top of page
Search

सही राह दिखाने वाला ही हितैषी है…

  • Writer: Nirmal Bhatnagar
    Nirmal Bhatnagar
  • Apr 13
  • 3 min read

Apr 13, 2025

फिर भी ज़िंदगी हसीन है...

दोस्तों, मेरे जीवन का तो यही अनुभव है कि सामान्यतः रोजमर्रा के जीवन में विरोध करने वाला हमारा शत्रु नहीं होता, बल्कि ग़लत कार्यों में समर्थन करने वाला हमारा वास्तविक शत्रु होता है। लेकिन अगर आप गौर से अपने जीवन को और अपने आस-पास मौजूद लोगों के जीवन को देखेंगे तो पायेंगे कि ज्यादातर लोग अक्सर ऐसे लोगों से घिरे रहते हैं, जो हर बात पर सहमति जताते हैं, फिर चाहे वह सही हो या गलत। लेकिन क्या ऐसे लोग वास्तव में हमारे शुभचिंतक होते हैं? मेरी नजर में तो नहीं क्योंकि सच्चा मित्र वही होता है, जो हमारी गलतियों को इंगित कर हमें सही राह पर ले जाने का प्रयास करे ना कि हर बात में सिर्फ़ हाँ में हाँ मिलाये। मेरी बात से सहमत ना हों दोस्तों, तो इतिहास उठा कर देख लीजिएगा, जिस किसी ने मित्र को पहचानने में गलती करी है, उसने जीवन में गंभीर परिणाम भुगते हैं। अपनी बात को मैं आपको महाभारत और रामायण के किस्सों से समझाने का प्रयास करता हूँ।


महाभारत में महात्मा समान ज्ञानी और नीतिवान विदुर जी ने दुर्योधन को कई बार समझाने का प्रयास करते हुए बड़े स्पष्ट तौर पर कहा, “दुर्योधन! धर्म और सत्य का पालन ही राजधर्म है।” परंतु दुर्योधन ने उनकी यह सलाह नहीं मानी, तब विदुर जी ने दुर्योधन को चेतावनी तक देते हुए बताया कि अन्याय और अधर्म का मार्ग उसे विनाश की ओर ले जाएगा। लेकिन इस बार भी अहंकारी दुर्योधन ने उनकी बातों को अनसुना कर दिया और अपने मामा शकुनि की बातों में बह गया। परिणामस्वरूप, कौरव वंश का विनाश हो गया। यदि दुर्योधन ने विदुर की बात मानी होती, तो महाभारत का युद्ध ही न होता और हजारों निर्दोष लोग मारे न जाते।


इसी तरह, रामायण में विभीषण ने अपने भाई रावण को सही राह दिखाने की कोशिश की। उन्होंने कई बार उसे समझाया कि माता सीता का अपहरण करना अधर्म है और श्रीराम के साथ युद्ध विनाश का कारण बनेगा। लेकिन रावण ने अपने अहंकार और झूठे अभिमान के कारण विभीषण की बात को नकार दिया और अंततः उसका सर्वनाश हो गया। इन दोनों उदाहरणों से यह एकदम स्पष्ट हो जाता है कि सच्चा मित्र वही होता है जो हमें अपनी ग़लतियों का एहसास करवाये।


दोस्तों, ग़लत सलाह मानने के साथ ही ग़लत का समर्थन करना भी अंततः नुकसानदायक ही सिद्ध होता है। कई बार हम अपने प्रियजनों की गलतियों को यह सोचकर नजरअंदाज कर देते हैं कि ‘कहीं वे हमसे नाराज न हो जाएं।’ लेकिन अगर आप गहराई से इस इस विषय में सोचेंगे तो पायेंगे कि ऐसा करना कहीं ना कहीं उनके और आपके लिए और भी ज्यादा हानिकारक सिद्ध हो सकता है। उदाहरण के लिए, मान लीजिए कि आपका कोई मित्र नशे की लत में पड़ रहा है। यदि आप उसे यह सोचकर कुछ न कहें कि वह आपसे नाराज न हो जाए, तो आप उसके सच्चे मित्र नहीं हैं। बल्कि, एक सच्चा मित्र वही होगा जो उसे रोके, उसे सही मार्ग दिखाए, और उसे बुराई से बचाने का प्रयास करे।


इसी तरह, किसी कर्मचारी को यदि उसका सहकर्मी गलत तरीकों से पैसे कमाने की सलाह देता है, और वह सहकर्मी इस पर सहमति जताता है, तो वह कुल मिलाकर दोनों का भविष्य अंधकारमय बनाता है। इसलिए ही कहते हैं, “सच्चा मित्र वही होता है, जो गलत को गलत कहने की हिम्मत रखे और अपने साथी को सही राह पर चलने की प्रेरणा दे।” वास्तव में, किसी के गलत कार्य में मौन रहकर या उसका समर्थन करके हम उसे और अधिक नुकसान पहुँचा रहे होते हैं।


दोस्तों, जीवन में सच्चा मित्र वही जो हमारे भले के लिए हमें टोकने का साहस रखे। यदि कोई व्यक्ति हमारे गलत कार्यों में हमारा समर्थन करता है, तो वह हमारा मित्र नहीं, बल्कि सबसे बड़ा शत्रु है। इसलिए हमें अपने आसपास उन लोगों को महत्व देना चाहिए, जो हमें सत्य की राह दिखाएं, न कि उन लोगों को जो हमें विनाश के मार्ग पर ले जाएं। याद रखिएगा दोस्तों, जो व्यक्ति हमें अधर्म से रोकता है, हमें ईश्वर से जोड़ता है, और हमें सदैव सत्य की राह पर चलने की प्रेरणा देता है, वही हमारा सच्चा मित्र होता है।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

 
 
 

1 Comment


अनूषा
Apr 15

सर, इसमें कर्ण का उदाहरण लेकर एक और कड़ी लिखें, ऐसा मेरा निवेदन है।

जो शक्तिशाली है, उसे और भी सावधान रहना चाहिए कि वो अपना समर्थन और अपनी शक्ति का संबल किसे प्रदान कर रहा है?

साथ ही, किसी का उपकार, या किसी का अनुग्रह लिया भी हो, तो इसका अर्थ ये नहीं कि हम उसका अधर्म में साथ देने को बाध्य हो जाएँ।

Like
bottom of page