ईश्वर आपकी जेब नहीं, दिल देखता है…
- Nirmal Bhatnagar
- 4 days ago
- 3 min read
Sep 20, 2025
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

शहर का सबसे बड़ा ठेकेदार राकेश, अपनी बीएमडब्लू कार से तेज बरसात में मोबाइल पर अपने पीए से बात करता हुआ कह रहा था, “तुम्हें याद है ना कल हमें अस्पताल में 5 लाख रुपये दान देने जाना है?” पीए अभी “जी” ही बोल पाया था कि उन अमीर सज्जन ने अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहा, “चेक आज ही तैयार करके रख देना और सभी अख़बार वालो को फ़ोन कर देना कि कल वे समय पर कार्यक्रम स्थल पर अपने कैमरामैन के साथ पहुंच जाएँ।”
उसी रास्ते पर रामू सब्जी वाला भी अपना दिन भर का व्यवसाय पूर्ण कर, साइकिल से बारिश में भीगता हुआ अपने घर जा रहा था। उसकी जेब में दिन भर की कमाई के रूप में कुल जमा दो सौ रुपये थे। जिससे उसे घर में इंतजार कर रहे बीवी और दो बच्चों की आवश्यकताओं को पूर्ण करना था।
कुल मिलाकर कहूँ तो अमीर व्यापारी राकेश और रामू दोनों ही अपनी-अपनी उधेड़बुन में उलझे हुए अपने घर जा रहे थे। बाजार के अंतिम छोर से गुजरते वक्त अचानक ही दोनों की नजर मरणासन्न हालत में सड़क किनारे बेहोश पड़े एक बच्चे पर गई। जिसके पास एक तख़्ती पड़ी थी जिसपर उसने मदद करने की गुहार लिखी हुई थी। रेड लाइट पर रुके राकेश ने कार का शीशा नीचा करते हुए बोर्ड पड़ा और बुदबुदाता हुआ बोला, “अरे यार, ये पूरा शहर ही इस तरह के भिखारियों और निकम्मे लोगों से भरा पड़ा है। ये लोग हमेशा ऐसे ही नाटक करते हैं।” उसने गाड़ी का कांच बंद करते हुए ड्राइवर से गाड़ी चलाने का कहा और उसे भी अगले दिन दान के कार्यक्रम में जाने के लिए समय पर आने की हिदायत दी।
वहीं दूसरी ओर रामू इस बोर्ड को देखते ही रुका और साइकिल को स्टैंड पर खड़ा कर लगभग दौड़ता हुआ बेहोश पड़े बच्चे के पास गया और बेहोश पड़े बच्चे की नब्ज देखी। वो बच्चा जिंदा था, शायद भूख और बीमारी की वजह से बेहोश हो गया था। रामू ने तुरंत उस पर पानी के छींटे मारे, जिससे वो बच्चा होश में आ गया। रामू ने तुरंत अपनी दिन भर की कमाई या यूँ कहूँ अपनी पूरी संपत्ति, दो सौ रुपये निकाले और उस बच्चे को देते हुए बोला, “बेटा, मेरे पास यही है। इससे कुछ खाना और दवा खरीद लेना। इसके बाद उसने अपनी शर्ट उतारकर बच्चे को ओढ़ाई और कहा, “डरो मत, जल्द ही सब ठीक हो जाएगा।” और अंत में उसके सिर पर हाथ फेरता हुआ वहाँ से चला गया।
उस रात दोनों याने राकेश और रामू के घर का माहौल बिल्कुल अलग था। राकेश सोच रहा था कि किस तरह दान के कार्य से ज़्यादा-से-ज़्यादा पब्लिसिटी ली जाये? किस तरह दान के कार्यों से अवार्ड लिया जाये? व्यापार में इन सब का लाभ कैसे लिया जाये। वहीं दूसरी ओर रामू के घर का माहौल बिल्कुल अलग था। उसके बच्चे जहाँ भूखे थे, वहीं उसकी पत्नी घर में राशन के लिए परेशान थी और रामू ख़ुद बच्चों की फ़ीस के विषय में सोच रहा था।
अगले दिन दोनों ही अपने-अपने कार्यों में व्यस्त हो गए। राकेश का नाम जहाँ सेवा कार्यों के लिए पेपरों में छाया हुआ था, वहीं रामू के विषय में किसी को कुछ पता ही नहीं था। इतना ही नहीं कुछ दिनों बाद राकेश को समाज सेवा के क्षेत्र का सबसे बड़ा पुरस्कार मिला। लेकिन साथ ही उसे उसके व्यापार में बड़ा नुक़सान हुआ और कुछ ही सालों में उसका व्यापार डूब गया। रामू को किसी ने नहीं जाना ना ही उसका नाम अखबार में आया। लेकिन अजीब बात यह हुई कि अगले दिन से ही उसकी सब्जी अच्छी बिकने लगी। नए ग्राहक आने लगे और बीतते समय के साथ उसने एक छोटी सी सब्जी की दुकान खोल ली।
दोस्तों, यह कहानी हमें सिखाती है कि दान की क़ीमत दिए गए पैसों से नहीं, बल्कि उसके पीछे के भाव से मापी जाती है। चूँकि रामू का दान दिखावे के लिए नहीं था, इसलिए उसे उसके कर्मों का फल लाभ के रूप में मिला, जबकि राकेश का दिखावा उसे ले डूबा। याद रखियेगा दोस्तों, ईश्वर आपकी जेब नहीं, दिल देखता है। उसकी नजर में आपका दो रुपये का प्रेम किसी के दो लाख के अहंकार से कहीं ज्यादा कीमती है और सच्चा धर्म वो नहीं जो दिखाया जाए, बल्कि वो है जो दिल से निभाया जाए।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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