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अपने भीतर के भगवान को जगाइए…

  • Writer: Nirmal Bhatnagar
    Nirmal Bhatnagar
  • 4 days ago
  • 3 min read

Oct 9, 2025

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

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दोस्तों, इस जीवन में हम सभी कभी ना कभी तात्कालिक असफलता के शिकार होते हैं। याने जीवन में गिरना और असफल होना सामान्य है क्योंकि कई बार परिस्थितियाँ तो कई बार ख़ुद की कमज़ोरियां तो कभी हमारे अपने विचार हमें गिराते हैं। लेकिन ऐसी तमाम असफलताओं के बाद भी हम उठते हैं और एक बार फिर अपनी पूरी क्षमता के साथ, जीवन को नई दिशा देने में लग जाते हैं। लेकिन दोस्तों, क्या आपने कभी सोचा है कि जब हम गिरते हैं, तब हमें उठाता कौन है? जरा अतीत के अनुभवों को खँगाल कर देखियेगा, आप पाएँगे कि आपको बाहर से आकर किसी और ने नहीं, बल्कि आपके भीतर की शक्ति ने उठाया है। जी हाँ हमारे भीतर ही एक शक्ति होती है, जो हमें फिर से खड़ा करती है। मेरी नजर में दोस्तों, हमारे भीतर की वही शक्ति भगवान है। जी हाँ, भगवान कोई बाहर बैठा हुआ देवता नहीं, बल्कि हमारे भीतर की वह प्रेरणा है जो हमें हारने नहीं देती। जब हम टूट जाते हैं, थक जाते हैं, या हिम्मत खो देते हैं, तब यही प्रेरणा हमें कहती है, “फिर से उठो।” यही आवाज़ ईश्वर की है, जो हमें नीचे से ऊपर की ओर खींचती है।


अब एक और महत्वपूर्ण प्रश्न आता है, ‘आख़िर हमें गिराने वाला कौन है?’ तो दोस्तों, गिराने वाला भी कोई और नहीं, बल्कि हम स्वयं हैं। हम अपने विचारों, अपने डर, अपने नकारात्मक व्यवहार से खुद को नीचे गिराते हैं। उदाहरण के लिए, जब हम कहते हैं, ‘मैं नहीं कर सकता…’ या जब हम खुद को दूसरों से कम समझते हैं, या फिर जब हम अपने भीतर की अच्छाई पर पर्दा डालते हैं — तब हम अपने भीतर के शैतान को ताकत देते हैं। अर्थात् शैतान भी कोई बाहरी शक्ति नहीं है, यह भी हमारे भीतर ही है। थोड़ा और स्पष्ट कहूँ तो शैतान हमारे आलस, अहंकार, क्रोध और ईर्ष्या का नाम है और जब यह सक्रिय होता है, तब यह हमें धीरे-धीरे नीचे खींच लेता है।


कुल मिला कर कहूँ तो शैतान के रूप में ख़ुद को गिराने वाले भी हम और भगवान के रूप में उठाने वाले भी हम। याने हमारा भगवान रूपी स्वभाव ही हमें जीवन में ऊपर उठाता है। जब हम खुद पर विश्वास करते हैं, जब हम क्षमा करना सीखते हैं,
जब हम अपने भीतर के प्रेम और साहस को पहचानते हैं, तब हमारे भीतर का भगवान हमें ऊपर उठाता है। इसी बात को समझाते हुए भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा है, “उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत्” याने “अपने आप को उठाओ, अपने आप को गिराओ मत।” यह वाक्य हमें सिखाता है कि हमारा उद्धार किसी और के हाथ में नहीं, बल्कि हमारे अपने हाथों में है।


दोस्तों, कुल मिलाकर कहा जाए तो मनुष्य स्वयं ही अपना मित्र है और स्वयं ही अपना शत्रु भी। अगर हम अपने मन को सही दिशा दें, तो वही हमारा सबसे बड़ा साथी बन जाता है और अगर हम उसे भटकने दें, तो वही हमें भस्म कर देता है। इसलिए ज़रूरी है कि हम अपने भीतर के मित्र को पहचानें याने उसे पहचानें जो हमें प्रेरित करता है, हमें सम्भालता है, और उठाता है।


दोस्तों, जीवन में बाहरी लड़ाइयाँ उतनी कठिन नहीं हैं, जितनी हमारे भीतर की लड़ाई है। हमे हर दिन चुनना होता है कि हम अपने भीतर के भगवान को सक्रिय करें या फिर शैतान को। जब हम हर बार प्रेम को चुनते हैं, करुणा के भाव से जीते हैं, दूसरों की मदद करते हैं, खुद पर विश्वास रखते हैं, तब हम अपने अंदर के भगवान को चुनते हैं; उनके पक्ष में खड़े होते हैं और जब हम बार-बार शिकायत करते हैं, ग़ुस्सा करते हैं, या हार मानते हैं, तब हम अपने ही भीतर के शैतान को बढ़ावा देते हैं।


याद रखियेगा दोस्तों, जो घटना हमारे साथ घट रही है, उसके साथ बहते जाना जीवन नहीं है। जीवन का अर्थ तो अपने अंदर के भगवान को चुन कर अपने कर्म करना है। दूसरे शब्दों में कहूँ तो जीवन वह है, जो हम उसके साथ करते हैं। इसलिए जीवन में घटने वाली घटनाओं के लिए किसी को दोष देने से पहले हमेशा ख़ुद को याद दिलाइये, “आपके भीतर ही भगवान भी है और शैतान भी। इसमें से आप जिसे पोषित करेंगे, वही आपके जीवन का मार्ग तय करेगा। इसलिए, अपने भीतर के भगवान को जगाइए, उसका समर्थन दीजिए, और स्वयं को ऊँचा उठाइए। क्योंकि सच्चा उद्धार कहीं बाहर नहीं आपके अपने भीतर छिपा है।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

 
 
 

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