पिता कभी नाराज नहीं होते…
- Nirmal Bhatnagar

- 2 days ago
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Dec 11, 2025
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, जीवन में कुछ पल ऐसे आते हैं जो हमें भीतर तक हिला देते हैं। वे हमें यह समझाते हैं कि सच्चा प्रेम वो नहीं जो हर दिन दिखे, बल्कि वो है जो किसी के जीवन को बनाने या सही दिशा देने के लिए चुपचाप लड़ता रहता है। अपनी इस बात को मैं आपको सोशल मीडिया पर पढ़ी पिता-पुत्र की एक ऐसी कहानी से समझाने का प्रयास करता हूँ, जो आपके दिल को पिघलाने के साथ-साथ जीवन के प्रति आपके नजरिये को पूरी तरह बदल देगी।
बात कई साल पुरानी है, व्यवसाय में सफलता पाने के बाद रवि आज पहली बार अपने पुराने दुकान मालिक के घर पहुंचा। कुछ क्षणों तक यूँ ही घर को देखने के बाद उसने दरवाजा खटखटाया और दुकान मालिक के दरवाजा खोलते ही पहले उसने प्रणाम किया और फिर अपने बेग में से नोटों की गड्डी को निकालकर मेज़ पर रखते हुए काँपती आवाज में बोला, “सर! ये आपके पचहत्तर हज़ार रुपये मूल, और उन्नीस महीने का ब्याज। कृपया इसे स्वीकार कीजिए।” इतना कह वह एक क्षण के लिए रुका, फिर अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बोला, “आपने उस समय मुझ पर भरोसा किया, जब मेरे अपने भी मेरे साथ नहीं थे और कोई मेरा नाम भी नहीं सुनना चाहता था। अगर आप न होते तो शायद मैं उस रात ज़िंदा नहीं बचता।”
इतना कह रवि ने अपनी आँखें नीचे झुकाई और पैसे आगे बढ़ा दिए। दुकान के मालिक चौधरी साहब हल्का सा मुस्कुराए और फिर बड़े शांत स्वर में बोले, “रुको बेटा… ये पैसे मेरे नहीं हैं।” जवाब सुन रवि चौंकते हुए बोला, “आपके नहीं हैं? क्या मतलब? चौधरी साहब गहरी सांस लेते हुए बोले, “जिस दिन तुझे तेरे घर से निकाला गया था, उसी रात कोई मेरे पास आया था। उसने हाथ जोड़कर कहा था, “मेरे बेटा थोड़ा परेशानी के दौर से गुजर रहा है। उसे कमरे की जरूरत है, कृपया आप उसे कमरा दे दें… उसका जो भी भाड़ा होगा वो मैं आपको दूँगा। जानते हो कौन थे वो?”
इतना सुनते ही रवि का दिल धड़कना भूल गया। वह कुछ कहता या पूछता उसके पहले ही चौधरी जी बात आगे बढ़ाते हुए बोले,“तेरे पिताजी। वही जिनसे तू सालों से बात नहीं कर रहा; जिनके बारे में तूने कड़वे शब्द कहे। वही तुझे गिरते हुए देखकर सबसे पहले दौड़े थे। हर महीने कमरे का भाड़ा भी मैं वहीं से लाता था और हर बार तुम्हारे पिताजी मुझसे कहते थे, “उसे इस विषय में कुछ बताना मत और उसे गिरने मत देना; उसका मनोबल बनाए रखना। और यह जो पैसे मैंने तुझे शुरुआत में दिए थे… वो भी उन्हीं के थे।”
रवि के पैरों के नीचे से जमीन खिसक चुकी थी, दिल में भरा गुस्सा पानी की तरह पिघल चुका था और उसके दिल में पछतावे का समंदर उमड़ा हुआ था। वह बड़ी मुश्किल से, ख़ुद को सँभालते हुए, कुर्सी को पकड़ कर उठा और चौधरी जी को प्रणाम कर भागते हुए सीधे पिता के घर पहुँचा। वहाँ उसने देखा पिताजी आँगन में दरी पर बैठे कर पुराने रेडियो में भजन सुन रहे हैं। रवि बिना कुछ कहे, कुछ क्षणों तक यूँ ही एकटक देखता रहा।
वह कुछ कह पाता उसके पहले ही पिता ने बिना मुँह ऊपर किए उससे पूछा, “क्या चाहिए?” रवि बड़ी मुश्किल से काँपती आवाज़ में बोला, “पापा, आपके पैसे लौटाने आया हूँ।” पिता ने मुँह ऊपर उठाकर, हँसते हुए उसे देखा और कहा, “बाप को पैसे देगा तू?… इतनी औकात है तेरी?” इतना सुनते ही रवि फूट पड़ा, “पापा, ये आपके ही पैसे हैं। मैं… मैं बस लौटाने आया हूँ।” कुछ पल सन्नाटा रहा। फिर पिता धीरे से बोले, “तेरे लिए ही थे बेटा… अपने पास रख ले।” इतना सुनते ही रवि घुटनों के बल बैठ गया और लगभग रोते हुए बोला, “बस… माफ़ कर दीजिए पापा।” पिता एकदम ठंडे स्वर में बोले, “जा… माफ़ किया।”
बस इन दो शब्दों को सुनते ही रवि को ऐसा लगा जैसे उसके सारे पाप धुल गए। जैसे ही वह उठने लगा, पिता ने उसे बुलाते हुए कहा, “ए… इधर आ।” जैसे ही रवि उनकी ओर बढ़ा उन्होंने अपनी बाँहों को फैला दिया। उसी क्षण रवि उनसे लिपट गया और फूट-फूटकर रो पड़ा। अब सुकून देने वाली पिता की हथेलियाँ उसकी पीठ पर थी और उनकी आँखों से निकलते आँसू रवि के कंधों पर। ऐसा लग रहा था मानो वे दोनों कह रहे हों कि, “अब सब ठीक है!” कुछ क्षणों पश्चात, गिरते हुए आँसुओं के साथ पिता धीमे स्वर में बोले, “कलेजे पर पत्थर रखकर तुझे निकाला था… ताकि तू खुद को पहचान सके। अब तू खड़ा हो गया… यही मेरी जीत है।”
दोस्तों, भावनाओं से भरी यह कहानी हमें जीवन की बड़ी सीख सिखाती है, पिता कभी नाराज़ नहीं होते। वे बस चाहते हैं कि उनके बच्चे वो बन जाए, जिस पर एक दिन वो गर्व कर सकें और यह बात हर व्यक्ति के दिल को बदल देने के लिए काफी है।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर




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