पुरातन ज्ञान या विज्ञान; कौन है बेहतर?
- Nirmal Bhatnagar
- Dec 8, 2024
- 3 min read
Dec 8, 2024
फिर भी ज़िंदगी हसीन है...

दोस्तों, पुरातन ज्ञान और विज्ञान; दोनों में से कौन ज़्यादा सही है एक ऐसी बहस है, जिसपर एक मत होना या दोनों में से बेहतर कौन, सिद्ध करना शायद असंभव ही है। लेकिन इस विषय में अगर आप मेरा मत पूछेंगे तो मैं इतना ही कहूँगा कि मेरे अल्प ज्ञान के अनुसार तो पुरातन ज्ञान ही ज्यादा गहरा है। इतना ही नहीं; मेरा तो यहाँ तक मानना है कि विज्ञान, आज भी पुरातन ज्ञान को ही सिद्ध करने का प्रयास आज कर रहा है। जी हाँ दोस्तों, अगर सहमत ना हों तो जरा सोच कर देखिएगा कि पृथ्वी से सूरज की दूरी का सटीक वर्णन हनुमान चालीसा में कैसे किया गया है?
अब आपके मन में प्रश्न आ सकता है कि अगर ऐसा था तो हम सभी लोग इस बात पर एकमत क्यों नहीं है? तो दोस्तों, मेरा मानना है कि इसकी मुख्य वजह पाश्चात्य की नकल करने के चक्कर में अपने गौरवशाली अतीत से दूरी बना लेना है। जैसे हमने पाश्चात्य की नकल करते हुए आधुनिक भाषा को अपना बनाया और हम अपनी भाषा में सांकेतिक रूप से सिखाये जीवन के असली ज्ञान से दूर हो गए। चलिए, अपनी इस बात को मैं आपको हमारे बुजुर्गों द्वारा सांकेतिक रूप से कहीं गई एक बात के माध्यम से ही समझाने का प्रयास करता हूँ। अक्सर आपने बुजुर्गों को कहते सुना होगा, ‘हमारे जीवन में ‘चार पैसे’ का बड़ा महत्व है।’ लेकिन हमने कभी सोचा नहीं है कि वे ऐसा क्यों कहते हैं? बस हमने तो इसके शाब्दिक अर्थ को पकड़कर आगे यह और कहना शुरू कर दिया कि ‘इन्सान चार पैसे कमाने के लिए मेहनत करता है।’; ‘बेटा कुछ काम करोगे, तो चार पैसे घर में आएंगे।’; आज चार पैसे होते तो कोई ऐसे न बोलता।’ आदि-आदि…
लेकिन दोस्तों, अगर आप इसकी गहराई में जाएँगे तो पायेंगे कि ‘चार पैसे’ का अर्थ यहाँ ‘चार पैसे’ नहीं है, अपितु यह तो हमें 25 से 50 वर्ष की आयु तक चलने वाले गृहस्थ आश्रम को उद्देश्य पूर्ण तरीक़े से जीना सिखाता है। जिसका मुख्य उद्देश्य धर्म, अर्थ, काम की प्राप्ति हेतु कार्य करना और सामाजिक विकास करना है। चलिए, अब हम अर्थ याने पैसों के लिए काम करते वक्त हमारे जीवन में ‘चार पैसे’ के महत्व या इसके गणित को समझते हैं। यहाँ पहले पैसे का अर्थ भोजन से है। अर्थात् आपके कमाई के पहले पैसे का उपयोग आपको अपने और अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए करना है। ‘दूसरे पैसे’ से हमें अपना पिछला कर्ज उतारना है अर्थात् हमें इस दूसरे पैसे से अपने माता-पिता का कर्ज उतारना है। जिस तरह उन्होंने बचपन में हमारा पालन-पोषण सर्वोत्कृष्ट तरीके से किया है, ठीक उसी तरह हमें उनकी सेवा करना है और इस दूसरे पैसे से उनके जीवन को सुगम बनाना है। ‘तीसरे पैसे’ का उपयोग हमें कर्ज देने के लिए करना है। जिससे हम अपने जीवन के उत्तरार्ध को बेहतर और सुरक्षित बना सकें। दूसरे शब्दों में कहूँ, तो इस तीसरे पैसे से हमें अपनी संतान को शिक्षित और संस्कारी बनाना है जिससे वह अपने जीवन को बेहतर बनाने के साथ-साथ वृद्धावस्था में हमारा ख्याल ठीक से रखने लायक़ बन जाए। अब बचा चौथा और अंतिम पैसा। इस पैसे को हमें कुएँ में डालना है अर्थात् इसका प्रयोग हमें सेवा के शुभ कार्यों में करना है। दूसरे शब्दों में कहूँ, तो हमें इस चौथे पैसे से असहायों की मदद करना चाहिए। इसका उपयोग दान-पुण्य, संत सेवा और निष्काम सेवा में करना चाहिए। जिससे हम इन शुभ कर्मों से मिलने वाले फल से अपने इस जीवन के बाद की यात्रा को सुगम बना सकें।
दोस्तों, अब तो आप निश्चित तौर पर समझ गए होंगे कि हमारे पूर्वजों ने ‘चार पैसे’ का ही उल्लेख क्यों किया है। यदि हमारे पास तीन पैसे होते तो हम चौथा कार्य ना कर पाते और अगर चारों कार्य कर लिए तो पांचवें पैसे की हमें जरूरत ही नहीं है। सोच कर देखियेगा दोस्तों, अगर हमने इस चार पैसे के गणित को समझ लिया होता, तो जीवन में हमें कुछ अतिरिक्त करने की जरूरत ही नहीं होती। इसीलिए मैं हमेशा कहता हूँ कि पुरातन ज्ञान जहाँ हमारे जीवन के लिए आवश्यक चेतना के नियम खोजने में मदद करता है वहीं विज्ञान हमें पदार्थ के नियमों को खोजने और समझने में मदद करता है और व्यक्तिगत तौर पर मैं अपने जीवन के लिए चेतना के नियमों को पदार्थ के नियमों से ज्यादा आवश्यक मानता हूँ। इसीलिए मैंने पूर्व में पुरातन ज्ञान को विज्ञान से बेहतर बताया था।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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