ज्ञान और कौशल से बनाएँ भविष्य…
- Nirmal Bhatnagar
- 3 days ago
- 3 min read
Sep 21, 2025
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, एक वक्त ऐसा था, जब हम विद्यालय के समय में अपने करियर को प्लान कर अपना पूरा जीवन आराम से गुजार देते थे। लेकिन अब हम बदलाव के ऐसे दौर में जी रहे हैं, जहाँ जो कौशल या ज्ञान हमने शिक्षा लेकर या अनुभव से सीखा है, वो बाजार की जरूरतों के हिसाब से अधूरा लग रहा है। याने जो हमें पढ़ाया-लिखाया जा रहा है या जो हम पढ़-लिख कर; सीख कर आए हैं, वो अतीत की शिक्षा है, और उसका आधुनिक युग की जरूरतों से कोई लेना देना नहीं है।
इसी बात की पुष्टि वर्ल्ड एजुकेशन टुडे की एक रिसर्च भी करती है। जिसके अनुसार आज 70% प्रतिशत बच्चे ‘डाइंग करियर’ को चेस कर रहे हैं। अगर मैं इसी बात को सीधे आंकड़ों में कहूँ तो आज 1.5 बिलियन स्टूडेंट अतीत की पढ़ाई कर रहे हैं। इसका अर्थ हुआ जब वे शिक्षा ख़त्म कर, अपने ज्ञान और हुनर के साथ बाज़ार में आयेंगे, तब तक उनका ज्ञान और कौशल बाजार की जरूरतों को पूरा करने के हिसाब से नाकाफ़ी होगा।
उपरोक्त बातें मुझे हाल ही में एक लेख पढ़ते समय ध्यान आई, जिसमें बताया गया था कि आईबीएम ने हाल ही में 8,000 कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया है। लेकिन उसी समय कंपनी ने 6,000 नए पदों के लिए आवेदन भी मांगे। ये दो संख्याएं अपने आप में पूरी कहानी कह देती हैं। वैसे ऐसा करने वाली आईबीएम एकमात्र कंपनी नहीं है। माइक्रोसॉफ्ट, इंटेल, मेटा जैसी दिग्गज कंपनियां ने भी यही रास्ता अपनाया है। याने दिग्गज आई.टी. कम्पनियाँ सिर्फ अपना खर्च कम नहीं कर रही है, बल्कि वे पुराने और नए कौशलों के बीच तेज़ी से सामंजस्य बैठाते हुए, ख़ुद को बदलती दुनिया के लिए तैयार कर रही हैं।
दोस्तों, ऐसे और भी कई आंकड़े वाकई हैरान कर देने वाले हैं। वर्ष 2025 के पहले छह महीने में ही लगभग 400 बड़ी कंपनियों ने 80,000 नौकरियां खत्म कर दी है। देखने-सुनने में ये संख्या डरावनी लगती है। लेकिन इस तस्वीर का एक और पहलू भी है, जिसे समझना बेहद ज़रूरी है। विश्व आर्थिक मंच याने वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम का मानना है कि साल 2030 तक लगभग 9.2 करोड़ नौकरियां खत्म हो जाएंगी। लेकिन उसी दौर में करीब 17 करोड़ नई नौकरियों का सृजन भी होगा। यानी कुल मिलाकर 7.8 करोड़ नई नौकरियां जुड़ेंगी।
इस आधार पर देखा जाए तो समस्या नौकरियों की कमी नहीं, बल्कि आने वाली नौकरियों के लिए आवश्यक उन नए ज्ञान और कौशल की है, जो वर्तमान शिक्षा प्रणाली में पढ़ाए नहीं जाते। एक बात और है, जो इस समस्या को और ज्यादा गंभीर बनाती है। आज की तारीख़ में ज्ञान और कौशल उतनी ही तेज़ी से अप्रासंगिक हो रहे हैं, जितनी तेज़ी से हम उन्हें सीख रहे हैं। दूसरे शब्दों में कहूँ तो परंपरागत शिक्षा प्रणाली एक भारी मालगाड़ी की तरह चलती है—धीमी, स्थिर और पहले से तय रास्तों पर। इसके उलट आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की गति रेसिंग कार जैसी है, जो पलक झपकते ही कई मील आगे निकल जाती है। हम एक तेज़ गति वाली समस्या का समाधान धीमी व्यवस्था के ज़रिये खोज रहे हैं।
इसी बात को मैं आपको एक उदाहरण से समझाने का प्रयास करता हूँ। अगर आपका प्रतिस्पर्धी किसी काम को ए.आई. के ज़रिए कुछ घंटों में पूरा कर देता है और आपकी टीम को वही कार्य करने में हफ्ते लग जाते हैं। अब आप स्वयं अंदाजा लगा कर देखिए ऐसे कार्यों से सफलता की आस रखना सही है या मूर्खतापूर्ण है। दोस्तों, इसी वजह से आवश्यकता और ज्ञान व कौशल का असंतुलन अब बाजार में स्पष्ट तौर पर दिखने लगा है। आज के युग में दौड़ में बने रहने के लिए हमें ए.आई. की रफ़्तार के साथ अपनी सीखने की रफ़्तार भी बढ़ानी होगी। हमें समझना होगा कि अब बाजार में यह सवाल बचा ही नहीं है कि क्या हम AI के साथ कदमताल कर पाएंगे? आज असली सवाल तो यह है कि “क्या आप आज वो कौशल सीख रहे हैं, जो साल 2020 में थे ही नहीं?” दोस्तों इसी सवाल के जवाब को खोजते हुए आज कंपनियाँ अपने ख़ुद के बड़े-बड़े ट्रेनिंग सेंटर खोल रही है, जो अपने कर्मचारियों को “सबसे तेज़ सीखने की प्रक्रिया” याने फास्टेस्ट लर्निंग लूप्स प्रदान कर रही हैं। जिसे हम “जस्ट-इन-टाइम” लर्निंग कॉन्सेप्ट के नाम से जानते हैं, जो आज कंपनियों के लिए सफलता की कुंजी बन गया है।
दोस्तों, अगर आपको भी लगता है कि अब हमें अपने सीखने के तरीके को पूरी तरह बदलने की ज़रूरत है, तो इस विचार को दूसरों तक ज़रूर पहुँचाएँ। क्योंकि आने वाला कल सिर्फ उनके लिए सुरक्षित होगा जो बदलाव की इस तेज़ लहर के साथ कदम मिलाकर चलेंगे। तो क्या आप तैयार हैं, आने वाले कल के लिए?
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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