top of page
  • Writer's pictureNirmal Bhatnagar

जानकार या विद्वान नहीं, ज्ञानी बनो…

Apr 22, 2024

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…



दोस्तों, मेरी नज़र में जानकार होना और ज्ञानी होना दो बिलकुल अलग-अलग बातें हैं, जिनमें कई समानताएँ भी नज़र आती है। अपनी बात को मैं आपको हनुमान जी और रावण के एक प्रसंग से समझाने का प्रयास करता हूँ। रावण एक जानकार था, उसे चारों वेद और छहों शास्त्र की जानकारी थी। इसीलिए उसे दस सिरों वाला कहा गया है। इसी बात को दूसरे शब्दों में कहूँ तो जिस व्यक्ति के सिर में चारों वेद और छहों शास्त्र भरे हों उसे दस शीश वाला कहा गया है। इसीलिए मैं उसे जानकार या विद्वान मानता हूँ, लेकिन विडंबना है कि सीता जी का हरण करते वक़्त उसे चारों वेद और छहों शास्त्र सही रास्ता नहीं दिखा पाए।


इतिहास में ऐसे अनेकों उदाहरण मिलते हैं जिसमें रावण जैसे विद्वान लोगों ने अपनी विद्वता के कारण दूसरों को शांति से रहने नहीं दिया है। उनका जानकार याने विद्वान होने का अभिमान या अहंकार दूसरों की शांति रूपी सीता का हरण करता है। इसके ठीक विपरीत ज्ञानी याने विधावान होना लोगों को शांति रूपी सीता से मिला देता है।


वैसे दोस्तों, जानकार याने विद्वान और ज्ञानी याने विद्यावान होने में कई समानताएँ भी नज़र आती हैं। जैसे, असीमित क्षमता होने के बाद भी हनुमान जी जब भगवान राम का सन्देश लेकर रावण के दरबार में गए थे, तब हनुमान जी ने हाथ जोड़कर रावण से विनती करते हुए अपनी मंशा बताई थी। तो क्या इसका अर्थ यह हुआ कि हनुमान जी रावण से कमजोर थे? जी नहीं, बिलकुल भी नहीं! हनुमान जी का विनती करना असल में उनका भय नहीं, भाव से भरा होना है। असल में विनती दोनों तरह के लोग करते हैं, जो भय से भरे हों, वे भी और जो भाव से भरे हों वे भी। लेकिन अगर आप हनुमान जी की हाथ जोड़ कर की गई विनती पर रावण की प्रतिक्रिया देखेंगे तो पाएँगे कि उसने अपने अभिमान या अहंकार की वजह से इसे हनुमान जी की कमजोरी माना था और सोचा था कि हनुमान जी उससे डर गये हैं। इसलिए उसने अपने दरबार में हाथ जोड़े खड़े देवता और दिग्पाल की ओर इशारा करते हुए कहा था कि ‘देखो यहाँ कितने लोग मेरे सामने हाथ जोड़कर खड़े हैं।’


लेकिन अगर आप ध्यान से देखेंगे तो पाएँगे कि हनुमान जी, देवता और दिग्पालों के समान भय से नहीं, भाव की वजह से हाथ जोड़े खड़े थे। इसीलिए रावण ने घमंड से भरकर कहा था, ‘शायद तुमने मेरे बारे में सुना नहीं है? तभी तू बहुत निडर दिख रहा है!’ इसपर हनुमान जी ने कहा था, ‘क्या तुम्हारे सामने डरते हुए आना ज़रूरी है?’ ऐसे में दोस्तों, एक महत्वपूर्ण प्रश्न उठता है कि हनुमान जी रावण के दरबार में इतनी स्पष्टता और निर्भीकता के साथ अपनी बात कैसे कह पाए? मेरी नज़र में इसकी वजह हनुमान जी का भगवान राम के प्रति समर्पण था, जो उन्हें हर पल, हर हाल में, हर जगह भगवान राम के प्रति भावों से भरा रखता था और उनकी मौजूदगी का एहसास कराता था। इसीलिए रावण को हनुमान जी प्रभु और स्वामी कहकर संबोधित करते हैं। इसके विपरीत रावण अपने अहंकार में उन्हें खल और अधम कहकर संबोधित करता है। यही दोस्तों, ज्ञानी याने विद्यावान होने का लक्षण है। सीधे-सीधे कहा जाए तो जो जानकार याने विद्वान; अपने को गाली देने वाले में भी भगवान देख ले, वही ज्ञानी और विद्यावान है।


जी हाँ साथियों, जो पढ़-लिखकर विनम्र हो जाये, वह ज्ञानी याने विद्यावान और जो पढ़-लिखकर अकड़ जाये, वह विद्वान। इसीलिए तुलसी दास जी ने कहा है, ‘जैसे, बादल जल से भरने पर नीचे आ जाते हैं, वैसे ही विचारवान व्यक्ति, विद्या पाकर विनम्र हो जाते हैं।’ जैसे उपरोक्त घटना में हमने देखा था कि हनुमान जी विनम्र थे और रावण, विद्वान। इसी बात को अगर हम दूसरे नज़रिए से देखें तो कहा जा सकता है कि पढ़ने-लिखने से जिसकी दिमाग़ी क्षमता तो बढ़ जाए, लेकिन जिसके दिल में नकारात्मकता याने ख़राबी हो; जिसके हृदय में अभिमान हो, वह विद्वान है।


अब आपके मन में प्रश्न आ सकता है कि फिर विद्यावान कौन है? तो मैं कहूँगा, पढ़ाई-लिखाई से दिमाग़ी क्षमता बढ़ने के बाद भी जिसमें अभिमान और अहंकार ना आए। जो अपनी दिमाग़ी क्षमता का उपयोग सकारात्मक नज़रिये से, अपने हृदय में भगवान को बैठा कर करे, वही विद्यावान है। इसीलिए तो हनुमान जी ने कहा था, ‘रावण, और सब तो ठीक है, पर तुम्हारा दिल ठीक नहीं है। अपने हृदय में राम जी को बिठा लो और फिर मजे से लंका में राज करो।’ इसलिए दोस्तों, जीवन में जानकार याने विद्वान नहीं, अपितु, ज्ञानी याने विद्यावान बनने का प्रयत्न करो।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

9 views0 comments
bottom of page