मेहनत से जो मिले वही असली जीत…
- Nirmal Bhatnagar
- 7 hours ago
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June 20, 2025
फिर भी ज़िंदगी हसीन है...

दोस्तों, इस दुनिया में हर इंसान कुछ ना कुछ बड़ा करके नाम कमाना चाहता है; सफल होना चाहता है। लेकिन अक्सर यह सपना जीवन के शुरुआती वर्षों में आई चुनौतियों के कारण अपना दम तोड़ देता है। इसकी एक मुख्य वजह शून्य से शुरू करने की वजह से उपजा अनजाना डर होता है। जिसके कारण वे बार-बार रुक जाते हैं या फिर हिम्मत हार कर बैठ जाते हैं। पर जो लोग अपने लक्ष्यों के प्रति समर्पित रहते हैं, वे किसी भी स्थिति में हार नहीं मानते। आइए इसी बात को मैं आपको पुणे निवासी रामभाऊ की प्रेरणादायी कहानी से समझाने का प्रयास करता हूँ।
रामभाऊ का जन्म ना तो किसी बड़े घराने में हुआ था, ना ही वे कोई पढ़े-लिखे व्यक्ति थे और जब वे पढ़े-लिखे ही नहीं थे, तो किसी प्रभावशाली नौकरी या पद पर होना उनके लिए सपने से अधिक नहीं था। उन्होंने अपने जीवन की शुरुआत एक साधारण से माली के रूप में करी थी। लेकिन उनके पास पौधों या बाग को देखने का और बंजर भूमि को हरियाली में बदलने का असाधारण हुनर था। वे बड़े मेहनती और ईमानदार होने के साथ-साथ अपने काम से प्रेम करते थे। जो उन्हें अपने समकक्षों से अलग बनाता था।
एक बार पुणे की पॉश कॉलोनी में रहने वाले निनाद वेंगुलेकर का ध्यान उनकी प्रतिभा पर गया। उन्होंने तत्काल रामभाऊ को अपने बगीचे की देखरेख के लिए बुलाया। जिसे रामभाऊ ने तत्काल स्वीकार लिया और उनके बगीचे की देखरेख करना शुरू कर दिया। वैसे इस कार्य को स्वीकारना रामभाऊ के लिए आसान नहीं था क्योंकि निनाद का घर रामभाऊ के घर से काफ़ी दूर था और प्रतिदिन साइकिल से इतनी यात्रा करना आसान नहीं था। लेकिन रामभाऊ इसे पूरी लगन से करते रहे। आगे बढ़ने से पहले मैं आपको यह और बता दूँ कि इस कार्य को रामभाऊ ने बिना पैसे तय किए, सिर्फ़ यह कहकर शुरू किया था कि ‘आप जितना भी देंगे वो स्वीकार होगा।’
असल में रामभाऊ के मन में योजना चल रही थी कि इस कार्य के ज़रिए वे उस इलाक़े मैं अपनी अच्छी पकड़ बनायेंगे और उसी के सहारे नए रास्ते तलाशेंगे। अपनी योजना के अनुसार रामभाऊ ने 15 दिन के भीतर ही निनाद के बगीचे का रूपांतरण कर दिया। बंजर बगीचा अब हरा-भरा और रंग-बिरंगे फूलों से भर गया था। यह दृश्य खुद निनाद को भी चौंका गया। इसके बाद रामभाऊ ने आस-पास के घरों से संपर्क किया और अपने काम की झलक दिखाई। काम बढ़ता गया, और रामभाऊ की मेहनत रंग लाती गई।
धीरे-धीरे उन्होंने 20 घरों की बगवानी का काम सम्भाल लिया और फिर एक मोटरसाइकिल खरीदी और साथ ही चार सहायकों को काम पर रख लिया। काम के प्रति समर्पण को देख पुणे के एक बड़े बिल्डर ने रामभाऊ को अपने पूरे हाउसिंग प्रोजेक्ट के बागवानी का ठेका दे दिया। जिसे रामभाऊ ने बखूबी पूरा किया। यहीं से रामभाऊ की ज़िंदगी ने करवट ली और वे तेज़ी से जीवन में आगे बढ़ने लगे।
एक दिन उनके पहले ग्राहक निनाद ने उन्हें अपने बगीचे को ठीक करने के लिए दोबारा याद किया। जिसे रामभाऊ ने सहर्ष स्वीकार लिया और तय समय पर उनके घर पहुँच गए। जहाँ निनाद उन्हें देखते ही चौंक गए क्योंकि आज उनका माली साइकिल से नहीं, बल्कि अपनी ख़ुद की होंडा सिविक से आया था। इतना ही नहीं, उनका आश्चर्य तब और बढ़ गया जब रामभाऊ ने गड्डे खोदने से लेकर पौधे लगाने का कार्य ख़ुद करना शुरू कर दिया।
दोस्तों, सफलता मिलने के बाद भी राम भाऊ ने मिट्टी खोदना याने अपनी जड़ों को नहीं छोड़ा था। वे अभी भी अपने काम को उतनी ही ईमानदारी, लगन और सम्मान से कर रहे थे। यही तो एक सच्चे कर्मयोगी की पहचान है। उनकी कहानी से हम जीवन को संवारने वाले निम्न सूत्र सीख सकते हैं-
1) सफलता का कोई शॉर्टकट नहीं होता।
2) हर बड़ा सफर एक छोटे कदम से शुरू होता है।
3) जो अपने काम से प्रेम करता है, उसके लिए किसी भी मंज़िल को पाना असंभव नहीं होता।
तो दोस्तों, अगली बार, जब कभी ज़िंदगी में चुनौती आए, तो घबराना नहीं। रामभाऊ की तरह डटे रहना और मेहनत करते रहना, क्योंकि साइकिल से सिविक तक का सफर मेहनत से ही तय होता है, और यही है असली सफलता का रास्ता। साथ ही हमेशा याद रखना “मेहनत से जो मिले, वो ही असली जीत होती है।”
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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