top of page
  • Writer's pictureNirmal Bhatnagar

व्यवहार कुशलता से बनाएँ अपना जीवन आसान !!

Sep 21, 2022

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

आईए दोस्तों, आज के लेख की शुरुआत एक बहुत ही प्यारी कहानी से करते हैं। राजा राजवेंद्र बहुत ही दयालु और सरल स्वभाव के थे। उनकी एक और ख़ासियत यह थी कि कभी भी कोई जरूरतमंद उनके द्वार से ख़ाली हाथ वापस नहीं जाता था।इसीलिए पुरा राज्य उनके व्यवहार और राज कुशलता का क़ायल था। एक बार एक संत सहायता की आस लिए राजा के पास पहुंचे तो राजा ने आदर सहित उनका सत्कार करते हुए उनकी पूरी सहायता करी। संत राजा की सेवा से बहुत प्रसन्न हुए और बोले, ‘राजन, मैं तुम्हारी सेवा से बहुत खुश हुआ हूँ। तुम्हारे हाथों की लकीरों और ग्रह-नक्षत्रों की चाल देख मैं तुम्हारा भविष्य देख सकता हूँ। पिछले जन्म में तुमने अनजाने में सर्प के एक परिवार को खत्म कर दिया था इसलिए वह सर्प तुम्हें डँस कर अपना बदला पूरा करना चाहता है। मेरी गणना के आधार पर मुझे लगता है, राज्य के पश्चिम दरवाज़े के समीप बबूल के पेड़ की जड़ों में रहने वाले सर्प के डसने के कारण तुम्हारी मृत्यु हो सकती है।’


संत की बात सुन राजा थोड़ा घबरा गया और अपनी आत्मरक्षा का उपाय सोचने लगा। काफ़ी सोच विचार करने पर राजा इस नतीजे पर पहुँचा कि शत्रु से जीतने के लिए मधुर व्यवहार से अच्छा कोई और हथियार इस दुनिया में है ही नहीं, मैं इसी की सहायता से सर्प का मन बदलने का प्रयास करूँगा। विचार आते ही राजा ने अपने मंत्री को बुलवाया और बोला, ‘मंत्री जी, हमारे राज्य के पश्चिमी द्वार के पास स्थित बबूल के पेड़ से महल के दरवाज़े तक सुगंधित फूल बिछवा दो और साथ ही उसके आस-पास सुगंधित जल का छिड़काव करवा दो और पूरे रास्ते में जगह-जगह मीठे दूध के कटोरे रखवा दो।’


मंत्री ने तुरंत राजा की आज्ञा का पालन करते हुए सुगंधित फूल, जल का छिड़काव करवा दिया और पूरे रास्ते में थोड़ी-थोड़ी दूर पर मीठे दूध की कटोरी रखवा दी। इसके बाद राजा ने आपने सेवकों को निर्देश दिया कि अगर वे किसी सर्प को मेरे शयनकक्ष की ओर आता देखे तो उसे रोके या मारे नहीं। साथ ही सभी लोग यह सुनिश्चित करें कि सर्प को पूरे रास्ते में कोई तकलीफ़ ना हो। रात्रि के दूसरे प्रहार में साँप अपने बिल में से बाहर निकला और राजा के महल की ओर चलने लगा। जैसे-जैसे वह आगे बढ़ता जा रहा था वैसे-वैसे आस-पास के माहौल और सुविधाओं को देख उसका ग़ुस्सा कम होता जा रहा था। फूलों के कोमल बिछौने पर सुगंध और दुग्ध का पान करते हुए जैसे-जैसे सर्प आगे बढ़ रहा था, उसके अंदर संतोष और प्रसन्नता का भाव बढ़ता जा रहा था। जब वह राजमहल के दरवाज़े के समीप पहुँचा तो प्रहरी और सशस्त्र द्वारपालों द्वारा उसके रास्ते से सम्मान पूर्वक हट जाना उसके मन को छू गया और वो सोचने लगा, ‘पिछले जन्म का बदला लेने के लिए इतने अच्छे राजा को मारना क्या उचित है?, लेकिन अगले ही पल उसके मन में विपरीत विचार आने लगे और वह एक बार फिर राजा के शयनकक्ष की ओर बढ़ने लगा।


