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  • Writer's pictureNirmal Bhatnagar

सफलता के सूत्र…

Apr 18, 2024

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…



दोस्तों, अगर सफलता चाहते हैं तो लक्ष्य निर्धारण के साथ-साथ उसे पाने का दृढ़ विश्वास, ईश्वर के प्रति निश्छल प्रेम और समर्पण के साथ-साथ अथक प्रयास करना ज़रूरी है। जी हाँ दोस्तों, सुनने में आपको मेरी बात थोड़ी अजीब लग सकती है लेकिन यक़ीन मानियेगा, सफलता के लिए सकारात्मक सोच, अथक प्रयास, जितना ही ज़रूरी ईश्वर के प्रति समर्पण भाव का होना भी है। अपनी बात को मैं आपको एक कहानी के माध्यम से समझाने का प्रयास करता हूँ।


जंगल में एक संत-महात्मा कुटिया बना कर रहा करते थे। इसकी मुख्य वजह जंगल के शांत वातावरण में कृष्ण भक्ति करने की उनकी चाह थी। संत-महात्मा जी की कुटिया के सामने से रोज़ एक शिकारी भी वन में शिकार करने के लिए जाता था। महात्मा जी के आश्रम के सामने से निकलते वक्त वह बिना नागा महात्मा जी को प्रणाम किया करता था।


एक दिन शिकार के लिए जाते वक़्त शिकारी महात्मा जी के दर्शन करने के लिए उनके पास पहुँचा और प्रणाम करने के पश्चात उनसे बोला, ‘बाबा, मैं तो रोज़ हिरण का शिकार करने के लिए जंगल में जाता हूँ। आप किसका शिकार करने के लिए इस भयावह जंगल में बैठे हैं?’ महात्मा जी भगवान कृष्ण को याद करते हुए बोले, ‘वत्स, मैं तो श्री कृष्ण का शिकार करने के लिए इस जंगल में बैठा हूँ।’ इतना कहकर महात्मा जी फूट-फूट कर रोने लगे। शिकारी उन्हें रोता देखकर परेशान हो गया और चिंतित स्वर में बोला, ‘बाबा, रोते क्यों हो? मुझे बताओ आपका कृष्ण कैसा दिखता है? मैं पकड़ कर लाऊँगा उसे।’


महात्मा जी को शिकारी के भोलेपन पर हंसी आई, लेकिन फिर भी उन्होंने भगवान के मनोहारी रूप का वर्णन करते हुए उसे बताया कि मेरा कृष्ण साँवला सलोना है, वह अपने माथे पर मोर पंख लगाता है और बड़ी मधुर बांसुरी बजाता है।’ महात्मा की बात सुनते ही शिकारी बोला, ‘बाबा आप चिंता मत करो। जब तक मैं आपका शिकार पकड़ कर नहीं लाऊँगा तब तक पानी नहीं पियूँगा।’


इतना कहकर शिकारी जंगल में चला गया और अपने हिसाब से एक उचित स्थान तलाश कर अपना जाल बिछाकर बैठ गया। वहाँ बैठे-बैठे उसे तीन दिन बीत गए लेकिन उधर से कोई गुजरा ही नहीं। शिकारी लगातार महात्मा जी को दिये वचन को याद करते हुए वहाँ बिना खाए-पिये डटा रहा। उसे ऐसा करता देख भोले-भाले कृष्ण जी को उस पर दया आ गई और वे स्वयं वहाँ बांसुरी बजाते हुए आ गये और उसके जाल में फँस गए। शिकारी भगवान कृष्ण को देखते ही उनके मोह जाल में फँस गया और सब कुछ भूल गया और एकटक शयाम सुंदर को निहारते हुए आंसू बहाने लगा। कुछ देर बाद जब उसकी चेतना लौटी तो उसे याद आया कि उसने भगवान कृष्ण का शिकार बाबा याने महात्मा जी के लिए किया है। विचार आते ही वह ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने लगा कि ‘शिकार मिल गया… शिकार मिल गया…’, और उसने जाल में फँसे भगवान कृष्ण को अपने कंधे पर उठाया और महात्मा जी की कुटिया की ओर जाने लगा। रास्ते में शिकारी भगवान कृष्ण को बोलता है, ‘अच्छा बच्चु… 3 दिन तक भूखा प्यासा रखने के बाद अब मिले हो और मुझ पर जादू कर रहे हो। यह सब नहीं चलेगा… तुम्हें तो मैं अपने बाबा के पास लेकर ही जाऊँगा। वे बड़े परेशान हैं तुम्हें पाने को।’


भगवान कृष्ण उसके भोले पन पर रीझे जा रहे थे एवं मंद मंद मुस्कान लिए उसे देखे जा रहे थे। कुछ देर में शिकारी, कृष्ण को शिकार की भाँति अपने कंधे पे डाल कर संत के पास ले आया और बोला, ‘बाबा, ये लो आपका शिकार!’ भगवान कृष्ण को शिकारी के कंधे पर जाल में फँसा देख उनके होश उड़ गए। वे शिकारी के चरणों में गिर पड़े और याचना भरे स्वर में बोले, ‘हे प्रभु, बचपन से आपको पाने का जतन कर रहा हूँ। कभी जंगल में तपस्या, तो कभी मंदिर में पूजा, तो कभी भजन, लेकिन आप मुझे कभी कहीं नहीं मिले। लेकिन इस शिकारी ने आपको तीन ही दिन में पा लिया। यह क्या चक्कर है। भगवान कृष्ण बोले, ‘इसके तुम्हारे प्रति निश्छल प्रेम व कहे हुए वचनों पर दृढ़ विश्वास, से मैं रीझ गया और मुझसे इसके समीप आये बिना रहा नहीं गया।’


बात तो दोस्तों, एकदम सटीक और सही है। जिस तरह भगवान, भक्तों के अधीन होते हैं, ठीक उसी तरह हर तरह के लक्ष्य इंसानों के अधीन होते हैं। इंसान अगर उस शिकारी की तरह अपने लक्ष्य पर फ़ोकस्ड हो जाये और उसे पाने का दृढ़ निश्चय कर, अपने कहे शब्दों पर अडिग रहे, अपने गुरु की कही हर बात को पत्थर की लकीर मान, स्वीकार ले और ईश्वर पर पूर्ण विश्वास कर अथक प्रयास करे तो यक़ीन मानियेगा उसे लक्ष्य पाने से कोई रोक नहीं सकता है। विचार कर देखियेगा ज़रूर…


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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