हमारे शब्द हमारे व्यक्तित्व का आईना होते हैं…
- Nirmal Bhatnagar
- 1 day ago
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July 2, 2025
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, कहते हैं ना “शब्दों से दिल जीते जाते हैं और शब्दों से ही लोग दिल से उतर जाते हैं!” सुनने में साधारण सी लगने वाली यह बात सही मायने में बहुत गहरी है। आईए जीवन के इस महत्वपूर्ण सूत्र को एक कहानी के माध्यम से समझने का प्रयास करते हैं।
बात कई साल पुरानी है, एक बुजुर्ग राहगीर दिनभर की यात्रा के पश्चात, एक गाँव से गुज़रते वक़्त, रात्रि विश्राम के लिए एक सुरक्षित और साफ़ स्थान खोजना शुरू करता है। तभी अचानक उसकी नजर एक महिला पर पड़ी, वे उसके पास गए और निवेदन करते हुए बोले, “माता, दिनभर की यात्रा के कारण काफ़ी थक गया हूँ। अगर आप मुझे रात्रि विश्राम के लिए कोई सुरक्षित और साफ-सुथरा स्थान बता दें तो बड़ी कृपा होगी।”
बुजुर्ग व्यक्ति का नम्र निवेदन सुन महिला का हृदय पसीज गया और उसने बुजुर्ग व्यक्ति को सोने के लिए अपने बाड़े में स्थान दे दिया। बुजुर्ग व्यक्ति यह जान बड़ा ख़ुश हुआ और उसने वह रात वहाँ बड़े आराम से गुज़ारी। अगले दिन सुबह वहाँ से जाते समय बुजुर्ग व्यक्ति के मन में ख़याल आया कि अगर मैं रास्ते के लिए खिचड़ी बना लूँ तो अच्छा रहेगा। विचार आते ही उस बुजुर्ग ने महिला से जरूरत का सामान माँगा और खिचड़ी बनाने में जुट गया। पहले उसने लकड़ी जुटाई, फिर आग लगाई और फिर उस पर खिचड़ी पकने को रखी।
यहाँ तक तो सब कुछ सामान्य चल रहा था। लेकिन तभी उस महिला से इस बुजुर्ग ने कुछ ऐसा कहा जो उसे ही भारी पड़ गया। असल में उसने मजाकिया लहजे में महिला से कहा, “तुमने अपनी मोटी भैंस को ग़लत जगह बाँध रखा है। अगर यह मोटी भैंस मर गई तो फिर बाड़े के इस संकरे दरवाज़े से बाहर कैसे निकलोगी?” महिला को बुजुर्ग की बात चुभ गई, पर वो उनकी उम्र देख कर शांत रही। कुछ देर बाद बूढ़े ने फिर एक टिप्पणी करते हुए कहा, “तुमने इतनी सुंदर चूड़ी क्यों पहनी है? अगर तुम विधवा हो गई तो तुम्हें सारी चूड़ियों को तोड़ना पड़ेगा।” बुजुर्ग की इस बात को सुनते ही महिला का सब्र टूट गया, उसने अधपकी खिचड़ी को बुजुर्ग के गमछे में उल्टा, आग बुझाई और बुजुर्ग को धक्का देकर बाहर कर दिया।
महिला के घर से अपमानित हो बुजुर्ग अपनी राह पर आगे बढ़ा। तभी उसके गमछे में से खिचड़ी टपकते देख एक युवक ने हँसते हुए उससे इसकी वजह पूछी, तो वह शर्मिंदा होते हुए बोला, “कुछ नहीं यह मेरी जीभ का रस है। जिसने पहले मुझे तिरस्कार दिलाया और अब सबके सामने मेरी हंसी उड़ा रहा है।”
दोस्तों इस कहानी से हमें कई सीख मिलती हैं-
1) शब्दों की शक्ति को समझें बोलना आसान है, लेकिन उसका प्रभाव गहरा होता है। एक असंवेदनशील शब्द किसी के सम्मान को ठेस पहुंचा सकता है।
2) पहले सोचें, फिर बोलें जो बात हम बोलने जा रहे हैं, क्या वह ज़रूरी है? क्या वह किसी को आहत करेगी? यदि हां, तो वह बात कहने से बेहतर है चुप रहना।
3) मीठे बोल के जादू को जानें कठोर सच से कहीं बेहतर होता है, सच्चाई को विनम्रता और मधुरता से कह देना। इससे बात भी बनती है और रिश्ता भी।
4) सम्मान और संवेदना बनाए रखें उम्र या अनुभव के बावजूद, यदि हमारी वाणी में अहंकार, कटाक्ष या तिरस्कार है, तो वह हमें सम्मान नहीं दिलाती, बल्कि अपमान की ओर ले जाती है।
अंत में दोस्तों इतना ही कहना चाहूँगा, "जीभ का रस" केवल स्वाद नहीं, व्यक्तित्व का आईना होता है। अर्थात् हमारे शब्द हमारे संस्कार, विचार और भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। इसलिए हमें चाहिए कि हम जब भी बोलें, सोच-समझकर बोलें क्योंकि बोले गए शब्द लौटाए नहीं जा सकते, उनका असर जीवनभर रहता है। इसलिए दोस्तों "बोलने से पहले दस बार सोचो, क्योंकि शब्द बाण बन जाएं तो दिल को घायल कर देते हैं।"
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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