बड़े सपने पाना हो तो डर को छोड़ो और जोखिम उठाओ...
- Nirmal Bhatnagar
- 2 hours ago
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Sep 22, 2025
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, चुनौतियों से टकराये बिना सफलता की असली कहानी बन ही नहीं सकती है। अपनी बात को मैं आपको एक कहानी से समझाने का प्रयास करता हूँ-
बात कई साल पहले की है, दस वर्षीय गर्वित गर्मियों की छुट्टी में अपने दादाजी के पास गाँव आया। एक दिन वह खेलते-खेलते अचानक ही अपने दादाजी के पास गया और बोला, “दादाजी, बड़ा होकर मैं एक सफल इंसान बनना चाहता हूँ। क्या इस विषय में आप मुझे कुछ टिप्स देंगे?”
गर्वित की बात सुन दादाजी मुस्कुराते हुए बोले, “चलो हम पहले नर्सरी से पौधे लेकर आते हैं और फिर इस विषय में आगे चर्चा करते हैं।” इतना कहकर दादाजी गर्वित को नर्सरी ले गए और वहाँ से दो एक समान पौधे ख़रीदे। घर आकर उन्होंने एक पौधे को घर के अंदर गमले में लगाया और दूसरे को घर के बाहर ज़मीन में। इसके पश्चात उन्होंने गर्वित से प्रश्न करते हुए पूछा, “चलो गर्वित बताओ तुम्हारे अनुसार इनमें से कौन सा पौधा ज़्यादा अच्छी तरह खिलेगा?” गर्वित तुरंत बोला, “दादाजी मेरे अनुसार घर के अंदर रखा पौधा जल्दी बढ़ेगा क्योंकि वो सुरक्षित है। बाहर वाले पौधे को तो धूप, बारिश, आँधी और जानवरों का खतरा रहेगा।” दादाजी ने हँसते हुए कहा – “ठीक है, देखते हैं आगे क्या होता है।”
कुछ ही दिनों में गर्वित की छुट्टियाँ ख़त्म हो गई और उसके घर लौटने का समय आ गया। जाते समय गर्वित ने दादाजी से दोनों पौधों का ध्यान अच्छे से रखने के लिए कहा और एक बार फिर अपने प्रश्न का उत्तर मांगा तो दादाजी बोले, “बेटा तुम्हारे प्रश्नों का उत्तर मैं नहीं, आने वाले समय में यह पेड़ देंगे।” उस वक्त तो वह बच्चा कुछ समझ नहीं पाया और वापस अपने घर लौट गया और दादाजी ने दोनों पौधों की बराबर देखभाल करना शुरू कर दिया।
कुछ सालों बाद गर्वित एक बार फिर दादाजी से मिलने गाँव आया और उसने दादाजी से दोबारा वही सवाल किया, “दादाजी, उस दिन तो आपने सफलता के टिप्स नहीं बताए थे, कृपया आज मेरे इस प्रश्न का जवाब जरूर दे दीजिएगा।” दादाजी ने उसे पहले उसके लगाए दोनों पौधों को देखकर आने के लिए कहा। गर्वित दौड़ता हुआ अंदर गया और गमले में लगे पौधे, जो अब एक सुंदर पेड़ में बदल चुका था, को देख कर खुशी से बोला, “देखा दादाजी, मैंने कहा था न कि यही पौधा ज़्यादा खिलेगा याने सफल होगा!”
दादाजी मुस्कुराए और बोले, “जरा बाहर वाले पौधे को भी देख लो।” गर्वित उसी क्षण दौड़ता हुआ बाहर गया और वहाँ का नज़ारा देख हैरान रह गया। असल में पौधे वाली जगह पर आज उसके सामने एक विशाल वृक्ष खड़ा था। उसकी शाखाएँ आसमान तक फैली थीं और उसकी छाँव में लोग आराम से बैठे बातें कर रहे थे। गर्वित की आँखें आश्चर्य से फैल गईं, वह एकदम से हकलाते हुए बोला, “ब…ब…बाहर वाला! लेकिन ये कैसे संभव है? इसे तो तमाम पेशानियों और खतरों का सामना करना पड़ा होगा? फिर यह इतना बड़ा कैसे हो गया?”
दादाजी ने गहरी आवाज़ में कहा, “बेटे, यही सफलता का असली राज़ है। गमले वाला पौधा सुरक्षित और चुनौती रहित वातावरण में बड़ा हुआ। जहाँ उसे अपनी जड़ों को फैलाने की आज़ादी नहीं थी। इसके विपरीत, बाहर वाले पौधे ने शुरू से ही आँधी, धूप, तेज अंधाधुंध बारिश आदि का सामना किया, और हर मुश्किल में खड़े रहने का प्रयास करता रहा। याने हर चुनौती उसे और मजबूत बना रही थी। बेटा यह पेड़ हमें यही सिखाता है कि सफलता उन्हीं को मिलती है जो जोखिम उठाते हैं और मुश्किलों का सामना करते हैं।”
बात तो दोस्तों, दादाजी की एकदम सटीक थी। अगर हम सिर्फ सुरक्षित जीवन जीने को प्राथमिकता बना लेंगे या फिर हमेशा सुरक्षा को प्राथमिकता में रख निर्णय लेना शुरू कर देंगे तो हम कभी अपनी असली क्षमता जान ही नहीं पाएंगे। जिस तरह गमले का पौधा सीमित रह गया, वैसे ही जो लोग केवल सुरक्षित विकल्प चुनते हैं, उनका विकास भी सीमित रह जाता है। लेकिन जो जीवन के तूफानों का सामना करते हैं, वे विशाल वृक्ष की तरह समाज को छाँव देते हैं और अपनी पहचान छोड़ जाते हैं।
इसलिए याद रखो, भगवान ने हमें डर-डर कर जीने के लिए नहीं, बल्कि चुनौतियों से जूझकर अपनी पूरी क्षमता के साथ जीने के लिए बनाया है। जब हम जोखिम लेकर आगे बढ़ते हैं तभी सफलता का असली मजा ले पाते हैं। आँधी-पानी, ठोकरें और असफलताएँ ही हमें बड़ा बनाती हैं। इसलिए दोस्तों, डर को पीछे छोड़ो, जोखिम उठाओ और जीवन को बड़े सपनों से जीयो। यही है सफलता का असली मार्ग।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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