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जीवन में अपनायें सही नजरिया…

  • Writer: Nirmal Bhatnagar
    Nirmal Bhatnagar
  • 5 days ago
  • 4 min read

Oct 10, 2025

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

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दोस्तों, आप सभी ने कई बार देखा और महसूस किया होगा कि सामान्यतः लोग किसी ना किसी वजह से बहस में उलझे रहते हैं याने अपनी-अपनी बात पर अड़े रहते हैं। मेरी नजर में बहस की मुख्य वजह ‘क्या सही है’, जानने के स्थान पर ख़ुद को सही सिद्ध करना होता है और जब आप सिर्फ़ ख़ुद को सही सिद्ध करने का प्रयास करते हैं, तब आप सामने वाले की बात को गहराई से सुन और समझ ही नहीं पाते हैं।


यह स्थिति कुछ-कुछ बचपन में ‘छह अंधे व्यक्तियों और हाथी की कहानी’ उस कहानी से मिलती जुलती लगती है। जिसमें पहले व्यक्ति ने हाथी की सूँड़ को छूकर कहा था, “हाथी तो रस्सी जैसा है।”, दूसरे व्यक्ति ने पैर को छूकर बोला, “नहीं-नहीं, यह तो पेड़ के तने के समान है।” तीसरे ने कान को छूकर महसूस किया कि “हाथी तो पत्ते के समान होता है।” चौथे ने दाँत को पकड़ कर कहा, “यह तो भाले जैसा है।” पाँचवें ने शरीर को छुआ और बताया “हाथी तो दीवार जैसा है।” और अंत में छठे ने पूँछ को पकड़ा और कहा, “तुम सब ग़लत हो हाथी तो साँप जैसा है।” इसके बाद सभी आपस में झगड़ने लगे और “मैं सही हूँ!”, “तुम गलत हो!”, सिद्ध करने में लग गए। इन छह लोगों में से किसी ने यह नहीं सोचा कि शायद हम आधी-अधूरी चीज को सत्य मान रहे हैं, जबकि सच्चाई सबको मिलाकर बनती हो।


सोच कर देखियेगा दोस्तों, अगर वे सभी याने छह के छह अंधे अगर देखने लग जाते तो क्या होता? वे सभी पूरे हाथी को ना सिर्फ़ देख पाते बल्कि सच्चाई भी समझ जाते। दोस्तों, आँखों से इस तरह की पट्टी उतरने का पल ही सीखने का असली पल होता है।


दोस्तों, सच तो यह है कि हम सब भी उन छह अंधों की तरह ही हैं। बस हमारी आँखों पर कपड़े की पट्टियाँ नहीं, बल्कि अनुभवों, धारणाओं और अहंकार से बनी पट्टियाँ बँधी हैं। यह पट्टियाँ तीन मुख्य कारणों से बनती हैं-

1) आपकी पट्टी आपके बचपन से आती है, जो आपने देखा, सुना, अनुभव किया।

2) आपकी पट्टी आपकी शिक्षा से बनी है, वह ज्ञान जो आपको मिला, लेकिन दूसरों को नहीं। और 
3) आपकी पट्टी आपकी सफलता से मजबूत होती है, “मैंने यह किया, इसलिए यही सही है।”


जब आप उपरोक्त तीन पट्टियों के साथ ज्यादा समय बिता लेते हैं तो आपकी आँखों पर सबसे खतरनाक “मुझे सब पता है।” विश्वास की पट्टी बंध जाती है और हम इस भाव के साथ जीना शुरू कर देते हैं कि “जो हम जानते हैं, वही सच है।” लेकिन दोस्तों, सच्चा विकास तभी शुरू होता है, जब हम मानते हैं, “मुझे सब कुछ नहीं पता।” और जब आप यह स्वीकारते हैं तब आप दुनिया की सबसे बड़ी शक्तियों में से एक ‘सुनने की शक्ति’ को स्वीकारना शुरू करते हैं।


जी हाँ, सुनना सबसे बड़ी शक्ति है। जो इंसान बहस में, मीटिंग में या रिश्तों में सुनता है, वही सही बात या सही स्थिति को समझता है। इतना ही नहीं सुनने वाला व्यक्ति ज्ञान भी अर्जित करता है और सम्मान भी। इसलिए दोस्तों, मैं विभिन्न दृष्टिकोण से एक ही स्थिति को देखने की क्षमता को सच्ची समझ मानता हूँ।


यह स्थिति सिर्फ व्यक्तिगत जीवन को ही नहीं बल्कि हमारे व्यवसायिक जीवन को भी प्रभावित करती है। व्यावसायिक जीवन में भी हर टीम या व्यक्ति का नज़रिया अलग होता है। जैसे मार्केटिंग वाला ग्राहक को देखता है, इंजीनियर उत्पाद को, और डिज़ाइनर अनुभव को। लेकिन जब यह सब मिलते हैं, तब ही “पूरा हाथी” याने एक ‘सही प्रोडक्ट’ दिखता है। दूसरे नजरिये से कहूँ तो कॉर्पोरेट जीवन में हर विभाग, हर व्यक्ति; “हाथी” का एक अलग हिस्सा देखता है। कोई ऑपरेशन सम्भालता है, कोई फाइनेंस, कोई तकनीक। लेकिन जब हम सब एक-दूसरे को समझना शुरू करते हैं, तब संगठन सच में बढ़ता है।


दोस्तों, अगर आप अपने जीवन में इस सही नजरिये को अपनाना चाहते हैं तो आज से ही निम्न सूत्रों को अपना लें-

पहला सूत्र -विनम्रता ही सीख की कुंजी है

“मैं गलत था” कहना कमजोरी नहीं, साहस है। जो व्यक्ति गलती स्वीकार करता है, वही सबसे तेज़ी से आगे बढ़ता है।

दूसरा सूत्र - सहानुभूति से जीना

याद रखें हर गुस्सैल व्यक्ति बुरा नहीं होता, संभव है वह परेशानी के कारण गुस्सा हो। इसी तरह, हर असहमत व्यक्ति दुश्मन नहीं होता, संभव है कि वो अपना जीवन अलग सोच के साथ जीना चाहता हो। उसकी जीवन यात्रा हमसे अलग रही हो। याद रखें, दूसरों को समझने की कोशिश ही मानवता है। जब आप मानवता और सहानुभूति के नज़रिए से जीते हैं, तब आप अनुभव, धारणा और अहंकार की पट्टी हटाते है।

तीसरा सूत्र - जिज्ञासा सच्चे ज्ञान का मार्ग है

जब भी किसी बात से असहमत हों तो ख़ुद से पूछें, “मैं क्या नहीं देख पा रहा हूँ?” याद रखें, जिज्ञासा आपके विश्वास को तोड़ती नहीं, बल्कि उसे मजबूत बनाती है।


याद रखें दोस्तों, हम सच्चाई तभी देख पाते हैं, जब हम दूसरों को दोष देना बंद कर देते हैं। याद रखें, सच्चाई किसी बहस में नहीं छिपी होती, वह तो तब ही सामने आती है, जब हम मिलकर उसे देखने की कोशिश करते हैं। तो आइए दोस्तों, साथ मिलकर सच्चाई की खोज करें, न कि अकेले लड़कर, क्योंकि कोई भी व्यक्ति पूरे हाथी को अकेले नहीं देख सकता।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

 
 
 

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