शयन कक्ष के द्वार पर राजा ने सर्प के पूजन की व्यवस्था के साथ स्वागत का पूरा इंतज़ाम कर रखा था। उस इंतज़ाम और सशस्त्र सैनिकों द्वारा किसी भी प्रकार से हानि पहुँचाने का प्रयास ना करने के कारण सर्प के मन में राजा के लिए अटूट प्रेम उमड़ आया। राजा के सद्व्यवहार, नम्रता, मधुरता के जादू ने उसे मंत्रमुग्ध कर लिया था। अब उसे राजा को डँसना असम्भव सा लग रहा था। वह सोच रहा था कि हानि पहुँचाने के लिए आने वाले शत्रु के लिए इतनी व्यवस्था करने वाला इंसान साधारण तो हो नहीं सकता। राजा के मधुर व्यवहार ने सर्प के मन को बदल दिया और उसने राजा की जान को बख्शने का निर्णय ले लिया।


कुछ ही पलों बाद राजा जैसे ही अपने शयन कक्ष में पहुँचा तो सर्प को देख नमन करने लगा। सर्प ने खुश होकर उसे लम्बी आयु का आशीर्वाद देते हुए कहा, ‘राजन, मैं तुम्हें डँस कर, पिछले जन्म का बदला लेना चाहता था लेकिन तुम्हारे सद्व्यवहार ने मेरे मन को जीत लिया है। अब मैं तुम्हारा शत्रु नहीं मित्र हूँ और मित्रता के उपहार स्वरूप मैं अपनी बहुमूल्य मणि तुम्हें दे रहा हूँ। इसे हमेशा अपने पास रखना, इतना कहकर साँप राजा को डँसे बिना ही वापस चला गया।


दोस्तों, यह कहानी मुझे हाल ही में एक प्रसिद्ध विद्यालय में घटी घटना के बाद ध्यान आई। असल में विद्यालय के एक कनिष्ठ शिक्षक की ग़लत शिकायत पर एक वरिष्ठ अधिकारी पर मैनेजमेंट द्वारा जाँच बैठा दी गई। जाँच में वरिष्ठ अधिकारी ने मैनेजमेंट के समक्ष अपनी स्थिति स्पष्ट करी साथ ही मैनेजमेंट को विश्वास दिलवाया कि वे सम्बंधित कर्मचारी को भी संतुष्ट कर, स्थिति ठीक कर देंगे। पूरी बात जब कनिष्ठ अधिकारी को पता चली तो वो बदले की आशंका से घबरा गया। लेकिन वरिष्ठ अधिकारी के मन में तो कुछ और ही चल रहा था, वे विवाद को बढ़ाने के स्थान पर खत्म करके अपनी ग्रोथ पर ध्यान लगाना चाहते थे। उन्होंने तुरंत पूरे स्टाफ़ के समक्ष कनिष्ठ अधिकारी को बुलाया और उनकी अच्छी बातों की तारिफ़ करते हुए गले लगाया और आपसी मतभेद को मन भेद बनने से रोक दिया।


दोस्तों, यही तो सही जीवन जीने का तरीक़ा है, हमारे जीवन की सच्चाई है। जिस तरह गंदगी को गंदगी से साफ़ नहीं किया जा सकता है, ठीक उसी तरह बुरे व्यवहार को बुरे व्यवहार से नहीं जीता जा सकता है। याद रखिएगा, अच्छा व्यवहार कठिन से कठिन कार्यों को सरल बनाने का दम रखता है। यदि व्यक्ति व्यवहारकुशल है, तो वह जो पाना चाहता है, सब कुछ पा सकता है।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

14 views0 comments
bottom of page