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उड़ना हो ऊँचा तो मन की सीमाओं को तोड़ें…

  • Writer: Nirmal Bhatnagar
    Nirmal Bhatnagar
  • 2 days ago
  • 3 min read

Nov 12, 2025

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

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दोस्तों, आपने अक्सर लोगों को कहते सुना होगा कि “स्काई इस द लिमिट…” लेकिन मेरा मत इस विषय में थोड़ा अलग है। स्काई याने आसमान कभी भी सीमा नहीं हो सकता, सीमा तो हमारे मन में होती है क्योंकि अगर मन में ठान लिया जाए, तो इंसान न केवल आसमान को छू सकता है, बल्कि उससे भी आगे निकल सकता है। याद रखियेगा दोस्तों, मनुष्य की सबसे बड़ी शक्ति उसका विचार है। विचार ही वह बीज है, जिससे हर सफलता का पेड़ उगता है और अगर यही विचार सीमाओं, डर या शक से भरे हों, तो जीवन में सफल हो पाना मुश्किल ही है। इसलिए मैं विचारों को सीमाओं में बाँधने का विरोध करता हूँ। दूसरे शब्दों में कहूँ तो चादर के अनुसार पैर फैलाने के स्थान पर चादर बड़ी करने के तरीकों पर विचार करने की सलाह देता हूँ।


जी हाँ साथियों, मेरी नज़र में आशावाद या सकारात्मक सोच रखना भविष्य को बेहतर बनाने की बेहतरीन रणनीति है क्योंकि आशावाद याने ऑप्टिमिस्म केवल एक भावना नहीं, बल्कि जीवन जीने का तरीका है। जब कोई व्यक्ति यह मानता है कि भविष्य बेहतर हो सकता है, तो वो व्यक्ति अपने जीवन की ज़िम्मेदारी लेता है, और वो जीवन को बेहतर बनाने का प्रयास करता है और इसीलिए जीवन में आगे बढ़ता है, अपनी लाइफ को अपने सपनों के हिसाब से डिज़ाइन कर पाता है और धीरे-धीरे अपने ही जीवन का निर्माता बन जाता है।


लेकिन जो सोचता है कि “कुछ नहीं बदल सकता”, वह बदलाव की कोशिश करने से पहले ही हार मान लेता है और समझौता करते हुए अपना जीवन जीता है। आशावाद याने ऑप्टिमिस्म को समझाते हुए महात्मा गांधी जी ने कहा था, “ख़ुद वह बदलाव बनें, जो आप दुनिया में देखना चाहते हैं।” यानी भविष्य तभी बदलता है, जब वर्तमान में कोई व्यक्ति आशा से प्रेरित होकर कर्म करता है।


हाँ इस विषय में एक बात बिल्कुल सही है कि बदलाव कठिन है, लेकिन उतना ही सही यह भी है कि बदलाव लाना असंभव भी नहीं है। हर बदलाव के साथ थोड़ी असुविधा, डर और अनिश्चितता आती है। फिर चाहे वह आदत बदलने की बात हो, या फिर नया काम शुरू करने की, या फिर अपने सोचने के तरीके को सुधारने की। दोस्तों, हर परिवर्तन शुरुआत में कठिन लगता है। लेकिन अगर आप ठान लें, तो धीरे-धीरे वही कठिन सफ़र, जीवन की सबसे सुंदर यात्रा बन जाती है। ठीक उसी तरह जैसे, एक सुंदर पेड़ बनने के पहले एक बीज को पहले अँधेरे में रहना पड़ता है, फिर मिट्टी को चीर कर सूर्य की ओर बढ़ना पड़ता है, ठीक उसी तरह हर इंसान को भी अपनी सीमाओं को तोड़ने के लिए कठिनाइयों से होकर गुजरना पड़ता है।


इसके लिए सबसे पहले आपको स्वीकारना होगा कि असली सीमा आपके भीतर है। आपने कई लोगों को कहते सुना होगा, “करना तो मैं बहुत कुछ चाहता था पर क्या करूँ मौका ही नहीं मिला।” लेकिन मेरी नजर में इस भाव की असलियत कुछ और है, इंसान को मौक़ा मिलना नहीं, मन का ना मिलना प्रभावित करता है क्योंकि जो सच में ठान लेता है, वह परिस्थिति का इंतज़ार नहीं करता, बल्कि अपने अनुरूप परिस्थिति खुद बना लेता है। थॉमस एडिसन ने हजारों असफल प्रयोगों के बाद बल्ब बनाया था पर असफलता के विषय में चर्चा करने पर वे कहते थे, “मैं असफल नहीं हुआ हूँ, मैंने सिर्फ़ हजार रास्ते खोजे जो काम नहीं करते।” इसी सोच ने उन्हें महान बनाया था।


दोस्तों, सपनों का जीवन जीना चाहते है तो अपने जीवन की जिम्मेदारी लीजिए और स्वीकारिये कि सीमाएँ कभी बाहर नहीं हमारे मन के भीतर होती हैं। अगर हम अपने विचारों को सकारात्मक, रचनात्मक और कर्मशील बना लें, तो कोई भी आसमान हमारी पहुँच से बाहर नहीं रहेगा। साथ ही याद रखिएगा, बदलाव आसान नहीं होता, लेकिन हमेशा संभव होता है। इसलिए आशावाद को अपना दृष्टिकोण बनाइए, सीमाओं को चुनौती दीजिए, और हर दिन खुद को यह याद दिलाइए, “आसमान नहीं, मेरे मन की उड़ान मेरी सीमा तय करती है।”


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

 
 
 

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