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मन और माया का जाल…

  • Writer: Nirmal Bhatnagar
    Nirmal Bhatnagar
  • 12 minutes ago
  • 3 min read

July 3, 2025

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, हम सभी के जीवन में मन और माया के बीच का संघर्ष लगातार चलता रहता। कभी हम कुछ पाने की इच्छा में बेचैन हो जाते हैं तो कभी भौतिक सुख का आकर्षण हमें अपनी चमक-धमक में उलझा लेता है। दोस्तों, क्या आप इन सब उलझनों के स्त्रोत के विषय में जानते हैं? या आपको मन में चलने वाली इस खींचातानी का कारण मालूम है? मेरी नजर में तो इसकी मुख्य वजह हमारा मन ही है। चलिए अपने मत से आपको अवगत कराने के लिए मैं पहले मन और माया को अलग-अलग समझा देता हूँ।


दोस्तों, मन वह है जो हर क्षण कुछ ना कुछ चाहता रहता है। जैसे अच्छा खाना, सुंदर वस्त्र, प्रशंसा, सुविधा और भौतिक सुख। दूसरे शब्दों में कहूँ तो मन लगातार इच्छाओं का उत्पादन करता है। एक इच्छा पूरी हुई नहीं कि दूसरी जन्म ले लेती है। यही इच्छाएँ मन को चंचल बनाती हैं और हम कभी शांति नहीं पा पाते।


इसी तरह दोस्तों, माया वो जाल है जो हमें हर चीज़ में सुख दिखाती है। जैसे, पैसा, प्रतिष्ठा, भोग, दिखावा, आदि। माया द्वारा दिखाई गई हर चीज अस्थाई होती है, फिर भी हम उन्हें सत्य मान बैठते है क्योंकि माया उन्हें सुंदर बना कर पेश करती है। दूसरे शब्दों में कहा जाये तो माया वह भ्रम है जो हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि बाहर की चीजों से ही हमें खुशी मिलेगी।


दोस्तों, इन दोनों याने मन और माया का खेल इतना निराला होता है कि अगर आप इसमें उलझ गए तो आप कभी आत्मज्ञान की ओर कदम नहीं बढ़ा पाओगे। चलिए इसी बात को मैं आपको एक उदाहरण से समझाने का प्रयास करता हूँ। जिस प्रकार एक हिरण जंगल में दूर से कस्तूरी की खुशबू पाकर भागता रहता है, लेकिन यह नहीं जानता कि खुशबू तो उसके ही शरीर से आ रही है, ठीक वैसे ही, मन माया के पीछे भागता है, जबकि सच्चा सुख तो हमारे ही भीतर छिपा होता है।


वहीं दूसरी ओर माया सुंदरता, स्वाद, नाम, पैसा, आदि का आकर्षण रचती है और हमारा मन उन्हीं आकर्षणों में फँस जाता है। माया की कोशिश होती है कि वह आपको भ्रम में रखे, और मन का स्वभाव है कि वह बाहर की ओर दौड़े। उसे याने मन को हर चीज़ में स्थायित्व दिखता है, जबकि हकीकत में सब कुछ माया का रचा हुआ अस्थाई जाल है। जिसमें ज्यादातर लोग उलझकर रह जाते हैं।


ऐसे में मुख्य सवाल आता है मन और माया के इस जाल से कैसे बचा जाये? मेरी नजर में इसका समाधान है, जागरूकता की यात्रा पर चलते हुए आत्मज्ञान प्राप्त करना। जो ज्ञान हमें इस बात का एहसास करवाता है कि हम कोई साधारण शरीर नहीं है बल्कि आत्मा है और जब हम यह समझने लगते हैं तो हम यह भी जान लेते हैं कि मन और माया ने हमारे समक्ष सारा माया जाल या भ्रम जाल बनाया हुआ है। जब हम यह जान जाते हैं कि दुनिया एक नाटक है, तब हम अभिनेता की तरह जीना शुरू कर देते हैं, याने हम अपने रोल तो निभाते है, पर उसमें फँसते नहीं हैं। यही तो राम, कृष्ण, बुद्ध जैसे महापुरुषों ने किया था। उन सबने माया को देखा, पहचाना और उससे ऊपर उठ गए। उन्होंने मन को साधा, और आत्मज्ञान की ओर अग्रसर हुए। वे संसार में रहते हुए भी संसार से मुक्त थे।


दोस्तों, याद रखियेगा जीवन एक अवसर है, ख़ुद को जानने का, अपने भीतर छिपे आनंद को खोजने का, आत्मा को समझने का और माया से ऊपर उठकर सत्य को जानने का। मन को साधो, माया को पहचानो और फिर देखो जीवन कितना सुंदर बन जाता है।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

 
 
 

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