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  • Writer's pictureNirmal Bhatnagar

परमानेंटली टेम्पररी…

Apr 14, 2024

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…



दोस्तों, अगर हम सभी अपने व्यवहार को ध्यान से देखें तो पाएँगे कि आजकल हम लोग ज़रा-ज़रा सी बातों पर प्रतिक्रिया देने लगे हैं। ज़रा सा किसी ने मनमाफिक कार्य नहीं किया या किसी ने ग़लत ओवरटेक कर लिया या ग़लत तरीक़े से गाड़ी चलाते हुए हमसे आगे निकल गया, तो हमारा ग़ुस्सा एकदम से सातवें आसमान पर पहुँच जाता है और हम दूसरों को भला बुरा कहने लगते हैं। जो निश्चित तौर पर हमारे मन और मूड को ख़राब करता है। आप स्वयं सोच कर देखिए दोस्तों, छोटी-छोटी बातों पर अपने मूड; अपने मन को ख़राब करना क्या उचित है? मेरी नज़र में तो शायद नहीं…


असल में दोस्तों, ढेर सारे भौतिक लक्ष्य, कम समय में ज़्यादा पाने की चाह और धैर्य की कमी आदि कुछ ऐसे कारण हैं, जिसकी वजह से हमारे व्यवहार में यह परिवर्तन आ रहा है। अगर आप अपने व्यवहार में आए इस परिवर्तन से बचना चाहते हैं और अपने स्वभाव को हमेशा सौम्य और मधुर बनाए रखना चाहते हैं तो आपको संत तुकाराम के क़िस्से से इसे सीखना चाहिए। तो चलिए शुरू करते हैं-


एक बार संत तुकाराम के पास उनका एक शिष्य ,जो बहुत क्रोध किया करती था, उनके पास पहुँचा और बोला, ‘गुरूजी, आप हमेशा अपना व्यवहार इतना मधुर कैसे बनाये रहते हैं? मैंने कभी आपको किसी पर क्रोध करते हुए या किसी को भला-बुरा कहते हुए नहीं देखा। कृपया अपनी इस विशेषता के बारे में हमें कुछ बताइए।’ शिष्य की बात सुन तुकाराम जी एकदम गंभीर स्वर में बोले, ‘मुझे अपने रहस्य के बारे में तो नहीं पता, पर मैं तुम्हारा रहस्य अवश्य जानता हूँ।’ तुकाराम जी की बात सुन शिष्य आश्चर्य में पड़ गया और बोला, ‘मेरा रहस्य! वह क्या है गुरु जी?’ संत तुकाराम दुखी होते हुए बोले, ‘तुम अगले एक हफ्ते में मरने वाले हो वत्स।’


कोई और कहता तो लोग बात को गंभीरता से नहीं लेते, लेकिन यहाँ तो उक्त बात संत तुकाराम जी द्वारा कही गई थी और उनके मुख से निकली बात को कोई कैसे काट सकता था? इसलिए शिष्य एकदम उदास हो गया और वहाँ से चला गया। उस पल से शिष्य के स्वभाव में ज़बरदस्त बदलाव आ गया। अब वह हर किसी से प्रेम से मिलता था और कभी किसी पर क्रोध नहीं करता था। अब उसकी दैनिक दिनचर्या में पूजा-पाठ और ध्यान का समय भी जुड़ गया था। इतना ही नहीं उसने आज तक जिसके साथ भी ग़लत व्यवहार किया था वह उनके घर जाकर उनसे माफ़ी माँगने लगा।


देखते-देखते संत की भविष्यवाणी को एक हफ़्ता पूरा होने को आया। शिष्य ने सोचा अब तो मृत्यु का समय नज़दीक आ गया है इसलिए मरने से पहले आख़िरी बार गुरु के दर्शन का लाभ लेकर, आशीर्वाद प्राप्त कर लेता हूँ। वह उनके समक्ष पहुंचा और बोला, ‘गुरु जी, मेरा समय पूरा होने वाला है, कृपया मुझे आशीर्वाद दीजिये!’ संत तुकाराम मुस्कुराए और बोले, ‘वत्स, मेरा आशीर्वाद हमेशा तुम्हारे साथ है। अच्छा, यह बताओ कि पिछले सात दिन कैसे बीते? क्या तुम पहले की तरह ही लोगों से नाराज हुए? उन्हें अपशब्द कहे?” शिष्य एकदम से गंभीर स्वर में बोला, ‘नहीं-नहीं… बिलकुल नहीं। मेरे पास जीने के लिए सिर्फ सात दिन थे. मैं इसे बेकार की बातों में कैसे गँवा सकता था? मैं तो सबसे प्रेम से मिला और जिन लोगों का कभी दिल दुखाया था उनसे क्षमा भी मांगी।’ संत तुकाराम मुस्कुराए और बोले, ‘बस यही तो मेरे अच्छे व्यवहार का रहस्य है। मैं जानता हूँ कि मैं कभी भी मर सकता हूँ, इसलिए मैं हर किसी से प्रेमपूर्ण व्यवहार करता हूँ। शिष्य उसी पल समझ गया कि संत तुकाराम ने उसे जीवन का यह पाठ पढ़ाने के लिए ही मृत्यु का भय दिखाया था। उसने मन ही मन इस पाठ को याद रखने का प्रण किया और गुरु के दिखाए मार्ग पर आगे बढ़ गया!!!


यक़ीन मानियेगा दोस्तों, इस बात को स्वीकार लेना कि हम सब इस धरती पर ‘परमानेंटली टेम्पररी है’, हमारे जीवन की ज़्यादातर समस्याओं को हमेशा के लिए दूर कर देता है। एक बार गंभीरता पूर्वक विचार कर देखियेगा ज़रूर…


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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