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उम्मीद और हौसले की शक्ति…

  • Writer: Nirmal Bhatnagar
    Nirmal Bhatnagar
  • Aug 13
  • 3 min read

Aug 13, 2025

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

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दोस्तों, जीवन में कई बार हमारा सामना ऐसी परिस्थिति से होता है, जब हमें आगे के सारे रास्ते बंद नजर आते हैं। हम ख़ुद को ठहरा हुआ सा पाते हैं और हमें ऐसा लगने लगता है कि अब सब ख़त्म हो गया है और अब किसी भी तरह की कोई संभावना नहीं बची है। हमें चारों ओर से भी यही सुनने को मिलता है कि ‘अब कुछ नहीं हो सकता है।’ ऐसे विपरीत से लगते समय में हमारी सोच और प्रतिक्रिया ही यह तय करती है कि हम डूबेंगे या किनारे लगेंगे। चलिए अपनी बात को मैं आपको अवधेश और विक्रम नाम के दो राजकुमारों की कहानी से समझाने का प्रयास करता हूँ-


अवधेश और विक्रम अपने पिता के राज्य में सुख और ऐश्वर्य से भरपूर जीवन जी रहे थे। एक दिन वे अपने पिता याने राजा से आज्ञा लेकर, शिकार के लिए जंगल गए। लौटते वक्त जब रास्ते में विशाल नदी आई तो दोनों ने अपनी थकान उतारने के लिए उसमें नहाने का निश्चय किया। पानी में उतरते ही विक्रम नदी में तैरते हुए थोड़ी दूर चला गया। तभी अचानक तेज लहर आई और उसे अपने साथ बहा ले गई। अचानक हुए इस बदलाव ने विक्रम के मन को घबराहट से भर दिया, जिसके कारण विक्रम को तैरने में दिक्कत होने लगी और वो गहरे पानी में डूबने लगा।


विक्रम को डूबता देख अवधेश ने तुरंत उसे बचाने का प्रयास शुरू किया और नदी के किनारे पड़े लकड़ी के एक गट्ठे को उठा कर विक्रम की ओर फेंक दिया। लेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर था, लकड़ी का वह गट्ठा विक्रम से काफ़ी दूर गिरा। इसी बीच सैनिक भी आ गए, और दूर बहते विक्रम को देख, निराश होकर कहने लगे, “काश हम कुछ समय पहले आ जाते तो अच्छा रहता। अब इसे बचाना नामुमकिन है।”


यह सुन अवधेश के मन में भी हार का भाव आ गया। जिसे देख वहाँ मौजूद सभी लोगों ने हथियार डाल दिए और किनारे पर बैठकर शोक मनाने लगे। तभी, दूर से एक सन्यासी और उनके साथ एक नौजवान आता दिखाई दिया। पास आने पर पता चला कि वह नौजवान और कोई नहीं, बल्कि विक्रम था। सभी आश्चर्यचकित थे कि इतनी तेज धारा से वह कैसे बच निकला? अवधेश सहित सभी सैनिक उससे इस विषय में प्रश्न करने लगे। जिसे सुन सन्यासी ने मुस्कुराते हुए कहा, “यह बालक इसलिए बचा क्योंकि इसके पास कोई ऐसा नहीं था जो इसे कह सकता कि ‘यहां से निकलना नामुमकिन है’। इसके सामने तो बस भाई का फेंका हुआ एक लकड़ी का लट्ठा था और मन में बचने की उम्मीद और यही उम्मीद इसे किनारे तक ले आई।”


दोस्तों, साधारण सी लगने वाली इस कहानी से हमें जीवन को बेहतर बनाने की एक महत्वपूर्ण और गहरी सीख मिलती है। जब हमारे आस-पास के लोग हमें लगातार यह बताते हैं कि “अब कुछ नहीं हो सकता”, तो हमारा मन भी हार मान लेता है। लेकिन जब हमारे पास थोड़ी सी भी उम्मीद हो और कोशिश करने का कोई कारण हो, तो हम असंभव को भी संभव बना सकते हैं।


दोस्तों, जीवन की नदी में कई बार तेज लहरें आएंगी, कभी नौकरी संकट में होगी, तो कभी रिश्तों में कठिनाई, या फिर कभी स्वास्थ्य की चुनौतियाँ। ऐसी सभी परिस्थितियों में हमें सिर्फ़ दो महत्वपूर्ण बातों को ध्यान में रखना है:

1) आसपास सही लोग होना – जो आपको निराश करने के बजाय प्रेरित करें।

2) अपने मन में उम्मीद बनाए रखना – क्योंकि यही उम्मीद आपको आगे बढ़ने की ऊर्जा देती है।

3) नकारात्मक शब्दों से बचें – बहुत बार, हार का कारण हमारी परिस्थितियाँ नहीं, बल्कि हमारे कानों तक पहुंचने वाले नकारात्मक शब्द होते हैं। अगर विक्रम ने किनारे से आती आवाज़ें सुनी होतीं कि “यह नामुमकिन है”, तो शायद उसका हौसला टूट जाता।

4) उम्मीद की ताकत – उम्मीद सिर्फ एक भावना नहीं, यह एक ऊर्जा है। यह हमें कठिन परिस्थितियों में भी आगे बढ़ने का रास्ता दिखाती है। उम्मीद के साथ जब हम प्रयास करते हैं, तो चमत्कार संभव हो जाते हैं।

निष्कर्ष

जब भी जीवन में कठिनाई आए, तो अपने आसपास ऐसे लोग रखें जो आपको यह कहें – “तुम कर सकते हो।” और अगर ऐसे लोग न भी हों, तो खुद अपने लिए वह आवाज़ बनें। याद रखिए, जब तक मन में उम्मीद और दिल में हौसला है, तब तक कोई भी तेज बहाव आपको डुबा नहीं सकता।


जब तक जीवन में उम्मीद है और आपका हौसला क़ायम है, तब तक कोई भी व्यक्ति या परिस्थिति आपको हरा नहीं सकती है।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

 
 
 

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