हर हाल में आभारी रहें…
- Nirmal Bhatnagar
- 2 days ago
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Sep 22, 2025
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, आज की तेज़ रफ़्तार और उपभोक्तावादी दुनिया में लोग अक्सर यह मान बैठते हैं कि जिसके पास पैसा, पद और शोहरत है, वही सबसे भाग्यशाली और “ईश्वर की कृपा” से संपन्न है। लेकिन मेरी नजर में यह बात पूर्णतः ग़लत है क्योंकि अगर ऐसा होता तो बड़े-बड़े महलों में रहने वाले लोग कभी उदासी या अकेलेपन से पीड़ित न होते। इसलिए ही मैं हमेशा कहता हूँ भौतिक सफलता कभी भी ईश्वरीय कृपा का असली पैमाना हो ही नहीं सकती है।
मेरी नजर में इसके पीछे भ्रामक धारणाओं का होना है। जैसे, हम अक्सर यह सोच लेते हैं कि ईश्वर की कृपा का मतलब है अधिक धन-संपत्ति, ऊँचा दर्जा, या हर सपना पूरा हो जाना। पर सच यह है कि बाहरी उपलब्धियाँ आध्यात्मिक शांति की गारंटी नहीं देतीं। कई बार सब कुछ होने के बावजूद व्यक्ति भीतर से खाली महसूस करता है। इसलिए मेरा मानना है कि सच्ची ईश्वरीय कृपा तो तब होती है, जब कठिन परिस्थितियों में भी आपका मन शांत रहता है। याने जब हम सुख-दुख से ऊपर उठकर भीतर से तृप्त या प्रसन्न रहना शुरू कर दें, तब हम मान सकते हैं कि ईश्वर की कृपा हमारे ऊपर है और यही कृपा हमें हर हाल में संतुलित और प्रसन्न बनाए रखती है।
दोस्तों, जीवन में परिश्रम से हम बहुत कुछ पा सकते हैं, लेकिन तृप्ति केवल कृपा से ही आती है। ईश्वर में विश्वास हमारे भीतर की रिक्तता को समाप्त कर देता है। बाहरी साधनों से मिलने वाला आनंद क्षणिक है, पर भीतर से उठने वाली शांति और संतोष स्थायी है।आप स्वयं गंभीरता पूर्वक विचार कर देखिएगा अगर हम अपनी प्रसन्नता को परिस्थितियों से जोड़ देंगे, तो जीवन कभी स्थिर नहीं रहेगा। जब कभी सब कुछ अच्छा होगा तो हम खुश होंगे, और ज़रा-सी परेशानी आते ही दुखी हो जाएँगे। इसलिए आंतरिक रूप से शांत और संतोषी होना, याने अपने भीतर के सुख का अनुभव होना ही सबसे मूल्यवान है। यही स्वभाविक प्रसन्नता हमारी असली आध्यात्मिक उपलब्धि है।
दोस्तों हो सकता है अब आपके मन में प्रश्न आ रहा हो कि तृप्ति और प्राप्ति में क्या फ़र्क़ होता है? तो मैं आपको आगे बढ़ने से पहले बता दूँ कि दोनों ही स्थितियां एकदम भिन्न हैं। प्राप्ति का लेना-देना बाहरी बातों से है, जबकि तृप्ति भीतर की अवस्था है। याने प्राप्ति याने साधनों का मिलना सीमित है और तृप्ति याने संतुष्टि असीमित। इसलिए कृपा का सबसे श्रेष्ठ रूप उस स्थिति को माना गया है, जब हम “अहोभाव” में जीते हैं—यानी हर हाल में आभार व्यक्त करने का भाव रखते हैं।
दोस्तों, आज की दुनिया हमें बार-बार सिखाती है कि “जितना ज़्यादा पाओगे, उतने ही खुश रहोगे।” लेकिन सच इसके उलट है, भौतिक चीज़ें हमें केवल सुविधाएँ देती हैं, खुशी नहीं। मानसिक स्वास्थ्य और आध्यात्मिक तृप्ति का सीधा संबंध है। जब मन भीतर से शांत हो, तभी असली सुख का अनुभव होता है।
इसलिए अंत में निष्कर्ष के तौर पर इतना ही कहूँगा कि सच्ची ईश्वरीय कृपा बाहरी चीज़ों से नहीं, बल्कि भीतर की तृप्ति से झलकती है। जब हम हर परिस्थिति में आभारी बने रहते हैं और जीवन को संतोषपूर्वक जीते हैं, तभी हम ईश्वर के सबसे बड़े आशीर्वाद का अनुभव करते हैं।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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