जीतना हो तो डटे रहें…
- Nirmal Bhatnagar
- 2 days ago
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June 2, 2025
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

“दोस्तों, लोग मुझे मगरमच्छ कहते हैं। इसलिए नहीं कि मैं ताक़तवर हूँ बल्कि इसलिए क्योंकि मैंने कभी अपने सपनों को छोड़ना नहीं सीखा।” यह पंक्ति किसी साधारण इंसान ने नहीं बल्कि एक ऐसे इंसान ने कही है, जिनका नाम मगरमच्छ की फोटो के साथ आज भी दुनिया भर में करोड़ों टीशर्ट पर लिखा जाता है। जी हाँ आप सही अंदाजा लगा रहे हैं मैं बात कर रहा हूँ रेन लैकोस्ट की, जिनकी बनाई “Lacoste” टीशर्ट कभी ना कभी आपने और मैंने पहनी ही होगी।
लेकिन दोस्तों, उनका जीवन इतना आसान नहीं था, जितना यहाँ सुनने में लग रहा है। जीवन के शुरुआती वर्षों में रेन लैकोस्ट बहुत ही दुबले-पतले और संकोची स्वभाव के थे, जिनके पास सिर्फ़ एक टेनिस का रैकेट और खिलाड़ी बनने का सपना था। उनकी शारीरिक बनावट और सपनों को सुन, बचपन में उनके दोस्त उनका मजाक उड़ाया करते थे और कहते थे, “जरा अपनी हालत देख ले, तू बड़ा कमजोर है। कोर्ट पर टिक भी नहीं पायेगा।” रेन लैकोस्ट ने लोगों के तानों पर प्रतिक्रिया देने या उसकी वजह से हार मानने के स्थान पर, हर मजाक; हर आलोचना को ईंधन बनाया और हर नकारात्मक शब्द को ज़िद में बदला और अंततः विंबलडन, रोलां गैरोस, डेविस कप जीत कर साबित किया कि संकल्प और अनुग्रह याने दृढ़ता और विनम्रता दोनों साथ चल सकते हैं और उनसे सफलता पाई जा सकती है।
दोस्तों, उनकी कहानी सिर्फ़ टेनिस की बड़ी-बड़ी प्रतियोगिताओं को जीतने की कहानी नहीं है, बल्कि विषम परिस्थितियों में उनके जुनून के जीत की कहानियाँ हैं। ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि उन्होंने अपनी ज़िंदगी की सबसे बड़ी लड़ाई टेनिंस कोर्ट पर नहीं, बल्कि अस्पताल के बिस्तर पर लड़ी थी। असल में मात्र 25 साल की उम्र में उन्हें फेफड़ों की गंभीर बीमारी हो गई थी, जिसकी वजह से उन्हें खेलना बंद करना पड़ा था।
इस दौर में उनके लिए साँस लेना भी मुश्किल था लेकिन फिर भी उन्होंने सपने देखना बंद नहीं किया। सबसे पहले उन्होंने मन ही मन अपने खेल जीवन को एक बार फिर से जिया और उसमें आनी वाली दिक्कतों के विषय में सोचना शुरू किया। इस दौरान उन्हें जल्द ही एहसास हुआ कि खेलते समय पहने जाने वाले कपड़े कितने असहज होते थे। इलाज के दौरान उन्होंने लगातार सोचा और इस समस्या का समाधान निकालते हुए एक नया डिज़ाइन बनाया जो पहनने में हल्का, आरामदायक और व्यवहारिक था। अंत में उन्होंने इन कपड़ों पर मगरमच्छ का लोगो लगाया क्योंकि वे जानते थे कि मगरमच्छ कभी पीछे नहीं हटते। लेकिन इस बार भी उनकी सोच के विपरीत लोग उनके इस विचार पर हंसे और बोले, “कौन पहनेगा ऐसी टी-शर्ट जिसपर मगरमच्छ बना हो?” लेकिन उनकी सोच; उनकी बनाई डिज़ाइन आज विश्व स्तर पर एक पहचान बन गई है। इसलिए दोस्तों Lacoste को मैं सिर्फ़ एक ब्रांड नहीं, बल्कि एक सोच मानता हूँ। वैसे दोस्तों, लैकोस्ट ही नहीं बल्कि सभी ब्रांड एक सोच होते हैं।
खैर हम अपनी कहानी पर ही वापस आते हैं। दोस्तों, लैकोस्ट ब्रांड की कहानी एक ऐसे लड़के की कहानी है जिसने “हार” नाम के शब्द को अपने जीवन, अपनी आत्मा, अपने शब्दकोश में जगह नहीं दी और अपने जीवन के सबसे मुश्किल समय में भी उम्मीद का दीप जलाए रखा। यही बात तो दोस्तों हम सब को सीखनी है, जीवन में चाहे कितनी भी मुश्किलें क्यों ना आ जाएँ, कभी भी अपने सपनों को मत छोड़ो क्योंकि ताक़त सिर्फ़ शरीर या मांसपेशियों में नहीं होती, वह तो हमारे विचार और विश्वास में होती है। इसलिए दोस्तों, जीवन में कभी भी कठिन दौर आए या आप उससे गुज़र रहें हों और लोग आपकी क्षमताओं को कम आँक रहे हों या अपना सपना अधूरा लग रहा हो तो ख़ुद पर और अपने विचार पर विश्वास रखो और रुकने के स्थान पर, आगे बढ़ो और मैदान में डटे रहो और दोस्तों अगर आप डटे रहे तो एक दिन दुनिया तुम्हारे नाम की पहचान पहनेगी।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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