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बनना हो शक्तिशाली तो अपनाओ यह सूत्र…

  • Writer: Nirmal Bhatnagar
    Nirmal Bhatnagar
  • 2 hours ago
  • 3 min read

Dec 8, 2025

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

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दोस्तों, बदलाव भरे इस युग में आज अक्सर लोग सफलता को ‘पॉवर’ याने शक्ति से जोड़ कर देखते हैं। याने आप जितने ज्यादा पावरफुल हैं, उतने ही सफल हैं। दूसरे शब्दों में कहूँ तो आप कितने पावरफुल हैं यह इससे तय होता है कि आप कितने बाहुबली या ताकतवर हैं, आप किस पद पर कार्यरत हैं और आप कितने पैसेवाले हैं। जबकि इतिहास ने बार-बार सिद्ध किया है कि असली शक्ति शरीर में नहीं बल्कि हमारे मन में, चरित्र में और दूसरों के लिए कुछ करने की चाह में होती है। इसी बात याने शक्ति के वास्तविक सार को समझाते हुए महात्मा गांधी ने कहा था, “खुद को खोजने का सबसे अच्छा तरीका है, खुद को दूसरों की सेवा में खो देना।”


इस आधार पर कहा जाए तो मनुष्य की शक्ति की असली परीक्षा बाहरी दुनिया में नहीं, अपने भीतर होती है। याने शक्तिशाली होने का अर्थ किसी को झुकाना नहीं, बल्कि ऊपर उठाना है। इसी तरह हर बात का जवाब देना शक्तिशाली होने की निशानी नहीं है बल्कि जब ज़रूरत हो तभी बोलना, और जब जरूरी हो, तब मौन रहना आपको शक्तिशाली बनाता है। कुल मिलाकर कहूँ तो पूरी दुनिया को अपने अनुसार चलाना या बदलने के भाव से काम करना आपको शक्तिशाली नहीं बनाता है, बल्कि दुनिया के ख़िलाफ़ होने के बाद भी सही के पक्ष में खड़े रहना, शक्तिशाली होने की निशानी है और इन सभी बातों से भी ज़्यादा अपने अंतःकरण के प्रति सच्चे रहना शक्तिशाली होने के लिए सबसे आवश्यक है क्योंकि इस पृथ्वी पर हमारी अंतरात्मा ही एक ऐसी साथी है, जो जीवन भर हमारे साथ चलती है और वही सही मायने में सबसे निष्पक्ष न्यायाधीश है।


चलिए इसी बात को एक छोटी सी कहानी से समझने का प्रयास करते हैं। एक बार एक बड़े शहर में रात्रि के समय बिजली चली गई, जिसकी वजह से चारों और अँधेरा छा गया अफरा-तफरी का माहौल बन गया। इसी उलझन भरे माहौल, जहाँ रोड पर तेज गाड़ियां गुज़र रही थी, लोग तेज़ी से इधर-उधर जा रहे थे, के बीच एक बुज़ुर्ग महिला सड़क पार करने की कोशिश कर रही थी। लेकिन वहाँ इतनी चहल-पहल होने के बाद भी कोई रुक कर उसकी मदद नहीं कर रहा था।


उसी भीड़ में एक युवा भी खड़ा था, जिसे ऑफिस की मीटिंग में पहुँचने में काफ़ी देर हो रही थी। लेकिन उसकी अंतरात्मा ने उसे याद दिलाया, “अगर मैं इस स्थिति को नजरअंदाज करके यहाँ से यूँ ही चला गया, तो मैं कौन हूँ? मीटिंग में समय से पहुँचना ज़्यादा मायने रखता है या इंसानियत?” यह विचार आते ही वह दौड़कर बुज़ुर्ग महिला के पास पहुँचा, उसका हाथ पकड़कर सड़क पार करवाई। बुज़ुर्ग महिला ने उसे आशीर्वाद देते हुए धीरे से कहा, “भगवान तुम्हें शक्ति दें।”


आशीर्वचन सुन युवा मुस्कुराया क्योंकि उसे समझ आ गया था कि शक्ति ना तो मिलती है और ना ही दी जाती है, वह तो दया, करुणा, और मन की सत्यता से कमाई जाती है। इन्हीं सब के बीच जब वह देरी से ऑफिस पहुंचा तो उसे पता चला की आज की मीटिंग पहले ही रद्द हो गई थी। उस वक्त उसे एहसास हुआ कि “मैं तो जल्दी में था, पर ज़िंदगी ने बताया — मदद करना कभी देर नहीं करता।”


दोस्तों, उपरोक्त कहानी हमे शक्ति का असली अर्थ सिखाती है। जैसे-

1) पॉवर का मकसद दूसरों को चोट पहुँचाना नहीं, बल्कि उन्हें बचाना है।

2) अपनी आवाज़ ऊँची करना नहीं, बल्कि अपने दिल को बड़ा करना है।

3) अहंकार को पालना नहीं, बल्कि अपने विवेक (conscious) को साफ़ रखना है।

4) भीड़ का हिस्सा बनना नहीं, बल्कि सही के लिए अकेले खड़े होना है।

5) लोगों पर प्रभाव डालना नहीं, बल्कि लोगों के दिल में छाप छोड़ना है।


दोस्तों, अपने जीवन में मिले अनुभवों के निष्कर्ष के तौर पर कहूँ तो हमारी सम्पूर्ण जीवन यात्रा याने हमारी शिक्षा, हमारा करियर, हमारी उपलब्धियाँ, आदि सब एक दिन नाम बनकर रह जाएगा। लेकिन लोग इस बात को ज़रूर याद रखेंगे कि हमने उन्हें कैसा अनुभव दिया या कैसा महसूस करवाया।


याद रखियेगा, उम्र के साथ शारीरिक शक्ति घट जाती है, पर दयालुता, ईमानदारी और अंतरात्मा की शक्ति, अमर होती है। इसलिये ही मैंने पूर्व में कहा था आपका अंतःकरण आपका सबसे विश्वसनीय साथी है, उसे कभी धोखा मत दीजिए।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

 
 
 

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