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  • Writer's pictureNirmal Bhatnagar

रहना है ख़ुश तो रखे ख़ुश….

May 27, 2022

फिर भी ज़िंदगी हसीन है

11 वर्षीय रोहन अपने पिता के साथ बाज़ार जाते समय हाथ से एक ओर इशारा करते हुए बोला, ‘पिताजी, देखो राजू भैया सिगरेट पी रहे हैं।’ पिता ने रोहन की बताई दिशा में राजू को सिगरेट पीते हुआ देखा लेकिन उसे टोकने या समझाने के स्थान पर, घटना को नज़रंदाज़ करते हुए आगे बढ़ गए और अपने बेटे को उस बुरी आदत से बचने के बारे में समझाने लगे।


उक्त घटना सुनते ही मुझे मेरा बचपन याद आ गया, जिस वक्त घर से तो छोड़िए मोहल्ले या शहर से दूर होते हुए भी बच्चे ग़लत काम करने में डरते थे क्यूँकि उस वक्त समाज से कोई भी बच्चों को ग़लत कार्य करते हुए देखता था तो तुरंत टोक देता था, और अगर देखने वाला परिवार का थोड़ा भी परिचित हो तो उसे ‘ठोकने’ का भी अधिकार रहता था। असल में बच्चों को संस्कारवान बनाने की ज़िम्मेदारी उस समय पूरा समाज निभाता था। इसका अर्थ यह हुआ साथियों कि बच्चों की परवरिश में समाज का भी सकारात्मक योगदान रहता था। लेकिन आजकल ऐसा नहीं होता है, अब हमें किसी और के बच्चे को बिगड़ते हुए देख, कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता है और अगर मान लिया जाए कि आप इस विषय में संवेदनशील है और आप दूसरों के बच्चों को टोककर बेहतर बनाना चाहते हैं, तो भी बहुत हद तक सम्भव है कि ग़लत कार्य करने वाले बच्चे के पिता उल्टा आप ही से लड़ना शुरू कर दें और बोलें, ‘मेरे बच्चे को टोकने वाले आप होते कौन हैं?’


दोस्तों, इसी वजह से समाज में जीवन मूल्य गिरते जा रहे हैं। जी हाँ साथियों, मेरी नज़र में ‘मुझे क्या फ़र्क़ पड़ता है’ वाला दृष्टिकोण ही समाज में गिरते मूल्यों का मुख्य कारण है। अगर हमने समय रहते इसे दूर नहीं करा तो जल्द ही हमें इसके दुष्परिणाम भुगतना होंगे। समाज को इससे बचाने का एक ही तरीक़ा है, हमें बच्चों की परवरिश का पुराना तरीक़ा अपनाना होगा। अर्थात् हमें ‘पेरेंटिंग एस ऐन ऑर्गनायज़ेशन’, अर्थात् बच्चों की परवरिश में समाज की भूमिका को अपनाना होगा, जिससे बच्चों को समय रहते जीवन मूल्य सिखाए जा सकें। इसे मैं आपको एक किस्से से समझाने का प्रयास करता हूँ-


बात कई वर्ष पुरानी है सुदूर गाँव में एक बहुत ही समृद्ध और प्रसिद्ध किसान रहा करता था। उसकी प्रसिद्धि की मुख्य वजह उसके द्वारा उगाई गई बहुत ही उमदा क़िस्म की फसल थी। आसपास के पूरे इलाक़े में रहने वाले लोग उसके खेत में उगी फसल फिर चाहे वह सब्ज़ी हो या अनाज या फिर फल, खाना पसंद किया करते थे।


उस किसान की एक और विशेषता थी, वह हर बार ना सिर्फ़ खुद के लिए बल्कि अपने आस-पास मौजूद हर किसान के लिए सर्वोत्तम क्वालिटी के बीज लेकर आया करता था। उसकी इस आदत की वजह से कई लोग उसे बेवक़ूफ़ या दिमाग़ से कमजोर माना करते थे और कहते थे, ‘यह तो गधा है, इसे यह भी नहीं पता हर साल अपने पड़ोसियों को बीज देने की वजह से कितना आर्थिक नुक़सान उठा रहा है।’ जब लोगों द्वारा कही जाने वाली बात उस किसान के दोस्त को पता चली तो उसे मित्र के भोलेपन पर बहुत दुःख हुआ और उसने मित्र को इस नुक़सान के बारे में बताते हुए फ़्री बीज बाँटने की वजह पूछी।


मित्र की बात को सुन वह किसान जोर से हँसा और बोला, ‘मित्र मेरी सफलता का राज मेरे मुफ़्त के बीज बाँटने में छिपा हुआ है।’ अब चौकनें की बारी मित्र की थी, उसने तुरंत मित्र से प्रश्न करा, ‘कैसे? मैं तुम्हारी बात समझ नहीं पाया?’ मित्र का प्रश्न सुन किसान गम्भीर स्वर में बोला, ‘प्रकृति का यही नियम है, जितना ज़्यादा तुम किसी भी चीज़ को बाँटोगे वह चीज़ उतनी ही बढ़कर तुम्हें वापस मिलेगी। पर शायद तुम या समाज मेरी इस बात से सहमत ना हो। इसलिए मैं तुम्हें इसे विज्ञान की भाषा में समझाता हूँ। हमारे खेत में उगने वाली फसलों पर आस-पास के खेतों में उगी फसल का भी असर पड़ता है। जब खेत में बोए बीज पौध का रूप ले लेते है तब वहाँ चलने वाली हवाएँ पराग के कणों को उड़ाकर अपने साथ ले जाती हैं और उन्हें आसपास के खेतों में फैला देती है। अगर मेरे पड़ोसी बेकार क़िस्म के बीजों का उपयोग करेंगे तब हवाओं के साथ उड़कर ख़राब पराग के कण मेरे खेत में आएँगे और पोलिनेशन की वजह से साल-दर-साल मेरी फसल की गुणवत्ता को प्रभावित करेंगे। इसलिए अगर मैं हर वर्ष अच्छी क्वालिटी की फसल उगाना चाहता हूँ तो मुझे अपने आसपास के किसानों की मदद करते रहना पड़ेगी।


वास्तव में दोस्तों हमारा जीवन भी ऐसा ही है। अगर हम अच्छा और खुशहाल जीवन जीना चाहते हैं, तो हमें हमसे जुड़े सभी लोगों को भी ऐसा करने के लिए प्रेरित करना चाहिए और उनकी सहायता करनी चाहिए। आप जिन लोगों या माहौल के बीच में रहते हैं आपके विचार वैसे ही बन जाते हैं। जैसे आपके विचार होंगे वैसे ही आपके संस्कार होंगे और जैसे आपके संस्कार होगा वैसा ही आपका समाज में व्यवहार होगा। याद रखिएगा दोस्तों हमारे जीवन में ख़ुशी और शांति का स्थायी वास तभी हो सकता है, जब हमसे जुड़े हुए लोग भी खुश हाल हों..!!


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

nirmalbhatnagar@dreamsachievers.com

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