top of page
  • Writer's pictureNirmal Bhatnagar

सजगता के साथ ज्ञान युक्त जीवन जीने की कला…

Feb 25, 2024

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…



दोस्तों, चलिए आज के शो की शुरुआत एक बड़े साधारण और बिना किसी काम के एक प्रश्न से करते हैं। तो चलिए बताइये एक पतंग आकाश में कब ज़्यादा ऊँचाइयों को छूती है-

पहला ऑप्शन : जब वह डोर से बंधी हो और उसका कंट्रोल किसी कुशल पतंगबाज के हाथ में हो।

दूसरा ऑप्शन : आकाश की ऊँचाइयों पर पहुँच जाने के बाद उस पतंग को डोर के बंधन से आज़ाद कर आकाश में स्वतंत्र छोड़ दिया जाए तब।


आप कहेंगे निश्चित तौर पर तब जब पतंग डोर से बंधी हो और उसका कंट्रोल किसी कुशल पतंगबाज के हाथ में हो। लेकिन साथ ही अब आपके मन में निश्चित तौर पर आ रहा होगा कि इतना वाहियात प्रश्न आख़िर में पूछा ही क्यों है?, तो मैं आपको आगे बढ़ने से पहले बता दूँ कि इस प्रश्न का संबंध सीधे-सीधे आपके जीवन से है। चलिए, प्रश्नों या संकेतों में बात करने के स्थान पर अब हम ज़िंदगी को हसीन बनाने वाले इस बेहतरीन सूत्र पर सीधे-सीधे चर्चा करते हैं। जैसा कि हमने उपरोक्त उदाहरण में देखा था कि डोर का बंधन पतंग को ना सिर्फ़ ज़्यादा ऊँचाइयों पर पहुँचने में मदद करता है, बल्कि उसे ज़्यादा लंबे समय तक ऊँचाई पर बनाए रखता है। ठीक इसी तरह इंसान जब जीवन मूल्य, संस्कार, धार्मिक आधार से बंध कर अर्थात् मर्यादित रहकर जीवन जीता है, तभी वह शांत और खुश रहते हुए सफलता की ज़्यादा ऊँचाइयों को ना सिर्फ़ छूता है, बल्कि वहाँ पर बना रहता है।


वैसे इसी उदाहरण को आप एक और नज़रिए से देख सकते हैं। जिस तरह पतंगबाज पतंग को ऊँचाई पर बनाए रखने के लिए उसकी डोर खींचकर अपने हाथ में रखता है। ठीक उसी प्रकार इंद्रियों की डोर खींच कर अपने हाथ में रखना आपको मर्यादित जीवन जीते हुए सफल होने में मदद करता है। जिससे आप तेज़ी से भागती इस दुनिया में शांत रहते हुए सफल जीवन जी सकें। जी हाँ दोस्तों, इंद्रियों की डोर को अपनी मुट्ठी में रखने की कला आपको चेतना के साथ कर्म करने का मौक़ा भी देती है, जिससे आप संसार की नश्वरता को ध्यान में रखते हुए जीवन जी सकें। अर्थात् जो आप कर रहे हैं; जो आप बोल रहे हैं या सीधे-सीधे कहूँ तो जो पल आप जी रहे हैं, आप उसी में अपनी मौजूदगी सुनिश्चित करते हुए जीवन जी सकें। ज्ञान युक्त विचारों के साथ कर्म करना आपको जीवन या इस दुनिया की अनावश्यक उलझनों से बचा लेता है।


जिस तरह दोस्तों, पानी को छानना उसे कचरे से मुक्त करता है, वैसे ही सजगता से जीना आपको विकारों से मुक्त करता है। विकारों से मुक्त होना दोस्तों, आपको उथल-पुथल भरे, अनिश्चित बाहरी संसार में भी शांति से जीवन जीने का मौक़ा देता है। इसलिए दोस्तों, बाहरी दुनिया बदलते हुए जीना या भौतिक लक्ष्यों को पाने की दौड़ का हिस्सा बनने से बेहतर सहजता के साथ हर पल सजग रहते हुए जीना है। ऐसा करना आपके जीवन में प्रसन्नता के साथ सकारात्मक बदलाव भी लाता है।


इस आधार पर कहा जाए दोस्तों, तो शांति पूर्ण सुखी जीवन जीने के लिए हमें बदलाव केवल विचारों में नहीं अपितु अपने आचरण में भी लाना होगा। यह तभी संभव हो सकता है जब हम कर्ता याने ‘मैंने किया’ या ‘मेरे कारण हुआ’ के भाव से ऊपर उठकर; प्रभु को कारण स्वरूप जानकर, उनकी कृपा का अनुभव करते हुए सदैव सजगता के साथ ज्ञान युक्त जीवन जीने का प्रयास करेंगे। एक बार विचार कर देखियेगा ज़रूर…


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

6 views0 comments
bottom of page