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  • Writer's pictureNirmal Bhatnagar

अद्भुत जीवन के लिए रहें आभारी…

May 25, 2022

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, सामान्यतः आजकल ‘सफलता हमारी, गलती या विफलता तुम्हारी!’ वाला नज़रिया आपको अपने आस-पास बड़े आराम से देखने को मिल जाएगा। ऐसा ही कुछ हाल मैंने अपनी जबलपुर यात्रा के दौरान लंच पर एक व्यवसायी से हुई मुलाक़ात के दौरान महसूस किया। पूरी चर्चा के दौरान वे सज्जन अपनी उपलब्धियाँ गिनाने में व्यस्त थे कि किस तरह उन्होंने अर्श से फ़र्श और वापस से फ़र्श से अर्श अर्थात् शिखर से शून्य और शून्य से वापस शिखर तक यात्रा करी।


उनकी बातचीत के दौरान में साफ़ महसूस कर रहा था कि वे बहुत से जाने-अनजाने लोगों के योगदान को नज़रंदाज़ कर रहे हैं। जैसे दुःख या असफलता के समय में परिवार का साथ, उनके साथ कार्य करने वाले लोगों, कर्मचारियों का योगदान आदि। इसी तरह जब बातचीत के दौरान उन्होंने कम से कम तीन बार यह बताया कि वे आज-तक कभी भी किसी मीटिंग में देर से नहीं पहुंचे हैं, मैं सोच रहा था कि इसके लिए उन्हें अपने ड्राइवर और परिवार के सदस्यों और सहायक कर्मियों का आभार मानना चाहिए क्यूँकि इसमें उनका भी कुछ हद तक योगदान है।


उक्त व्यवसायी से चर्चा करते समय मुझे एहसास हुआ कि हम में से ज़्यादातर लोग अक्सर सफल होने या किसी कार्य को सफलता पूर्वक पूरा कर लेने पर जाने-अनजाने में उन लोगों के योगदान को नज़रंदाज़ कर जाते हैं, जिनकी सहायता के बिना सफल होना सम्भव नहीं था। इस विषय में विचार करते वक्त मुझे एहसास हुआ कि पूरी शिक्षा और पेरेंटिंग के दौरान हम अपने बच्चों को आसपास घटने वाली घटनाओं एवं लोगों के प्रति आभारी रहना नहीं सिखाते हैं और इसी वजह से गुजरते समय के साथ कई लोगों में अहंकार आ जाता है।


दोस्तों, अगर आप अपने बच्चों को इस अवांछित अहंकार से बचाना चाहते हैं तो आपको बच्चों को पद, पैसे, कार्य, प्रतिष्ठा आदि के आधार पर बड़े-छोटे में भेद ना करना सिखाना होगा। ठीक इसी तरह हमें उन्हें जात-पात से ऊपर उठकर लोगों को इंसान और इंसानियत के आधार पर देखना और डील करना सिखाना होगा। अब आपके मन में सवाल आ रहा होगा, ‘कैसे?’ तो चलिए इसे मैं मुंबई स्थित विश्वविख्यात शिक्षण संस्थान आई॰आई॰टी॰, एस॰ओ॰एम॰ में घटी घटना से समझाने का प्रयास करता हूँ।


बात आज से कुछ वर्ष पहले की है मेरे एक मित्र आई॰आई॰टी॰, एस॰ओ॰एम॰ से executive कोर्स के अंतर्गत मैनेजमेंट डेवलपमेंट प्रोग्राम कर रहे थे। इस कोर्स के अंतर्गत चार-पाँच घंटे तक लगातार चलने वाली इन कक्षाओं में विद्यार्थियों को समस्या ना हो इसलिए कक्षा के दौरान ही पानी, चाय अथवा स्नैक्स सर्व किया जाता था।


