आत्म-विकास के दो अदृश्य शत्रु…
- Nirmal Bhatnagar
- 1 day ago
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May 19, 2025
फिर भी ज़िंदगी हसीन है...

दोस्तों, हर इंसान जीवन में सफलता पाने के लिए बचपन से ही कड़ी मेहनत और प्रयास करता है। हम सर्वप्रथम अच्छी शिक्षा ग्रहण करते हैं, फिर रोजगार के लिए प्रयास करते हैं, फिर समाज और रिश्तों आदि को बेहतर बनाने के लिए रोज़ कुछ ना कुछ प्रयास करते हैं। लेकिन इसके बाद भी आप ज्यादातर लोगों को अशांति, अकेलेपन जैसे विनाशकारी भावों के साथ जीवन जीता हुआ देख सकते हैं। इतना ही नहीं कई बार बिना किसी बाहरी वजह के हम स्वयं भी इनके शिकार हो जाते हैं। जानते हैं क्यों? क्योंकि हम अपने अंदर ही छुपे घमंड और क्रोध नामक दो सबसे ख़तरनाक शत्रुओं को पहचान नहीं पाते हैं। जी हाँ, घमंड और क्रोध रूपी ये दो शत्रु ही हमारे जीवन को बर्बाद करने के लिए काफ़ी हैं। चलिए इसे थोड़ा विस्तार से समझते हैं-
1) घमंड - विनाश की पहली सीढ़ी
कई बार जीवन में मिली सफलताओं के कारण हम अपने ज्ञान, पद, धन या योग्यता पर घमंड करने लगते हैं और उन्हें अपने मुक़ाबले तुच्छ मानने लगते हैं। यही घमंड हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि हम सब कुछ जानते हैं और सर्वोत्तम हैं; हमसे बेहतर कोई हो ही नहीं सकता है। यह अहंकार हमें सही सलाहकारों और सही बातों से दूर कर देता है, और बीतते समय के साथ हम अकेले पड़ते जाते हैं। दूसरे शब्दों में कहा जाये तो यह घमंड या अहंकार हमारी सीखने की क्षमता को ख़त्म कर देता है और जब आप सीखना बंद करते हैं तो आप जीवन में आगे बढ़ने के रास्ते बंद करते हैं। यही रुकावट समय के साथ हमारे पतन का कारण बन जाती है।
2) क्रोध - शांति का सबसे बड़ा दुश्मन
क्रोध एक ऐसी आग है जो सबसे पहले उसी इंसान को जलाती है, जिसके अंदर वो पैदा हुई है क्योंकि क्रोध की अग्नि सबसे पहले इंसान के सोचने-समझने की शक्ति को क्षीण करती है। इसकी वजह से याने क्रोध की वजह से इंसान ऐसे निर्णय लेता है जिसका पछतावा उसे जीवन भर रहता है। क्रोध रिश्तों को भी ख़त्म करता है क्योंकि क्रोध याने गुस्से में बोले गए शब्द और किए गए काम दिलों को तोड़, नुकसान ही पहुँचाते हैं। इसलिए ही मैंने शुरू में कहा कि क्रोध वह जहर है, जिसे हम दूसरों को सज़ा देने के लिए पीते हैं, लेकिन यह सबसे ज्यादा नुकसान खुद को ही पहुँचाता है।
दोस्तों, घमंड और क्रोध दोनों मिलकर किसी भी इंसान की सोचने, समझने और सच्चाई को स्वीकार करने की क्षमता को खत्म कर, उसे अंदर से खोखला बना देते हैं। इसलिए मेरा बड़ा स्पष्ट तौर पर मानना है कि किसी भी इंसान के अंदर अगर यह दोनों शत्रु मौजूद हैं, तो उसे किसी बाहरी शत्रु की ज़रूरत ही नहीं होती है क्योंकि यह दोनों उस व्यक्ति को ख़ुद का ही सबसे बड़ा शत्रु बना देते हैं।
अब सबसे बड़ा सवाल आता है कि घमंड और क्रोध से निपटा कैसे जाये? तो उपाय बड़ा साधारण है दोस्तों, आपको विनम्रता और धैर्य को अपनाना होगा। इसके लिए जब मन में घमंड आए तो ख़ुद से पूछें, “क्या यह सब मैंने अकेले किया है? क्या यह कार्य हमेशा रहेगा?” इसी तरह जब क्रोध में हों तो एक गहरी साँस लें और ख़ुद से पूछें, “क्या यह गुस्सा सकारात्मक है और मेरे भविष्य को संवार रहा है?” अगर उपरोक्त प्रश्नों के जवाब नकारात्मक हैं तो बेहतर यही है कि इन दोनों को छोड़ कर विनम्रता और धैर्य को अपना लिया जाये।
अंत में निष्कर्ष के तौर पर मैं इतना ही कहूँगा कि अगर जीवन को बेहतर बनाना लक्ष्य है तो सबसे पहले आपको एक युद्ध, ख़ुद के विरुद्ध लड़ना होगा और अपने अंदर से घमंड और क्रोध को ख़त्म करना होगा। ऐसा करते ही आपके जीवन में प्रेम, शांति और सफलता स्वयं चले आएँगे। शायद इसीलिए कहा गया है, “सबसे महान योद्धा वही है, जो अपने दोषों पर विजय पा सके।”
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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