संगति और आत्म-विकास !!!
- Nirmal Bhatnagar
- Apr 18
- 3 min read
Apr 18, 2025
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, एआई और तकनीक के बदलाव भरे इस युग में इंसानी मस्तिष्क का मुक़ाबला तकनीकी मस्तिष्क से है और मेरी नजर में इस मुक़ाबले को तार्किक बुद्धि से जीत पाना शायद असंभव है। क्योंकि तार्किक बुद्धि फैक्ट, फिगर्स और तर्कों याने पूर्व में उपलब्ध डेटा पर आधारित होती है। इन सब में इंसानी मस्तिष्क का तकनीकी मस्तिष्क से जीत पाना असंभव है। अगर आप ऐसे डिसरप्टिव याने विघटनकारी युग में ख़ुद को रेस में बनाए रखना चाहते हैं तो मेरा सुझाव है कि प्रतिदिन आत्म-विकास और अपनी रचनात्मकता पर ध्यान दीजिए।
जी हाँ! आज के बदलाव भरे इस युग में रचनात्मक आत्म-विकास का इतना ही महत्वपूर्ण स्थान है। रचनात्मक आत्म-विकास न केवल हमारी रचनात्मकता, ज्ञान, नजरिये और क्षमता को बढ़ाने में सहायक होता है, बल्कि हमारे जीवन की दिशा और गुणवत्ता को भी प्रभावित करता है। वैसे तो पूर्व में मैं आपको रचनात्मक आत्म-विकास के कई सूत्र बता चुका हूँ, पर आज हम पद्मपुराण में वर्णित हंस और शिकारी की कथा से आत्म-विकास में संगति की महत्वपूर्ण भूमिका को समझने का प्रयास करेंगे।
यह कथा एक दयालु और परोपकारी हंस और बिगड़ैल कौए की है। कथा में एक शिकारी पेड़ के नीचे आराम करने के लिए बैठ जाता है। अत्यधिक थकान के कारण कुछ ही क्षणों में उसकी आँख लग जाती है। कुछ देर बाद सूरज चढ़ने के कारण शिकारी के चेहरे पर धूप आने लगी। जिसे देख पेड़ की शाखा पर बैठे हंस ने अपने पंखों को फैला दिया और शिकारी को छाया देने लगा। लेकिन तभी वहाँ एक कौआ आया और हंस के क़रीब बैठ गया। हंस ने कौए का एक दोस्त के समान स्वागत किया। पर कौआ तो कौआ ठहरा, वहाँ से जाते वक्त उसने शिकारी पर मल विसर्जित किया और उड़ गया। जिसके कारण शिकारी क्रोध में उठा और पेड़ पर बैठे हंस को मार गिराया। वैकुंठ लोक जाकर जब हंस ने इसकी वजह पूछी तो ईश्वर ने उसे बताया कि उसका ऐसा हश्र ग़लत संगत के कारण हुआ है।
दोस्तों, यह कथा हमें यह सिखाती है कि संगति का हमारे जीवन पर बहुत गहरा प्रभाव होता है। हंस की तरह, अगर हम भी अच्छे कार्यों को करते हुए भी ग़लत संगति में रहते हैं, तो हम भी अनचाहे संकटों का शिकार हो सकते हैं। संभव है कि अभी भी आप संगति और आत्म-विकास के आपसी संबंध को लेकर संशय में हों, तो चलिए पहले हम इस विषय पर चर्चा कर लेते हैं।
दोस्तों, आत्म-विकास का तात्पर्य केवल पुस्तकों से ज्ञान अर्जित करना नहीं है, बल्कि यह हमारी सोच, विचारधारा और निर्णय लेने की क्षमता को सुधारने से जुड़ा हुआ है। यदि हम सकारात्मक और बुद्धिमान लोगों की संगति में रहते हैं, तो हमारी सोच भी वैसी ही विकसित होती है। इसके विपरीत, यदि हम नकारात्मक और अज्ञानी लोगों के संपर्क में रहते हैं, तो उनका प्रभाव भी हमारे व्यक्तित्व पर पड़ता है। इसलिए ही मैंने आत्म-विकास के लिए हमारी संगति को भी महत्वपूर्ण माना है। आइए अब हम संक्षेप में अच्छी संगति चुनने के 4 सूत्र सीख लेते हैं-
पहला सूत्र - बुद्धिमान और सच्चरित्र लोगों के आस-पास रहें क्योंकि ऐसा करना आपको उन लोगों से प्रेरणा लेने के लिए प्रेरित करेगा जिनकी सोच और कार्य, नैतिक रूप से मजबूत हैं, उनसे प्रेरणा लें।
दूसरा सूत्र - नकारात्मकता से बचें क्योंकि ऐसे लोग आपकी सोच को नकारात्मक बनाकर आपके अंदर अनावश्यक संशय पैदा कर सकते हैं।
तीसरा सूत्र - आत्मनिरीक्षण के लिए समय निकालें क्योंकि आत्मनिरीक्षण करना हमें ख़ुद के जीवन पर पड़ने वाले संगति के प्रभाव को पहचानने में मदद करता है।
चौथा सूत्र - ज्ञान और अच्छाई की ओर अग्रसर रहें। ऐसा करना आपको प्रतिदिन बेहतर बनने में मदद करेगा। इसके लिए पुस्तकें पढ़ें, अच्छे विचारों को आत्मसात करें और सकारात्मक गतिविधियों में भाग लें।
अंत में दोस्तों मैं सिर्फ़ इतना कहना चाहूँगा कि हमारे जीवन में सफलता और आत्म-विकास इस बात पर निर्भर करता है कि हम किन लोगों के साथ समय बिताते हैं। जिस प्रकार हंस को कौए की संगति ने संकट में डाल दिया, उसी प्रकार हमारी गलत संगति हमें विकास के स्थान पर पतन की ओर ले जा सकती है। इसलिए, हमें अपनी संगति का चुनाव सोच-समझकर करना चाहिए और सदैव अच्छे और सकारात्मक व्यक्तियों के साथ रहकर आत्म-विकास के पथ पर आगे बढ़ना चाहिए।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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