सोचिए, कहीं शिकायत करना हमारी आदत तो नहीं…
- Nirmal Bhatnagar

- 22 hours ago
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Nov 6, 2025
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, मेरा मानना है कि ईश्वर की कृपा से मिले इस जीवन ने हमें सब कुछ दिया है, बस यह देखने की दृष्टि नहीं दी कि सब कुछ दिया है। शायद इसीलिए हम हर क्षण ईश्वर से कुछ ना कुछ माँगते ही रहते हैं। इसी बात को समझाते हुए गुरु नानकदेव जी ने कहा है, “दाता देता ही चला जाता है, और लोग मांगते ही चले जाते हैं।” सोच कर देखियेगा दोस्तों, कितनी गहरी बात है यह। हमारे इस जीवन में दसों दिशाओं से ईश्वर की कृपा की बारिश हो रही है, और हम हैं कि बस चिल्ला रहे हैं, “मुझे नहीं मिला, मुझे और दो…”
हकीकत में दोस्तों, शिकायत करना हमारी आदत बन गई है, हमें असंतुष्टि के भाव से; दुख से मोह हो गया है। इसीलिए हम जो हमारे पास है, उसे देखने की नज़र खो चुके हैं। हम सब भूल गए हैं कि कृतज्ञता यानी धन्यवाद देना ही ईश्वर की सबसे ऊँची प्रार्थना है। याद रखियेगा, जब शिकायत मिटती है और आभार का भाव जागता है, तभी ईश्वर के दरबार के द्वार खुलते हैं। इसी बात को हमें याद दिलाने के लिए गुरुनानक देव जी ने अपने सत्संग में पूछा था, “उसके याने ईश्वर के दरबार में क्या रखें या चढ़ायें, जिससे उसकी याने ईश्वर की कृपा दृष्टि मिले?” क्योंकि अगर हम सोना-चाँदी, फल-फूल या कुछ और भी चढ़ा दें या उसके लिए मंदिर भी बनवा दें, तो वह सब भी तो उसी का दिया हुआ है!
जी हाँ सोच कर देखियेगा, हम जो भी ईश्वर को अर्पित करते हैं, वह सब उसी का तो दिया हुआ तो है! फूल भी उसी के हैं; धन भी उसी का है; मिट्टी भी उसी की है और मंदिर भी उसी के आशीर्वाद से बने हैं। तो फिर हम किस चीज का दिखावा कर रहे हैं? क्या देकर अकड़ रहे हैं या इतरा रहे हैं? क्यों कहते फिर रहे हैं कि “मैंने दान दिया, मैंने मंदिर बनवाया।”
असल में दोस्तों, हमने कुछ नया दिया ही नहीं है। याद रखियेगा, सच्ची भेंट वह महंगी वस्तु नहीं है, जिसे हम थाल में सजाकर, ईश्वर के चरणों में चढ़ाते है। मेरी नजर में तो सच्ची भेंट अपने अहंकार को ईश्वर के चरणों में चढ़ाकर, इस भाव में जीना है कि “मेरा तो कुछ भी नहीं है, मेरी तो साँस भी उसी ईश्वर की दी हुई है।” तब हमारी हर सांस, हर मुस्कान, हर कर्म — पूजा बन जाता है।
आप स्वयं सोच कर देखिए, पेड़, पौधे, नदियाँ, चाँद, सूरज, आदि सब उसकी आराधना में लगे हैं। वो कभी शिकायत नहीं करते। वो कभी नहीं थकते। बस देते हैं… निरंतर देते हैं। और हम हमेशा शिकायत करते रहते हैं कि जीवन ने हमें कम दिया है। जबकि सच्चाई इसके ठीक विपरीत हैं कि इस जीवन ने हमें सब कुछ दिया है, बस उसे देखने की दृष्टि नहीं दी।
इसलिए, दोस्तों आज एक निर्णय लीजिए और हर दिन सुबह उठ कर सबसे पहले ईश्वर को धन्यवाद कहिए; उस हवा को धन्यवाद कहिए, जो आपकी साँसों में है; उस रौशनी को धन्यवाद कीजिए, जो आपके चेहरे पर पड़ती है; उन लोगों को धन्यवाद कहिए, जो आपकी ज़िंदगी में प्रेम लेकर आते हैं। दोस्तों, जब आप धन्यवाद देना सीख लेते हैं, तो जीवन बदल जाता है। तब आपको कुछ और माँगने की ज़रूरत ही नहीं रहती, क्योंकि तब आप जान जाते हैं कि “सब कुछ पहले से मिला हुआ है, बस अहसास की देर है।”
दोस्तों, यही सच्ची भक्ति और असली प्रार्थना है और हाँ यह जीवन का सबसे बड़ा वरदान भी है।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर




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