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  • Writer's pictureNirmal Bhatnagar

जी भर जीना हो तो अच्छी संगत से लोभ को छोड़ें…

Mar 9, 2023

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, पूर्व में हमने, ‘विचार आपको बना भी सकते हैं, तो मिटा भी सकते हैं!’, विषय पर चर्चा करी थी। आज एक शख़्स ने उसी के आधार पर प्रश्न करते हुए पूछा कि हम अपने विचारों को कैसे नियंत्रित कर सकते हैं? हालाँकि इस विषय में मैंने काफ़ी विस्तार से उस लेख में बताया था कि किस तरह एक अच्छा विचार आपके जीवन को संवारने की शक्ति रखता है और वहीं एक नकारात्मक या प्रदूषित विचार आपकी सोचने, समझने की शक्ति को खत्म कर, आपको जीवन में भटका सकता है। इसलिए, उसे दोहराने के स्थान पर आज हम संगति और विचारों के सम्बंध और जीवन पर पड़ने वाले उसके प्रभाव को समझने का प्रयास करते हैं।


हम सभी ने कभी ना कभी अपने माता-पिता से बुरे लोगों से दूर रहने और अच्छे दोस्त चुनने के विषय में सुना है। इसके पीछे की मुख्य वजह उनका यह मानना है कि संगत से रंगत बदलती है। याने आप जिस माहौल में रहते हैं, वैसे बन जाते हैं। असल में जीवन पर संगति का असर बहुत जल्दी होता है। अगर आप सही लोगों अर्थात् सत्संगी, इंसानियत या मानवीयता पर आधारित नियमों पर जीवन जीने वाले सच्चे लोगों के साथ रहते हैं, तो आप भी वैसे बनते जाते है और अगर आप कुमार्ग पर चलने वाले लोगों के बीच रहते हैं, तो वैसे बन जाते हैं। वैसे मैं इसी बात को एक अन्य तरीके से भी आपको बताना चाहूँगा, मान लीजिए कोई इंसान कुमार्ग पर चल रहा है। लेकिन जीवन के किसी मोड़ पर वह किसी सत्संगी के सम्पर्क में आ जाता है, तो उसमें भी सकारात्मक और सात्विक ऊर्जा का संचार होने लगता है। अर्थात् अगर आप एक अच्छा और सच्चा जीवन जीना चाहते हैं तो इस बात से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि आप पूर्व में किस संगत में रह रहे थे, फ़र्क़ तो सिर्फ़ इससे पड़ेगा कि आप आज और अब किस संगत में रह रहे हैं।


इसका सीधा-सीधा अर्थ हुआ संगत ने हमारे विचारों और विचारों ने हमारे कर्म को और कर्म ने परिणाम को बदला। चलिए इसी बात को थोड़ा और गहराई से समझने का प्रयास करते हैं। जब आप वर्तमान में रहते हैं तब आप चेतन अवस्था में रहते हैं। इसका अर्थ हुआ उस समय आपके अंदर बहने वाले विचार भी चेतन रहते हैं। इस आधार पर हम कह सकते हैं कि चेतना प्रवाहशील रहती है। जिस तरह पानी को जिधर दिशा मिल जाती है, वह उधर ही बहने लगता है। ठीक उसी तरह जब चेतन विचारों की गंगा या चेतना को सही माहौल मिल जाता है तो वह सही दिशा में बहने लगते हैं। यही सही विचारों की गंगा आपके निर्णय लेने की क्षमता को सकारात्मक तरीके से प्रभावित कर आपके कर्म बदलकर, परिणाम को बदलती है; आपके जीवन, जीवन की दिशा और दशा को बदलती है।


इसका सीधा-सीधा अर्थ हुआ कि इंसान हर पल बदल रहा है। अच्छे आदमी से मिलकर अच्छे होने का सोचने लगता है तो बुरे आदमी से मिलकर बुरे होने के विचार आने लगते हैं। इस आधार पर कहा जाए तो सकारात्मक बदलाव के लिए हमें सबसे पहले अपने मन को वश में करना सीखना होगा क्योंकि यही अपने चंचल स्वभाव के कारण पूरे जीवन भर इधर-उधर भटकता रहता है। यह प्रवृति बिलकुल भिखारी समान होती है, जिस तरह भिखारी कभी तृप्त नहीं होता, उसी तरह हमारा मन भी हमेशा अतृप्त रहता है। ऐसे में ग़लत संगत द्वारा पैदा किए ग़लत विचार हमारे मन को ग़लत दिशा देकर लोभ को बढ़ाते हैं और लोभ आपको किसी भी क़ीमत पर उसे पूरा करने के लिए प्रेरित करता है। इससे प्रभावित हो आप लोभ को किसी भी क़ीमत पर पूरा करने में लग जाते हैं। दूसरे शब्दों में कहूँ दोस्तों, तो यही लोभ हमारे जीवन में अनावश्यक की भागदौड़ बढ़ा, हमारी शांति, ख़ुशी और सुख को छीन लेता है। इसलिए दोस्तों सुखमय, शांतिपूर्ण और प्रसन्नता के साथ जीवन जीने के लिए हमें हमेशा लोभ को छोड़ कर जीना सीखना होगा, जो अच्छे विचारों याने अच्छी संगत में रहने से ही सम्भव होगा।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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