कोर्स के अंतिम पड़ाव पर एच॰आर॰ के प्रैक्टिस टेस्ट के दौरान अंतिम प्रश्न हल करते वक्त सभी विद्यार्थी दुविधा में पड़ गए और माथे पर सल लिए एक दूसरे की शक्ल देखने लगे। असल में एच॰आर॰ के प्रश्न पत्र का अंतिम प्रश्न था, ‘कक्षा के दौरान आपको चाय, पानी और स्नैक्स सर्व करने वाले व्यक्ति का नाम लिखें।’


किसी भी छात्र को उस व्यक्ति का नाम याद नहीं था। वे सभी प्रश्न पात्र बनाने वाले प्रोफ़ेसर को कोस रहे थे। परीक्षा के बाद सभी एच॰आर॰ पढ़ाने वाले प्रोफ़ेसर के पास गए और उनसे शिकायती लहजे में बोले, ‘सर, क्या इस तरह के फ़ालतू प्रश्न भी फ़ाइनल परीक्षा में पूछे जा सकते हैं?’ प्रोफ़ेसर ने हल्की मुस्कुराहट के साथ जवाब दिया, ‘मैं कुछ कह नहीं सकता क्यूँकि प्रश्नपत्र तो दिल्ली से सेट होकर आते है।’


प्रोफ़ेसर के जवाब से सभी बच्चे दुविधा में थे कि अब क्या किया जाए? कोई समाधान ना मिलता देख सभी छात्रों ने विश्वविद्यालय में किसी भी रूप में मदद करने वाले सहायकों के पास जाकर उनका नाम पूछना और याद करना शुरू कर दिया। ख़ैर, फ़ाइनल परीक्षा में ऐसा कोई प्रश्न नहीं आया।


इस प्रश्न के पूछे जाने का कारण सभी विद्यार्थियों को कोर्स के अंतिम दिन, दीक्षान्त समारोह के दौरान प्रोफ़ेसर द्वारा दिए गए भाषण से मिला। अपने सम्बोधन में प्रोफ़ेसर ने बताया कि सभी विद्यार्थी मुझसे बार-बार एक ही बात पूछा करते थे कि मैंने टेस्ट के दौरान चाय-पानी सर्व करने वाले व्यक्ति का नाम क्यूँ पूछा था? आज कोर्स के अंतिम दिन, अंतिम पाठ के रूप में, मैं आपको इस प्रश्न का जवाब दो बिंदुओं में देना चाहता हूँ।


पहला, किसी भी व्यक्ति का नाम छी-चिच नहीं होता है। जिस तरह आपको अपना नाम पसंद है ठीक उसी तरह उस व्यक्ति को भी अपना नाम प्यारा होता है। वैसे भी कहा गया है किसी भी भाषा में आपके कानों सबसे ज़्यादा पसंद आने वाला शब्द आपका, अपना नाम होता है। इसलिए अब आप जब भी किसी को पुकारें, तब उसके नाम से पुकारें।


दूसरा, आप इस विश्वस्तरीय विश्वविद्यालय से सफलता पूर्वक इस कोर्स को पूर्ण कर पाए इसमें कई ऐसे लोगों का योगदान भी था जिन्हें आप हमेशा नज़रंदाज़ करते रहे। जैसे आपके आने के पूर्व आपकी कक्षा को साफ़ करने वाले सहायक, कक्षा के दौरान आपकी भूख-प्यास मिटाने वाले सहायक आदि। याद रखिएगा हर सफलता के पीछे कई अनदेखे-अनसुने चेहरे या लोग होते हैं, कभी भी उनके योगदान को नज़रंदाज़ ना करें।


ठीक इसी तरह दोस्तों, हमें अपने परिवार में बच्चों को सभी लोगों को एक समान नज़र से देखना सिखाना होगा और इसकी शुरुआत आप घर पर कार्य करने वाले सहायकों को आदर पूर्वक, इंसानियत के साथ डील करके सीखा सकते हैं। याद रखिएगा दोस्तों, छोटी चीजों के लिए आभारी रहना आवश्यक है क्यूंकि यही छोटी-छोटी चीज़ें हमारे जीवन को अद्भुत बनाती है।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

nirmalbhatnagar@dreamsachievers.com

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