Dec 02, 2023
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
दोस्तों, मुझे ऐसा लगता है कि हम अपने जीवन के अच्छे दिनों का पूरा लुत्फ़ उठा पाएँ सिर्फ़ इसलिए जीवन में बुरे या उतार वाले, नहीं-नहीं सीखने वाले दिन आते हैं। लेकिन अक्सर हम हमारे जीवन को निखारने वाले इन दिनों को अपनी फूटी या बुरी क़िस्मत मान, और ज़्यादा चुनौती भरा बना लेते हैं। ऐसा ही कुछ एक बहुत ही अमीर व्यापारी के साथ हुआ और उसके एक ग़लत निर्णय के कारण धीमे-धीमे उसका पूरा व्यापार चौपट हो गया।
इसका नतीजा यह हुआ कि नगर सेठ माने जाने वाले इस व्यापारी से लोग मिलने के लिये कतराने लगे। पूर्व नगर सेठ कहलाने वाले व्यक्ति के लिए यह स्थिति नागवार थी। अब वह हमेशा उदास रहता था और जाने अनजाने में कभी ख़ुद को, तो कभी क़िस्मत को, तो कभी ईश्वर को कोसा करता था। धीमे-धीमे बीतते समय के साथ उसका मकान भी बिक गया और उसकी सारी संपत्ति भी ख़त्म हो गई। पारिस्थितिक कारणों और स्थिति के कारण अब वह काफ़ी उदास और दुखी रहा करता था। उसे अब जीवन में अंधकार-ही-अंधकार नज़र आया करता था।
उपरोक्त स्थितियों और नकारात्मक भावों के चक्रव्यूह में उलझकर एक दिन उस व्यवसायी ने अपने जीवन को ख़त्म करने का निर्णय लिया और आधी रात को बरसते पानी में घर से निकल गया। काफ़ी देर तक बिना वजह नदी किनारे भटकते-भटकते अचानक ही वह नदी में छलांग लगाने के उद्देश्य से किनारे पर पड़ी एक चट्टान पर चढ़ गया और अपनी आँखों को बंद कर लिया। जैसे ही वह नदी में छलांग लगाने के लिए थोड़ा सा झुका पीछे से दो मज़बूत हाथों ने उसे जकड़ कर पकड़ लिया।
उस युवा व्यवसायी ने चौंकते हुए अपनी दोनों आँखें खोली तो पाया कि एक बहुत ही बुजुर्ग महात्मा ने उसे कस कर पकड़ा हुआ है। महात्मा ने पहले तो उस युवा व्यवसायी को बातों में उलझाया, फिर एक गिलास पानी पिलाकर उसे थोड़ा शांत किया। फिर उससे विस्तार में अपनी निराशा का कारण बताने के लिए कहा। उस युवा व्यवसायी ने एक ही साँस में अपनी सारी व्यथा कह सुनाई और फिर अंत में बोला, ‘महात्मा जी, और क्या बताऊँ कुल मिलाकर तो मेरी क़िस्मत ही ख़राब चल रही है। पहले मेरे पास सब कुछ था लेकिन आज में दाने-दाने को मोहताज हो गया हूँ। ऐसा लगता है मानो मेरे भाग्य का सूर्य डूब गया है। ऐसी स्थितियों में जीने से बेहतर तो मर जाना है। यही सोच कर मैं अपनी जान देने के लिए यहाँ आया था।’
उस युवा की बात सुनते ही महात्मा जी ज़ोर-ज़ोर से हंसने लगे, जिसे देख वह व्यापारी उलझन में पड़ गया और बोला, ‘आप मेरी परेशानी सुन हंस क्यों रहे हैं?’ व्यवसायी की बात सुन महात्मा एकदम गंभीर हो गए और बोले, ‘वत्स, तो तुम यह स्वीकारते हो कि पहले तुम संपन्न और सुखी थे?’ व्यवसायी ने तुरंत हाँ में गर्दन हिलाई और बोला, ‘जी हाँ महात्मा जी, पहले मेरा भाग्य का सूर्य पूरे तेज के साथ चमक रहा था। लेकिन अब मेरे जीवन में अंधकार के सिवा और कुछ भी शेष नहीं है।’
इतना सुनते ही महात्मा जी एक बार फिर हंसे और बोले, ‘सुबह का उगता सूरज, शाम को ढाल जाता है क्योंकि उसे अगले दिन फिर उगना होता है। अर्थात् दिन के बाद रात और रात के बाद दिन आता है। ध्यान से देखोगे तो पाओगे कि ना तो दिन हमेशा के लिए टिक पाता है और ना ही रात्रि। याद रखना परिवर्तन ही संसार का एकमात्र शाश्वत सत्य है।
बात तो दोस्तों उन महात्मा की एकदम सटीक थी, जब जीवन में अच्छे दिन नहीं टिके थे, तो बुरे दिन कैसे टिकेंगे। वह भी निश्चित तौर पर जल्द ही चले जाएँगे और दोस्तों, जिस दिन यह बात हम लोग पूरे अंतर्मन से स्वीकार लेते हैं यानी इस सत्य को पहचान लेते हैं वे सुख-दुख के ऊपर उठ कर हमेशा समभाव में जीना सीख लेते हैं। उसका जीवन अडिग चट्टान की भाँति हो जाता है जो गर्मी, सर्दी और बरसात हर मौसम में एक समान बनी रहती है। जी हाँ दोस्तों, जो मनुष्य समभाव में जीना सीख लेता है वह यह समझ जाता है कि सुख और दुख आते-जाते रहेंगे। जो हमेशा रहेगा, वह है सिर्फ़ और सिर्फ़ ख़ुद का अस्तित्व और इस अस्तित्व में ठहर कर जीना ही समत्व है। एक बार विचार कर देखियेगा…
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
nirmalbhatnagar@dreamsachievers.com
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