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  • Writer's pictureNirmal Bhatnagar

बच्चों को ज़िम्मेदार बनाना हो तो करें यह…

May 21, 2022

फिर भी ज़िंदगी हसीन है...


कुछ दिन पूर्व मेरी मुलाक़ात अपने एक परिचित से हुई। शुरुआती बातचीत के बाद उन्होंने मुझसे सकुचाते हुए कहा, ‘मैं अपने बच्चे की परवरिश के संदर्भ में आपसे सुझाव चाहता हूँ।’ मैंने उन्हें बिना संकोच खुलकर बात करने के लिए कहा, तो वे बोले, ‘सर, क्या बताऊँ आजकल के बच्चे किसी चीज़ का मूल्य ही नहीं समझते हैं। हाल ही में गर्मियों की छुट्टी के कारण मेरी बहन, भांजे-भांजी के साथ घर आई हुई थी। शुरुआत के एक दो दिन तो सब ठीक रहा लेकिन उसके बाद मेरे बेटे का व्यवहार एकदम बदल गया। वह अपना कमरा, खिलौने व अन्य संसाधन अपने भाई-बहनों के साथ साझा करने के लिए राज़ी नहीं था। एक दिन तो अति हो गई, हमने सपरिवार कहीं घूमने जाने का प्लान बनाया। तय समय पर सब लोग तैयार हो गए। बच्चों को मिलाकर कुल 7 लोग थे। कार में बैठते समय मेरा बेटा आगे की सीट पर बैठकर अड़ गया कि ना तो मैं अपनी सीट किसी से साझा करूँगा और ना ही पीछे बैठूँगा। जब समझाने का प्रयास किया तो चिढ़ते हुए बोला, ‘अगर कार में घूमने का शौक़ है तो अपनी कार साथ लेकर आना था और अगर अफ़ोर्ड नहीं कर सकते हैं तो गाड़ी में घूमने की इच्छा क्यूँ रखते हैं? इतना ही नहीं उसने कई बार बहन और बच्चों से विभिन्न चीजों की तुलना करते हुए ग़लत बातें कहीं।’


वैसे आजकल कई बच्चों में इसी तरह का व्यवहार देखा जा रहा है। बल्कि बच्चे ही क्यूँ, बड़े लोग भी दूसरों की समस्याओं, परेशानियों को लेकर बिना गहराई से सोचे, कुछ भी बोल देते हैं। मेरी नज़र में इसकी मुख्य वजह जीवन, उपलब्ध संसाधन और चीजों के मूल्य या उसकी क़ीमत का सही अंदाज़ा ना होना है। हमने बेहतर स्थिति को अपना अधिकार ही मान लिया है। मैंने उन परिचित को एक कहानी सुनाने का निर्णय लिया जो इस प्रकार थी-

बात कई वर्ष पुरानी है, एक राज्य के राजा को अपने कुत्ते से बेहिसाब प्यार था। वे चौबीसों घंटे अपने कुत्ते की देखभाल में लगे रहते थे। हालात इतने बिगड़ गए थे कि उनकी प्रजा ने यहाँ तक कहना शुरू कर दिया था कि, ‘अगर ईश्वर हमें इंसान की जगह बादशाह का कुत्ता बनाता तो हमारा जीवन इससे बेहतर रहता।’ मंत्रियों और राजा के शुभचिंतकों ने राजा को इस विषय में कई बार समझाने का प्रयास करा लेकिन राजा ने सभी की बातों को पूरी तरह नज़रंदाज़ कर दिया।


एक बार राजा को पड़ोसी राज्य के राजा के साथ मंत्रणा के लिए जाना था। वहाँ जाने के लिए उन्हें रास्ते में पड़ने वाली एक बहुत बड़ी झील को नाव से पार करना था। राजा ने मंत्रियों की सलाह के विपरीत जाते हुए, इस बार भी अपने कुत्ते को साथ लेने का निर्णय लिया। नाव से झील पार करते समय शुरू में तो सब ठीक रहा, लेकिन नाव के झील के बीच में पहुँचते-पहुँचते राजा के कुत्ते ने उछल-कूद मचाना शुरू कर दिया। असल में कुत्ते ने पहले कभी विपरीत परिस्थितियों का सामना नहीं किया था इसलिए चारों ओर पानी के बीच नाव को हिलते-डुलते देख वह डर रहा था और बेचैनी की वजह से घबराकर उछल-कूद मचा रहा था। कुछ देर तो सब ने सब्र करा लेकिन नाविक ने नाव में सवारी, संत, सैनिक, राजा और कुत्ते की जान को ख़तरा देख, राजा को चेताते हुए कहा, ‘राजन, अगर हमने इस कुत्ते को नहीं सम्भाला तो नाव बीच में पलट सकती है और कई लोग इस गहरी झील में डूबकर मर सकते हैं।’ नाविक से चेतावनी सुन नाव में बैठे सभी लोग डर गए। राजा ने भी अपने लाड़ के कुत्ते को सम्भालने का प्रयास करा, लेकिन असफल रहे। सभी को परेशानी में देख नाव में बैठे एक संत आगे आए और बोले, ‘महाराज, अगर आप आज्ञा दें तो मैं इस समस्या का समाधान कर सकता हूँ।’ राजा के हाँ करते ही संत ने कुत्ते को उठाकर झील में फेंक दिया। उनकी इस हरकत को देख नाव में बैठे सभी लोग सकते में आ गए, लेकिन संत पर इसका तनिक भी प्रभाव नहीं पड़ा।

दूसरी ओर झील में गिरा कुत्ता अपनी जान बचाने के लिए तैरने लगा, लेकिन कुछ ही देर में तैरते-तैरते थककर डूबने लगा। कुत्ते को डूबता देख, संत ने नाविक की सहायता से उसे झील से बाहर निकाला और नाव पर छोड़ दिया। कुत्ता अब एकदम शांत था, वह एक कोने में जाकर चुपचाप बैठ गया। कुत्ते को शांत बैठा देख राजा ने संत से पूछा, ‘महात्मन, कुत्ते को वश में करने या सम्भालने का यह तरीक़ा मैं समझ नहीं पाया।’ संत मुस्कुराते हुए बोले, ‘राजन, कुत्ता विपरीत परिस्थितियों का आदि नहीं था।जब उसे झील में फेंका तब उसे एहसास हुआ कि झील पार करने में नाव की महत्ता क्या है। उसका भान होते ही अब वह शांत है।


कहानी पूर्ण होते ही मैंने उन परिचित से कहा, ‘आजकल, अपने बच्चों को तकलीफ़ों से बचाने के लिए हम हर चीज़ ज़रूरत पड़ने से पहले ही उन्हें लाकर देते हैं। इसलिए उन्हें कभी उनकी अहमियत, उसे लाने के पीछे की मेहनत का अंदाज़ा ही नहीं लग पाता है।’ जी हाँ दोस्तों, अगर हमें बच्चों को उदार रवैया रखना सिखाना है तो हमें उन्हें जीवन, संसाधन और हर चीज़ के मूल्य का भान कराना होगा।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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