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बेहतरीन जीवन के लिए संसाधन नहीं, प्रेम और समझ जरूरी है!!!

  • Writer: Nirmal Bhatnagar
    Nirmal Bhatnagar
  • Jul 11
  • 3 min read

Jul 11, 2025

फिर भी ज़िंदगी हसीन है...

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दोस्तों, इस दुनिया में हर इंसान जीवन को पूर्णता के साथ जीना चाहता है। इसलिए वो हर वस्तु, व्यक्ति और स्थान में परिपूर्णता चाहता है। अर्थात् वह हमेशा परिपूर्ण लोग, परिपूर्ण रिश्ते, परिपूर्ण खाना, परिपूर्ण जीवनशैली आदि पाने की कोशिश करता है। लेकिन हकीकत में इस दुनिया में कोई भी चीज “परिपूर्ण” होती ही नहीं है। अर्थात् इस दुनिया में न कोई इंसान परिपूर्ण होता है, न कोई चीज और न ही परिस्थितियाँ। इस दुनिया में हर चीज थोड़ी अधूरी है, और यही अधूरापन असलियत में जीवन को सुंदर बनाता है।


आइए इसी बात को हम देश के पूर्व राष्ट्रपति डॉ ए पी जे अब्दुल कलाम के बचपन में घटी एक घटना से समझने का प्रयास करते हैं। एक बार डॉ कलाम की माँ ने पूरे दिन थका देने वाले कार्य पूर्ण करने के बाद रात का खाना बनाकर परिवार को परोसा। डॉ कलाम ने पिता के साथ रात्रि भोजन शुरू ही किया था कि उनका ध्यान पिता की थाली पर राखी जली हुई रोटी पर गया, जिसे उनके पिता चुपचाप खा रहे थे। खाना खाते-खाते ही पिता ने कलाम से पूछा, “स्कूल में दिन कैसा रहा?” "अच्छा ", डॉ कलाम ने कहा और चुपचाप भोजन करने लगे। 


कुछ क्षणों बाद माँ का ध्यान पिता की थाली में रखी जली हुई रोटी पर गया तो उन्होंने आश्चर्य के साथ माफ़ी माँगते हुए अपने पति से कहा, “आपने मुझे जली हुई रोटी के विषय में कुछ बताया क्यों नहीं।” डॉ कलाम के पिता मुस्कुराते हुए बोले, “प्रिय, मुझे ज्यादा सिकी हुई रोटियाँ खाना पसंद है।” माँ के जाते ही डॉ कलाम ने अपने पिता से पूछा, “पिताजी, क्या आपको वाक़ई जली हुई रोटियाँ पसंद हैं?” पिता ने मुस्कुराते हुए कहा, “बेटा, तुम्हारी मां कल बहुत थकी हुई थी और उस थकान के बाद भी उन्होंने हमारे लिए रोटियाँ बनाई, जो गलती से जल गईं। उस समय माँ को डांटने या टोकने की नहीं, बल्कि समझने की ज़रूरत थी क्योंकि जली रोटी से किसी का नुकसान नहीं होता, लेकिन कठोर शब्द किसी का दिल ज़रूर तोड़ सकते हैं।” यह सीख डॉ कलाम के मन ने हमेशा के लिए बैठ गई। वे उस दिन जान चुके थे कि ज़िंदगी में रिश्ते सबसे ऊपर होते हैं और रिश्तों को बनाए रखने के लिए परिपूर्णता नहीं, बल्कि प्रेम, धैर्य और स्वीकार्यता चाहिए।


दोस्तों, हम सभी से कभी न कभी गलती हो जाती है। घर में, ऑफिस में, दोस्तों के साथ, जिस पर सामान्यतः हम ग़ुस्सा कर अपना विरोध जताते हैं। उस वक्त हम यह भूल जाते हैं कि गलतियों पर गुस्सा करने से रिश्ते कमजोर होते हैं। अगर हम सामने वाले की स्थिति-परिस्थिति को समझते हुए, उसे क्षमा कर दें, तो निश्चित तौर पर हम एक सुंदर, मधुर और गहरा रिश्ता बना सकते हैं।


दोस्तों, जिंदगी की परिपूर्णता 'सब कुछ सही हो', में नहीं, बल्कि इस बात में है कि जब कुछ गलत हो, तब हम कैसा व्यवहार करते हैं। दूसरी बात जो यह घटना सिखाती है, बच्चों पर हमारी हर छोटी-बड़ी बात का प्रभाव पड़ता है। डॉ. कलाम को उस रात की घटना ताउम्र याद रही, क्योंकि उनके पिता ने अपने व्यवहार से यह सिखाया कि जीवन में संवेदनशीलता, सहानुभूति और प्रेम कितना ज़रूरी है।


दोस्तों, रिश्तों की मिठास छोटी-छोटी बातों से बढ़ती है। हर इंसान में कमियाँ होती हैं, लेकिन जब हम उन्हें अपनाकर, साथ निभाते हैं, तब वही रिश्ता, जीवन का सबसे सुंदर रिश्ता और हिस्सा बन जाता है। आइए, हम भी अपने जीवन में कठोरता की जगह कोमलता, गुस्से की जगह समझ और परिपूर्णता की जगह अपनापन लाएं क्योंकि जिंदगी जली रोटी जैसी ही है, थोड़ी अधूरी, लेकिन अगर प्रेम से परोसी जाए, तो सबसे स्वादिष्ट।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

 
 
 

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