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बनाना हो जीवन सुंदर तो झांके ख़ुद के अंदर…

Apr 4, 2024

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…



आईए साथियों, आज के लेख की शुरुआत एक कहानी से करते हैं। बात कई साल पुरानी है। गाँव के बाहरी इलाक़े में स्थित एक पुराने से मकान में कबूतर के एक जोड़े ने कई दिनों की कड़ी मेहनत से अपना घर याने घोंसला बनाया और ख़ुशी-ख़ुशी उसमें रहने लगे। शुरुआती कुछ दिनों तक तो सब कुछ ठीक रहा, लेकिन कुछ दिनों बाद घोंसले में रहते वक्त कबूतर के जोड़े को अजीब सी बदबू आने लगी। बीतते समय के साथ धीमे-धीमे यह बदबू इतनी तेज हो गई कि कबूतरों के लिए घोंसले में रुकना ही दूभर हो गया।


एक दिन कबूतर और कबूतरी ने आपस में बात कर फ़ैसला लिया कि अब हम दूसरी जगह अपना घोंसला बनायेंगे ताकि हम आराम से अपना जीवन जी सकें। इस निर्णय के पश्चात् दोनों ने मिलके अगले कुछ दिन में एक नया और सुरक्षित स्थान ढूँढ लिया और फिर वहाँ पर कुछ ही दिनों में मेहनत करके अपने लिए एक नया और बेहतर घोंसला बना लिया और उसमें रहने के लिए पहुँच गये। मगर स्थिति वैसी की वैसी ही रही, बदबू ने उनके नए आशियाने को भी नहीं छोड़ा।


इस बार परेशान होकर कबूतर के जोड़े ने वह मोहल्ला ही छोड़ दिया और पहुँच गए एक नए, बेहतर और साफ़-सुथरे इलाक़े में। इस नये मोहल्ले में सबसे पहले उन्होंने घोंसले के लिए एक सुरक्षित स्थान खोजा और फिर वहाँ बड़ी मेहनत से साफ़-सुथरे तिनके खोजकर, एक बार फिर नया घोंसला बनाया। मगर यह क्या? इस नये घोंसले में भी वैसी ही, बड़ी गंदी सी बदबू आ रही थी।


अब तो कबूतर और कबूतरी दोनों बिल्कुल हैरान-परेशान थे। वे समझ ही नहीं पा रहे थे कि इस बदबू से छुटकारा पाने के लिए क्या किया जाए। थक हार कर अंत में उन्होंने अपने पिता के ख़ास दोस्त, एक बुजुर्ग और समझदार कबूतर से सलाह लेने का निर्णय लिया और उनके पास पहुँच गये और उन्हें पूरा क़िस्सा कह सुनाया। बुजुर्ग कबूतर ने एक पल के लिये कुछ सोचा फिर उनसे बोला कि ‘मैं कल आपके घर आऊँगा और इस समस्या का निदान हमेशा के लिए कर दूँगा।’ बुजुर्ग कबूतर की बात सुनते ही कबूतर का जोड़ा खुश हो गया।


अगले दिन तय समय पर बुजुर्ग चतुर कबूतर उस जोड़े के घर पहुँचा और उनके घोंसले का मुआयना करने लगा अर्थात् उसके कोने-कोने में अच्छे से घूम कर उसे देखने लगा।कुछ देर पश्चात मुस्कुराते हुए कबूतर के जोड़े से बोला, ‘घोंसला बदलने से यह बदबू नहीं जाने वाली है क्योंकि यह बदबू घोंसले में नहीं तुम्हारे अपने शरीर से आ रही है। जब तुम खुले वातावरण में होते हो या जब तुम अपने प्रिय लोगों के साथ होते हो या फिर जब तुम किसी भी तरह के कार्यों में व्यस्त होते हो, तब तुम्हें अपनी बदबू महसूस नहीं होती है। लेकिन जब तुम इन सब से फ्री होकर याने अपनी दिनभर की ज़िम्मेदारियों से मुक्त होकर फ्री माइंड से घोंसले में लौट कर आते हो, तब तुम इस बदबू को महसूस कर पाते हो। इसीलिए तुम्हें लगता है कि बदबू घोंसले में से आ रही है। अरे भाई इस बदबू से हमेशा के लिए छुटकारा पाना चाहते हो तो घोंसले की जगह ख़ुद की सफ़ाई पर ध्यान दो।’


असल में दोस्तों, यह कहानी कबूतर के जोड़ों की नहीं अपितु हमारी अपनी है। अक्सर कमियाँ हमारे अंदर होती हैं और हम परिवार, रिश्ते, आसपास मौजूद लोग, परिस्थिति आदि को दोष देते हुए परेशान घूमते रहते हैं। इसलिए मेरा मानना है कि पूरे समाज की कमियाँ निकालने याने उनमें गंदगी खोजने के स्थान पर हमें अपनी कमियों, ख़ामियों याने कमज़ोरियों और ग़लत आदतों रूपी बदबू को पहचान कर, दूर हटाना चाहिए, जिससे हमारी दुनिया बल्कि यूँ कहूँ पूरी दुनिया सचमुच और बेहतर, खूबसूरत और ख़ुशबूदार हो जाएगी।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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