उत्सव – भारत की आत्मा और जीवन का उत्साह
- Nirmal Bhatnagar

- 2 days ago
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Oct 25, 2025
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, भारत केवल एक देश नहीं, बल्कि एक जीवंत संस्कृति का प्रवाह या खुशहाल जीवनशैली का दर्शन है क्योंकि यहाँ जीवन के हर क्षण में उत्सव बसता है। हमारे यहाँ दुख में दीप जलते हैं तो संकट के दौर में भी भक्ति गाई जाती है। यही कारण है कि ‘उत्सव’ को भारत की आत्मा कहा जाता है।
जी हाँ दोस्तों, वास्तव में, भारतीय जीवन पद्धति में उत्सव कोई आयोजन नहीं, एक जीवन दृष्टि है। हमारे पूर्वजों ने जीवन के हर पहलू को किसी न किसी पर्व से जोड़ा, ताकि इंसान जीवन को काटे नहीं, बल्कि आनंदपूर्वक जीना सीख सके। कार्तिक मास इसका श्रेष्ठ उदाहरण है। यह महीना केवल चाँदनी रातों का नहीं, बल्कि आत्मिक प्रकाश का भी प्रतीक है। इसे “दामोदर मास” भी कहा गया है क्योंकि यह महीना प्रभु भक्ति, आत्म शुद्धि और दैवीय ऊर्जा का संचार करता है। उदाहरण के लिए यह माह पाँच दिन चलने वाले दीपोत्सव के माध्यम से हमें जीवन के पाँच अमूल्य सूत्र, प्रकाश, समृद्धि, समर्पण, संतुलन और संबंध, सिखाता है। थोड़ा और गहराई से कहूँ तो धनतेरस का पर्व हमें सेहत का महत्व सिखाता है, नरक चौदस के पर्व का प्रमुख उद्देश्य हमें नरक से मुक्ति एवं भक्ति से युक्ति के उद्देश्य से जोड़ना है। फिर दीपावली हमें सिखाती है कि अंधकार चाहे जितना भी गहरा क्यों ना हो, एक दीपक उसे चुनौती दे सकता है। इसके पश्चात गोवर्धन पूजा बताती है कि प्रकृति का सम्मान ही ईश्वर की सच्ची पूजा है। इसके पश्चात इस श्रृंखला का पाँचवाँ पर्व, भाईदूज, हमें रिश्तों की पवित्रता और स्नेह की अमरता का संदेश देता है।
भाईदूज के दिन बहनें अपने भाइयों के माथे पर तिलक लगाकर उनकी दीर्घायु की कामना करती हैं, और भाई अपनी बहन की रक्षा का वचन देते हैं। लेकिन यदि हम गहराई से सोचें तो यह तिलक केवल भाई-बहन का नहीं, बल्कि स्नेह और जिम्मेदारी का प्रतीक है। आज जब रिश्तों में औपचारिकता बढ़ रही है, स्वार्थ रिश्तों पर हावी हो रहा है, तब भाईदूज हमें याद दिलाता है, “रिश्ते निभाने से नहीं, निभाने की भावना से जीवित रहते हैं।” यह पर्व बताता है कि प्रेम की सबसे सुंदर अभिव्यक्ति “कर्तव्य” में है — भाई की सुरक्षा का कर्तव्य और बहन की करुणा का कर्तव्य और जब कर्तव्य भावना प्रेम में बदल जाती है, तब परिवार केवल खून के रिश्तों से नहीं, बल्कि दिल के रिश्तों से जुड़ता है।
आइए अपनी बात को मैं आपको एक सच्चे किस्से से समझाने का प्रयास करता हूँ। भारतीय सेना में कार्यरत अंशुमन भारत माँ की सेवा और सुरक्षा के लिए दीपावली के दौरान कारगिल में अपनी सेवाएँ दे रहे थे। दिल्ली में रहने वाली उनकी बहन रुचि को इस बात का आभास था कि इस वर्ष उनका भाई दीपावली और भाईदूज के त्यौहार पर घर नहीं आ सकेगा। इसलिए भाईदूज के दिन उसने पहले घर पर पूजा की और फिर भाई का टीका करने के लिए, तिलक की थाली सजाई और आसमान की ओर हवा में तिलक करते हुए बोली, “मेरे भाई तक यह तिलक ज़रूर पहुँचेगा।”
अगले दिन अंशुमन ने अपनी बहन रुचि को फ़ोन कर एक घटना साझा करते हुए कहा, “दीदी, कल रात अचानक ही दुश्मन की एक गोली मेरे सिर के ऊपर से निकल गई। उस गोली के निकलने के एक क्षण पहले मुझे ऐसा महसूस हुआ, जैसे किसी ने मेरे माथे पर तिलक किया हो। इस घटना के बाद मुझे अजीब सी शांति महसूस हुई। भाई की बात सुनते ही रुचि रो पड़ी। उसने महसूस किया कि रिश्ते दूरी से नहीं, भावना से जुड़े होते हैं।
दोस्तों, यह घटना हमें सिखाती है कि भाईदूज का अर्थ केवल तिलक की रस्म नहीं, बल्कि सुरक्षा और स्नेह की मौन प्रार्थना है।यकीनन यह आराधना है एक बहन के विश्वास और एक भाई की निष्ठा की। इतना ही नहीं, उत्सवों की यह श्रृंखला हमें यह भी सिखाती है कि जीवन केवल भोग या संघर्ष नहीं है, बल्कि साधना और उत्साह का संगम है।
दोस्तों, हर त्योहार हमें आत्ममंथन करने का अवसर देता है कि हम केवल परंपरा निभा रहे हैं या उसके अर्थ को भी जी रहे हैं? यदि हम हर पर्व को उसके भाव के साथ जीना शुरू कर दें, तो यकीनन हर दिन एक उत्सव बन सकता है, हर संबंध एक प्रार्थना बन सकता है, और हर हृदय एक मंदिर बन सकता है। उत्सव हमें यह याद दिलाते हैं कि “जीवन केवल काटने के लिए नहीं, बल्कि ईश्वर की लीला समझकर हँसते हुए जीने के लिए है।” इसलिए ही तो कहता हूँ, “जहाँ भक्ति है, वहीं उत्सव है और जहाँ उत्सव है, वहीं भारत की आत्मा जीवित है।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर




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