्मक अनुभव के कारण सेवा या मदद करने का एक मौक़ा खो रहे थे। शायद वे नहीं जानते थे कि सेवा या मदद का असली या वास्तविक मूल्य भगवान ही दे सकते हैं, इंसान नहीं। याद रखियेगा साथियों लोगों से अपेक्षा रखकर की गई मदद या सेवा एक ना एक दिन निराशा का कारण बनती है। जैसा कि उपरोक्त क़िस्से में उन सज्जन के साथ हुआ था।


अगर आप वाक़ई एक अच्छे या श्रेष्ठ इंसान बनना चाहते हैं तो अपेक्षा रहित मदद या सेवा करना सीखिए। वैसे भी सेवा या मदद कोई व्यापार करने की वस्तु थोड़ी है, जिसे ख़रीदा या बेचा जा सके। व्यापारिक नज़रिए से की गई सेवा या मदद आपको दुनिया की नजरों में सम्मान दिला सकती है, ईश्वर की नज़रों में नहीं। ठीक इसी तरह सेवा या मदद प्रसिद्धि कमाने का नहीं, अपितु पुण्य कमाने का साधन है। अगर आप सेवा या मदद करते हुए जीवन में आगे बढ़ेंगे तो एक ना एक दिन प्रभु के आशीर्वाद से आपको इसका फल अवश्य मिलेगा। इसलिए दोस्तों प्रतिदिन ख़ुद को याद दिलाइये, ‘मैं कभी भी, किसी से भी, किसी भी प्रकार के बदले की भावना नहीं रखूंगा और ना ही बदले का व्यवहार करूंगा। मैं तो हमेशा अपने आप से और दूसरों से प्रेमपूर्ण व्यवहार करूंगा।’


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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