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  • Writer's pictureNirmal Bhatnagar

चिंतन और प्रयास - सुख, शांति और सफलता के दो प्रमुख घटक

Feb 1, 2023

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, जीवन में सफलता और असफलता एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। जिस तरह टॉस करते समय हेड या टेल दोनों आने की सम्भावना रहती है, ठीक उसी तरह जब आप किसी लक्ष्य को पाने के लिए प्रयास करते हैं तब सफलता या असफलता दोनों मिलने की सम्भावना बराबर रहती है। जब प्रयास के परिणाम में हमें सफलता मिलती है तो हम खुश और उत्साहित हो जाते हैं और अगर असफलता हाथ लगती है तो हतोत्साहित हो परेशान रहने लगते हैं, जीवन से उम्मीद छोड़ देते हैं। ऐसी स्थिति में लोग सफलता और असफलता के विषय में ध्यान रखने वाली सबसे महत्वपूर्ण यह बात भूल जाते हैं कि जिस तरह दूसरी बार टॉस करने पर परिणाम बदल सकता है ठीक उसी तरह दूसरी बार प्रयास करने पर असफलता भी सफलता में बदल सकती है।


जी हाँ साथियों, असफलता कभी भी स्थायी नहीं हो सकती। असफलता के दौर में प्रयास बढ़ाने पर परिणाम बदले जा सकते हैं। दूसरे शब्दों में कहा जाए, तो जीवन में हम असफल इसलिए नहीं होते हैं कि हमारा लक्ष्य बहुत बड़ा था बल्कि इसकी मुख्य वजह प्रयास पर्याप्त ना होना है। अगर आपकी सोच, आपकी योजना, आपके प्रयास, आपके लक्ष्य के अनुरूप होंगे तो कोई भी लक्ष्य बड़ा या अप्राप्य नहीं हो सकता है।


असफलता तो स्थायी तब बनती है जब हमारी सोच हमारे लक्ष्य के मुक़ाबले बहुत छोटी है। यही छोटी सोच हमारे तनाव या चिंता का प्रमुख कारण होती है। इसे आप इस तरह भी समझ सकते हैं कि हमारी सोच जितनी छोटी होगी हमारी चिन्ता उतनी ही बड़ी होगी और अगर हमारी सोच बड़ी होगी तो हमारे कार्य करने का स्तर भी सोच जितना ही बड़ा या श्रेष्ठ होगा।


इस आधार पर कहा जा सकता है कि छोटी सोच चिंता को जन्म देती है और बड़ी सोच चिंतन को। इसका अर्थ हुआ, जीवन दो तरीक़ों से जिया जा सकता है। पहला, चिंता में जीते हुए या फिर दूसरा, चिंतन करते हुए। इसीलिए मैं कहता हूँ, असफल लोग चिंता करते हुए जीते है और सफल लोग चिंतन करते हुए। चिंता मुसीबत, परेशानी, असफलता का दूसरा नाम है और चिंतन सुख, शांति और सफलता का। चिंता आसान से कार्य को मुश्किल, असम्भव और परेशानी भरा बना देती है और चिंतन मुश्किल से मुश्किल या असम्भव से लगने वाले कार्य को बड़ा आसान बना देता है।


मेरी नज़र में तो साथियों, ‘मास’ याने भीड़ और ‘क्लास’ याने विशेष लोगों के बीच का सबसे बड़ा अंतर चिंता करना या चिंतन करना ही है। भीड़ चिंता करती है, दोष देती है, असफलता के कारण ढूँढती है। जबकि विशेष स्थान रखने वाले ‘विशेष’ या ‘क्लास’ लोग चिंतन कर अपने लक्ष्य पाने के रास्ते खोजते हैं और उसके अनुसार योजनाबद्ध तरीके से कार्य कर अंततः उसे पा लेते हैं। इसीलिए कहा गया है, ‘चिन्ता स्वयं में एक मुसीबत है और चिन्तन उसका समाधान।’


तो आईए दोस्तों आज से जीवन में अपने लक्ष्यों को पाने, अपने जीवन को सुखी, शांति से पूर्ण और सफल बनाने के लिए चिंता के स्थान पर चिंतन प्रारम्भ करते हैं क्योंकि चिंतन में चिंताओं का हरण करने की शक्ति है। चिंतन हमें असफल से सफल बनने का रास्ता दिखा सकता है। बस हमें उस रास्ते पर विश्वास के साथ चलते हुए प्रयास करना होगा।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर


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