top of page
  • Writer's pictureNirmal Bhatnagar

दिल की सुने, दुनिया की नहीं…

June 28, 2023

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, लोगों द्वारा आपके बारे में बनाई राय के बारे में चिंता करना या उस राय को ध्यान में रख कर निर्णय लेना ही आपकी सफलता की राह का सबसे बड़ा रोड़ा है। ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि इस स्थिति में आपके निर्णय आपके नहीं अपितु बाहरी दुनिया के होते हैं। इसीलिए तो कहा जाता है, ‘सबसे बड़ा रोग, क्या कहेंगे लोग!’ लेकिन हो सकता है, आप में से कुछ लोगों को मेरी यह बात अतिशयोक्तिपूर्ण लग रही होगी। लेकिन यक़ीन मानिएगा सारी दुनिया को अपने पक्ष में रख कर जीवन में आगे बढ़ना सम्भव ही नहीं है। आप कैसा भी निर्णय ले लीजिए, जिसको कमी निकालनी है, वह उसमें कमी खोज ही लेगा। आईए दोस्तों, अपनी बात को मैं आपको एक कहानी के माध्यम से समझाने का प्रयास करता हूँ।


बात कई साल पुरानी है, एक साधु महाराज नदी किनारे पत्थर पर सर रख कर आराम कर रहे थे। साधु महाराज को पत्थर पर सर रख आराम करता देख वहाँ से गुजरने वाली महिलाएँ आपस में बात करते हुए बोली, ‘देखो-देखो, पत्थर का तकिया लगाए उस ढोंगी साधु को। खुद तो तकिए का मोह छोड़ नहीं पा रहा है, दुनिया को मोह-माया के बंधन को छोड़ने की सीख देता है।’ महिला की बात सुन साधु ने सिर के नीचे से पत्थर निकाल कर दूर फेंक दिया। उसे ऐसा करते देख दूसरी महिला बोली, ‘देखा बहन तुमने, उस साधु ने अपना तकिया फेंक दिया। रोष तो अभी गया नहीं है, फिर भी साधु बना घूम रहा है।’ दूसरी महिला की बात सुन साधु सोच में पड़ गया कि अब क्या किया जाए? साधु को दुविधा में देख एक तीसरी महिला उनके पास गई और बोली, ‘महाराज, साधारण लोग तो आते जाते कुछ ना कुछ कहते रहेंगे, किस किस की सुनेंगे आप? और अगर आप सबके बारे में चिंता करेंगे, उनके अनुसार अपने निर्णय बदलेंगे, तो फिर आप साधना कब करेंगे?’’


साधु महाराज को इस महिला की बात उचित लगी और उन्होंने उस पर अमल करने का निर्णय लिया।तभी अचानक चौथी महिला ने एक बड़ी ही अदभुत बात कही, ‘महाराज, कुछ ग़लत कहूँ तो अज्ञानी समझ मुझे माफ़ कर दीजिएगा, पर मुझे लगता है आपने भौतिक तौर पर तो सब कुछ छोड़ दिया है, लेकिन आपका चित्त अभी तक उन्हीं चीजों में बसा हुआ है। तभी आपको बाहरी दुनिया की बातों की इतनी चिंता है। मेरी मानें तो अपने चित्त को बाहरी दुनिया से आज़ाद कर अपने भीतर की दुनिया अर्थात् अपने हृदय की ओर ले जाएँ। उसके बाद आपको दुनिया क्या कह रही है इस बात की बिल्कुल भी चिंता नहीं रहेगी और आप निश्चिंत होकर वह कर पाएँगे जो आपका दिल कहेगा।’


बात तो दोस्तों उस चौथी महिला की बिलकुल सही थी। अगर आप गौर से देखेंगे तो पाएँगे कि इस दुनिया का आपके भले या बुरे से कोई लेना देना नहीं है, उनका काम तो सिर्फ़ कहना है। अगर आप सिर ऊँचा कर चलेंगे तो यह आपको अभिमानी कह देंगे और नज़रें झुका कर चलेंगे तो कहेंगे, ‘सामने देख कर भी नहीं चल सकते!’ आँखें बंद रखेंगे तो अंधा कह देंगे और चारों और निगाह घुमाते हुए चलेंगे तो कहेंगे, ‘नज़रें तो एक जगह ठहरती नहीं, लेकिन निक़ल पड़े हैं घूमने और अगर आप गलती से भी इन बातों से परेशान होकर बैठ गए याने चलना बंद कर दिया तो ये लोग आपको लक्ष्य हीन बता देंगे और अगर आप इन बातों से परेशान होकर रोएँगे, तो रोना आपके कर्मों का फल बता दिया जाएगा और अगर आप गलती से हंस भी दिए तो आप बेशर्म सिद्ध कर दिए जाएँगे। कुल मिलाकर कहा जाए तो आप कुछ भी क्यों ना कर लीजिए, उसमें लोग ग़लतियाँ निकाल ही देंगे। इसीलिए कहा जाता है कि सारी दुनिया को मनाने से आसान ईश्वर को मनाना है। याद रखिएगा दोस्तों, दुनिया की फ़िक्र छोड़ जब आप खुद को महत्व देने लगते हैं तब आप अपने दिल की सुनना शुरू कर देते हैं। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो हमारा दिल हमसे तभी बातें करता है, जब हम उसकी ओर ध्यान देते हैं और जब आप उसकी ओर ध्यान देने लगते हैं, वह सही दिशा में आपका मार्गदर्शन करने लगता है। तो चलिए दोस्तों, इस जीवन का पूर्ण मज़ा लेने के लिए आज से हम अपने दिल की सुनना शुरू करते हैं।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर


16 views0 comments
bottom of page